कांग्रेस अध्यक्ष Mallikarjun Kharge ने एक कार्यक्रम के दौरान बड़ा बयान देते हुए कहा — “मेरी निजी राय में आरएसएस पर प्रतिबंध लगना चाहिए।”
देश की सियासत में एक बार फिर आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) को लेकर विवाद छिड़ गया है। कांग्रेस अध्यक्ष Mallikarjun Kharge ने एक कार्यक्रम के दौरान बड़ा बयान देते हुए कहा — “मेरी निजी राय में आरएसएस पर प्रतिबंध लगना चाहिए।” उनके इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
यह बयान तब आया है जब देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है। विपक्ष जहां बीजेपी और आरएसएस पर “संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने” के आरोप लगा रहा है, वहीं सत्ताधारी दल इस बयान को कांग्रेस की “नफरत भरी सोच” बता रहा है।
Mallikarjun Kharge का बयान और उसका संदर्भ
मीडिया से बातचीत के दौरान जब पत्रकारों ने Mallikarjun Kharge से सवाल किया कि “क्या आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए?” तो उन्होंने बिना झिझके कहा “यह मेरी निजी राय है, लेकिन हाँ — आरएसएस पर प्रतिबंध लगना चाहिए।” खरगे ने कहा कि आज देश में नफरत, असहिष्णुता और असमानता की जो स्थिति बन रही है, उसकी जड़ें संघ की विचारधारा में हैं। उन्होंने आगे कहा,“कई समस्याएँ भाजपा और आरएसएस के गठजोड़ से उत्पन्न होती हैं। दोनों संगठन समानता और संविधान के मूल्यों के खिलाफ काम करते हैं।” खरगे ने इस दौरान देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि पटेल ने 1948 में आरएसएस की गतिविधियों पर चिंता जताई थी और अस्थायी रूप से संगठन पर प्रतिबंध भी लगाया था। खरगे के मुताबिक, “जब आजादी के बाद ऐसी स्थिति बन सकती थी, तो आज क्यों नहीं?”
कांग्रेस का बचाव ‘यह निजी राय, पार्टी की आधिकारिक नीति नहीं’
Mallikarjun Kharge के बयान के तुरंत बाद कांग्रेस की ओर से सफाई भी आ गई। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि “खरगे जी का बयान उनकी व्यक्तिगत राय है। कांग्रेस पार्टी फिलहाल किसी संगठन पर प्रतिबंध की बात नहीं कर रही है।”
हालांकि, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने इसे “संविधान की रक्षा के लिए जरूरी बहस” बताया है। उनका कहना है कि “आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा एकदलीय लोकतंत्र की ओर बढ़ रही है, जिसका विरोध करना कांग्रेस का कर्तव्य है।”
भाजपा और आरएसएस की प्रतिक्रिया
Mallikarjun Kharge के बयान पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र यादव ने कहा, “कांग्रेस आज भी 1975 के आपातकाल की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाई है। जो संगठन राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है, उसे प्रतिबंधित करने की बात करना लोकतंत्र के खिलाफ है।” आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं ने इसे कांग्रेस की “राजनीतिक हताशा” बताया। उनका कहना है कि “कांग्रेस को जनता का भरोसा नहीं मिल रहा, इसलिए वह संघ के नाम पर डर फैलाने की कोशिश कर रही है।”
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि Mallikarjun Kharge का यह बयान रणनीतिक तौर पर दिया गया है। इसका लक्ष्य दक्षिण भारत और अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में एकजुट करना है।
वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि यह बयान आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले “विचारधारात्मक बहस” को नया मोड़ दे सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि कुछ दिन पहले ही कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे (मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे) ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगाने की मांग की थी। ऐसे में कांग्रेस परिवार के भीतर यह मुद्दा लगातार चर्चा में बना हुआ है।
इतिहास में भी लग चुका है प्रतिबंध
यह पहली बार नहीं है जब आरएसएस पर प्रतिबंध की बात उठी हो।
1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस पर बैन लगाया था।
1975 में इमरजेंसी के दौरान भी संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया था।
1992 में बाबरी विध्वंस के बाद भी संघ और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियों पर सीमित प्रतिबंध लगाए गए थे।
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