
Muslim housing project: मुंबई के पास सिर्फ मुस्लिमों के लिए आवासीय परिसर? मानवाधिकार आयोग ने उठाए सवाल
Muslim housing project: मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी, जहाँ हर रंग, हर धर्म और हर संस्कृति एक साथ सांस लेती है। लेकिन हाल ही में सामने आया एक विज्ञापन इस साझा पहचान पर सवाल खड़े कर रहा है। मामला रायगढ़ जिले के नेरल क्षेत्र का है, जहाँ ‘सुकून एम्पायर’ नामक एक आवासीय प्रोजेक्ट को “सिर्फ मुस्लिम परिवारों के लिए” प्रचारित किया जा रहा है।
इस विज्ञापन ने न केवल स्थानीय लोगों को चौंकाया है बल्कि अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) तक भी मामला पहुँच गया है। आयोग ने महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है—क्या सचमुच राज्य ने अलग-अलग समुदायों के लिए बस्तियां बनाने की अनुमति दी है?
विवादित विज्ञापन – ‘हलाल माहौल’ का दावा
‘सुकून एम्पायर’ का विज्ञापन एक महिला की आवाज़ के साथ चलता है। वह कहती है—
“जब सोसायटी में अपनी फैमिली के लिए सिद्धांतों से समझौता करना पड़े, तो क्या वह सही है?”
फिर यह संदेश सामने आता है कि इस प्रोजेक्ट में “समान विचारों वाले परिवार” एक साथ रह सकते हैं। यहां बच्चे “बिल्कुल हलाल माहौल” में बड़े होंगे और निवेश सिर्फ पैसों का नहीं, बल्कि “परिवार के भविष्य का भी सुरक्षा कवच” होगा।
यानी सीधे शब्दों में कहें तो यह प्रोजेक्ट मुस्लिम परिवारों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है।
मानवाधिकार आयोग की कड़ी प्रतिक्रिया
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने इस विज्ञापन पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह मामला महज एक सोसायटी का नहीं है, बल्कि “राष्ट्र के भीतर राष्ट्र” की सोच को जन्म देता है।
कानूनगो ने कहा—
“आज आप अलग बस्ती की बात कर रहे हैं, कल कहेंगे हमें डॉक्टर मुसलमान चाहिए, परसों कहेंगे पुलिस मुसलमान चाहिए… और धीरे-धीरे आप कहेंगे कि हमें अलग राज्य चाहिए। ये भारत के संविधान और सेक्युलर सिद्धांतों के खिलाफ है।”
उन्होंने साफ कहा कि महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजा गया है और पूछा गया है कि क्या इस तरह की अनुमति दी गई थी।
स्थानीय लोगों की चिंता – “नेरल मिनी पाकिस्तान बन जाएगा”
नेरल ग्राम पंचायत और आसपास के इलाकों के निवासियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर इस तरह का प्रोजेक्ट बसा, तो क्षेत्र की डेमोग्राफी पूरी तरह बदल जाएगी।
कुछ निवासियों का आरोप है कि:
- हिंदू परिवारों पर दबाव बनेगा कि वे अपने फ्लैट और घर बाजार भाव से कम कीमतों पर बेचकर पलायन करें।
- धीरे-धीरे इलाके में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे।
- और इससे नेरल “मिनी पाकिस्तान” बनने की राह पर चल पड़ेगा।
इन आशंकाओं के कारण पहले से ही कई परिवार पलायन की सोच रहे हैं।
समाज में दरार का खतरा
भारत का संविधान हर नागरिक को “रहने और बसने की स्वतंत्रता” देता है। यानी कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो, देश में कहीं भी संपत्ति खरीद सकता है।
लेकिन सवाल यह है कि जब किसी आवासीय परिसर को खास तौर पर एक ही समुदाय के लिए प्रचारित किया जाता है, तो क्या यह बाकी समुदायों को असुरक्षित और बहिष्कृत महसूस नहीं कराता?
यही कारण है कि यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक और मानवीय चिंता का भी विषय है।
राजनीति की गूँज
यह विवाद राजनीतिक रंग भी लेने लगा है। कुछ संगठन इसे “सांप्रदायिक सौदेबाज़ी” बता रहे हैं तो कुछ लोग इसे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की ज़रूरत से जोड़ रहे हैं।
विपक्ष का कहना है कि सरकार को तुरंत जांच कर बताना चाहिए कि यह प्रोजेक्ट किस अनुमति के आधार पर बनाया जा रहा है। वहीं समर्थकों का तर्क है कि अगर दलितों या वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग हाउसिंग सोसायटी बन सकती हैं, तो मुस्लिमों के लिए क्यों नहीं?
मानवाधिकार बनाम संवैधानिक जिम्मेदारी
यह मुद्दा केवल एक हाउसिंग प्रोजेक्ट तक सीमित नहीं है। असल बहस यह है कि क्या देश में “धार्मिक आधार पर अलग-अलग बस्तियां” बनाना संविधान और समाज की मूल भावना के खिलाफ है?
भारत हमेशा से अपनी विविधता में एकता के लिए जाना जाता है। लेकिन अगर समुदाय-आधारित कॉलोनियाँ बनने लगीं, तो क्या यह सामाजिक विभाजन को और गहरा नहीं कर देगा?
आखिर में… इंसानियत ही असली पहचान
नेरल का यह विवाद हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हमारी असली पहचान धर्म से पहले इंसानियत होनी चाहिए।
- अगर कोई सोसायटी सिर्फ मुसलमानों के लिए होगी तो क्या हिंदू या अन्य समुदाय खुद को बहिष्कृत महसूस नहीं करेंगे?
- और अगर कल कोई सोसायटी सिर्फ हिंदुओं या किसी और धर्म के लिए बने तो क्या मुस्लिम परिवार वहाँ सुरक्षित महसूस करेंगे?
यह बहस आज नेरल से शुरू हुई है, लेकिन कल किसी और शहर में भी उठ सकती है। सवाल यही है कि भारत जैसे सेक्युलर राष्ट्र में क्या हम धर्म के नाम पर दीवारें खड़ी करना चाहते हैं या पुल?
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