महिलाओं के लिए नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) के दरवाजे 2021 में खुले, जब सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को भी एनडीए में शामिल होने का मौका देने का आदेश दिया। इसके बाद, पहली बार महिलाओं का बैच एनडीए में शुरू हुआ। इस ऐतिहासिक बैच की सबसे बड़ी उपलब्धि हरियाणा की 19 वर्षीय शनन ढाका ने हासिल की। शनन न केवल इस बैच की टॉपर बनीं, बल्कि उन्होंने अपनी कहानी से लाखों महिलाओं को प्रेरित किया।
आइए जानते हैं शनन ढाका के जीवन, उनके संघर्ष और सफलता के पीछे छिपी प्रेरणादायक बातें।
एनडीए में चयन: सपने को साकार करने का पहला कदम
जब एनडीए के लिए महिलाओं के आवेदन शुरू हुए, उस समय शनन ढाका दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वुमेन में बीए कर रही थीं। उनका हमेशा से सपना था कि वे या तो सिविल सर्विस में जाएं या देश की सेवा करते हुए सेना का हिस्सा बनें। एनडीए का नोटिफिकेशन आते ही उन्होंने तुरंत आवेदन किया और मेहनत से इसे पास किया।
देश सेवा का जज़्बा खून में मिला
शनन का बचपन सेना के माहौल में बीता। उनके दादा चंद्रभान सिंह सेना में सुबेदार थे और उनके पिता विजय कुमार ढाका नायब सुबेदार के पद पर हैं। सेना की छावनियों में पले-बढ़े शनन के अंदर बचपन से ही देश सेवा का जज़्बा था। उनका कहना है कि उनके परिवार ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया और सही दिशा दिखाई।
पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहीं शनन
शनन बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहीं। 10वीं कक्षा में उन्होंने 97.4% और 12वीं में 98.2% अंक हासिल किए। वे कहती हैं कि उनके बेसिक्स हमेशा मजबूत रहे, जिसकी वजह से एनडीए परीक्षा की तैयारी में उन्हें ज्यादा कठिनाई नहीं हुई। शनन का मानना है कि निरंतर पढ़ाई और आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है।
मां का फिल्मी डायलॉग बना प्रेरणा का स्रोत
शनन की मां का एक फिल्मी डायलॉग उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव लेकर आया। एक इंटरव्यू में शनन ने बताया, “हम लोग एक बार परिवार के साथ फिल्म ‘दंगल’ देखने गए। फिल्म का डायलॉग ‘गोल्ड तो गोल्ड होता है, छोरा लाए या छोरी’ मेरी मां को बहुत पसंद आया। वह अक्सर इसे हमें कहती थीं और हमें प्रेरित करती थीं। उनकी मुस्कराहट और यह डायलॉग मुझे अंदर से मजबूत बनाता था। मैंने ठान लिया कि मुझे कुछ ऐसा करना है, जिससे मां को और मेरी तीन बहनों को मुझ पर गर्व हो।”
पहली महिला बैच की टॉपर बनीं शनन
एनडीए के 148वें कोर्स में कुल 19 महिलाओं का चयन हुआ, और शनन ढाका इस ऐतिहासिक बैच की टॉपर बनीं। यह कोर्स मई 2025 में पूरा होगा। शनन की यह सफलता न केवल उनके परिवार के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणा भी है, जो बड़े सपने देखने से हिचकिचाती हैं।
महिला सशक्तिकरण की मिसाल
शनन का कहना है कि उनका सफर केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह साबित करता है कि लड़कियां भी किसी भी क्षेत्र में अपना लोहा मनवा सकती हैं। उनका मानना है कि अगर सही दिशा और प्रोत्साहन मिले, तो कोई भी महिला असंभव को संभव कर सकती है।
नए रास्ते पर चलने का संदेश
शनन ढाका की यह कहानी हमें सिखाती है कि आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और परिवार के समर्थन से हर सपना पूरा किया जा सकता है। उनका जीवन हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है, जो सोचती है कि समाज की रुकावटों को पार करना मुश्किल है।
“गोल्ड तो गोल्ड होता है, चाहे छोरा लाए या छोरी”—शनन ढाका की इस सफलता ने इस बात को फिर से सिद्ध कर दिया।
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