अंगदान और देहदान कभी-कभी मौत के बाद भी जीवन चलता रहता है, जैसे कि 24 साल की डॉ. संध्या के परिवार ने साबित किया। एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना ने उनकी जान ले ली, लेकिन उनके अंग और शरीर दान करने के फैसले ने उनके जीवन को मृत्यु के बाद भी अमर बना दिया। यह केवल एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि साहस, सेवा और प्रेरणा का अद्भुत उदाहरण है।
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Toggleयह घटना उस दिन की है, जब डॉ. संध्या अपने कॉलेज के कामों से वापस घर लौट रही थीं। वे बूदिकोटे मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई कर रही थीं। उस दिन बस छूटने के कारण, वह अपने पिता के साथ बाइक पर यात्रा कर रही थीं। गाजग गाँव के पास अचानक एक अवैज्ञानिक स्पीड हंप ने उनकी बाइक का बैलेंस बिगाड़ दिया और वह गिर पड़ीं। सिर में गहरी चोट आने के बाद, उन्हें कोलार के जालप्पा और मणिपाल अस्पताल में भर्ती किया गया। फिर सोमवार रात (9 दिसंबर) को उनका निधन हो गया। इस हादसे ने परिवार को झकझोर कर रख दिया, लेकिन उनकी मौत के बाद लिया गया अंगदान और देहदान का फैसला एक नई उम्मीद की किरण बन गया।
संध्या के परिवार ने मौत के बाद भी उनके शरीर और अंग दान करने का साहसिक फैसला लिया। मणिपाल अस्पताल में उनके अंग दान किए गए, जबकि उनका शरीर कोलार के जालप्पा मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए दान किया गया। यह कदम न केवल उनकी मौत को सार्थक बना गया, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि जीवन का असली उद्देश्य दूसरों की मदद करना है। डॉ. संध्या का यह दान एक ऐसा उपहार बन गया, जिसने कई लोगों की जान बचाई और उनकी सेवा की भावना को मृत्यु के बाद भी जिंदा रखा।
डॉ. संध्या पिछले 11 महीनों से बूदिकोटे सरकारी अस्पताल में सेवाएं दे रही थीं। मरीजों की सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और ईमानदारी के लिए उन्हें खूब सराहा गया था। उनका हंसता-मुस्कराता चेहरा और उनकी मददगार भावना हर किसी के दिल में बसी हुई थी। उनके निधन के बाद, समाज ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके योगदान को याद किया। संध्या के परिवार ने जो निर्णय लिया, वह न केवल उनके प्रति सम्मान था, बल्कि यह समाज के लिए एक प्रेरणा बन गया कि मृत्यु के बाद भी किसी का जीवन बचाया जा सकता है।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के पूर्व विदेश मंत्री एस.एम. कृष्ण का निधन एक बड़ी क्षति है। उनकी मेहनत और कड़ी कोशिशों ने कर्नाटक को एक नई पहचान दी थी। कर्नाटक को आईटी और बीटी हब बनाने में उनका योगदान अतुलनीय था। वह एक नेता थे, जिन्होंने कर्नाटक को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित किया। उनकी योगदान को इस तरह याद किया जाएगा, जैसे अंगदान और देहदान के माध्यम से हम किसी की मृत्यु के बाद भी जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
1 मई 1932 को मांड्या जिले के छोटे से गाँव सूलिकेरे में जन्मे एस.एम. कृष्ण ने अपनी शिक्षा बैंगलोर के केंद्रीय कॉलेज से की थी, फिर उन्होंने जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री प्राप्त की। 1962 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और कर्नाटक के मुख्यमंत्री (1999-2004) और भारत के विदेश मंत्री (2004-2009) के रूप में अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए। उनका उद्देश्य था कर्नाटक को एक वैश्विक पहचान दिलाना, और उन्होंने इसे आईटी हब बना दिया।
एस.एम. कृष्ण के मुख्यमंत्री रहते हुए कन्नड़ फिल्म अभिनेता डॉ. राजकुमार का अपहरण हुआ था। वेरप्पन ने राजकुमार की रिहाई के लिए 50 करोड़ रुपये और अपने सहयोगियों की जेल से रिहाई की मांग की थी। एस.एम. कृष्ण ने उस समय कर्नाटक की कानून व्यवस्था को बनाए रखते हुए राजकुमार को सुरक्षित वापस लाने के लिए दृढ़ संकल्प लिया। यह घटना उनके नेतृत्व की ताकत और साहस को दर्शाती है।
एस.एम. कृष्ण के निधन की खबर ने कर्नाटक और देशभर में शोक की लहर दौड़ा दी। सोशल मीडिया और इंटरनेट पर उनकी उपलब्धियों और योगदानों को लेकर श्रद्धांजलि दी जा रही है। उनके योगदान ने न केवल कर्नाटक बल्कि पूरे भारत को नई दिशा दी। जैसे अंगदान और देहदान के माध्यम से मृत्यु के बाद जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है, वैसे ही एस.एम. कृष्ण ने अपने योगदान से समाज में स्थायी बदलाव लाए।
डॉ. संध्या और एस.एम. कृष्ण दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में महान थे। जहां डॉ. संध्या ने अंगदान और देहदान के जरिए जीवन को मृत्यु के बाद भी बचाया, वहीं एस.एम. कृष्ण ने कर्नाटक और भारत को नए शिखर तक पहुँचाया। इन दोनों महान आत्माओं का जीवन हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति का योगदान सिर्फ उसकी मृत्यु के बाद ही नहीं, बल्कि उसके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों से ही अमर होता है।
यह कहानी न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि यह हमसे यह भी पूछती है कि हम अपने जीवन में दूसरों के लिए क्या छोड़कर जाएंगे।
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