Payment of Wages Act: अगर बॉस सैलरी देने में देर करे, तो हो सकती है जेल __ जानिए कर्मचारी के पूरे कानूनी अधिकार
Payment of Wages Act: किसी भी नौकरीपेशा इंसान के लिए महीने की सबसे ज़रूरी तारीख होती है—सैलरी आने की तारीख। इस पैसे से ही घर चलता है, बच्चों के खर्च पूरे होते हैं, किराया, EMI, बिजली-पानी सब भरना होता है। लेकिन जब कंपनी या बॉस सैलरी देने में देरी करते हैं, तो सबसे ज़्यादा परेशानी उसी कर्मचारी को झेलनी पड़ती है जो अपनी मेहनत से घर परिवार चला रहा होता है।
बहुत से लोग ये नहीं जानते कि भारत में वेतन समय पर देना सिर्फ नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि कानूनी अनिवार्यता है। अगर नियोक्ता जानबूझकर या बार-बार वेतन रोकता है, तो उसके खिलाफ जुर्माना और जेल तक की कार्रवाई हो सकती है।
इस लेख में हम आपको आसान भाषा में बताएंगे कि भारतीय कानून क्या कहता है, कर्मचारी क्या कर सकता है और कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिए।
समय पर वेतन देना नियोक्ता की कानूनी ज़िम्मेदारी है
भारत में वेतन से जुड़े मामलों को Payment of Wages Act, 1936 और Industrial Employment Act, 1946 नियंत्रित करते हैं।
ये कानून साफ़ कहते हैं कि हर कर्मचारी को समय पर वेतन मिलना ही चाहिए।
कब तक मिल जानी चाहिए सैलरी?
कानून के मुताबिक—
- 1000 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों में हर महीने की 7 तारीख तक वेतन देना अनिवार्य है।
- 1000 से ज़्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों में महीने की 10 तारीख तक सैलरी देनी होगी।
अगर कंपनी इन तारीखों से आगे वेतन देती है, तो यह कानूनी उल्लंघन माना जाता है।
देर से सैलरी देने पर क्या सज़ा हो सकती है? (employer punishment)
कानून की धारा 20 और 21 के अनुसार—
- पहली बार गलती करने पर (wage delay penalty)
₹1,500 से ₹7,500 तक जुर्माना
- बार-बार वेतन रोकने या जानबूझकर देरी करने पर
6 महीने तक जेल
या ₹10,000 तक जुर्माना
या दोनों सज़ाएँ एक साथ
कुछ मामलों में कर्मचारी को मुआवजा (compensation) भी दिया जाता है।
मतलब, अगर आपका बॉस बार-बार वेतन रोके, तो ये कोई “आम दफ्तर की बात” नहीं है—ये कानून तोड़ना है और इसके लिए जेल भी हो सकती है।
सबूत रखना बहुत जरूरी है
कई बार कर्मचारी परेशान तो होता है, लेकिन शिकायत करते समय उसके पास दस्तावेज नहीं होते। इसलिए हमेशा कुछ चीजें अपने पास रखें—
- ऑफर लेटर या अपॉइंटमेंट लेटर
- बैंक स्टेटमेंट, जिसमें सैलरी डिपॉज़िट न दिख रहा हो
- HR या मैनेजर को भेजे गए ईमेल
- कंपनी के साथ चैट रिकॉर्ड
- सैलरी स्लिप (अगर पहले मिलती रही हो)
ये सब सबूत आपको कानून की प्रक्रिया में मदद करेंगे।
निजी कंपनी, छोटे संस्थान, कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी — सब पर लागू होता है कानून
कई लोग सोचते हैं कि ये नियम सिर्फ सरकारी या बड़ी कंपनियों के लिए हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है।
- निजी कंपनियाँ
- स्टार्टअप
- दुकानों में काम करने वाले कर्मचारी
- कॉन्ट्रैक्ट या आउटसोर्स कर्मचारी
- छोटी फर्मों और ऑफिसों के कर्मचारी
सब पर ये कानून बराबर लागू होता है।
अगर आपने काम किया है तो आपको वेतन मिलना ही चाहिए—ये आपका हक़ है, उपकार नहीं।
अगर कंपनी सैलरी नहीं दे रही, तो क्या करें?
1. HR या मैनेजर को लिखित ईमेल करें
सिर्फ बोलने से काम नहीं चलता। ईमेल करें, ताकि आपके पास लिखित रिकॉर्ड रहे।
- विनम्र भाषा में लिखें कि “मेरी सैलरी अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। कृपया इसकी स्थिति बताएं।”
2. कंपनी को आधिकारिक शिकायत भेजें
अगर जवाब नहीं मिलता, तो दोबारा लिखित में शिकायत भेजें। यह आपकी ‘पहली आधिकारिक कार्रवाई’ मानी जाती है।
3. जिला या राज्य श्रम आयुक्त के पास शिकायत दर्ज करें
यह सबसे प्रभावी तरीका है।
आपको साथ में लगाना होगा—
- HR को भेजा ईमेल
- बैंक स्टेटमेंट
- ऑफर लेटर
- पहचान पत्र
श्रम आयुक्त कंपनी को नोटिस भेजता है और कंपनी को जवाब देना ही पड़ता है।
4. पुलिस में FIR दर्ज कराएं (गंभीर मामलों में)
अगर कंपनी जानबूझकर वेतन रोक रही है या महीनों से सैलरी नहीं दे रही, तो FIR भी दर्ज की जा सकती है।
5. लेबर कोर्ट में केस फाइल करें
यह तब किया जाता है जब—
- कंपनी बंद हो गई हो
- मालिक जानबूझकर भाग रहा हो
- HR जवाब नहीं दे रहा हो
- महीनों से सैलरी नहीं मिली हो
लेबर कोर्ट आपको बकाया वेतन और हर्जाना दोनों दिलवा सकती है।
एक महीने काम करवाकर सैलरी न देना—सीधी धोखाधड़ी है
अगर कंपनी ने आपको पूरा महीना काम करवाया और पैसे नहीं दिए, तो—
- यह कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन है
- यह वेतन रोकने का अपराध है
- और यह श्रम कानून के खिलाफ है
ऐसे में आप तुरंत शिकायत कर सकते हैं।
अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना ज़रूरी है
भारत में लाखों कर्मचारी सिर्फ इसलिए नुकसान झेलते हैं क्योंकि वे अपने हक़ के बारे में जानते ही नहीं। कंपनी देर करे, बहाने बनाए, या बार-बार टाले—आपको डरने की ज़रूरत नहीं। कानून आपके साथ है। अगर आपने ईमानदारी से काम किया है तो आपकी सैलरी कोई आपकी “मेहरबानी” नहीं—आपका अधिकार है।
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