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Pitrapaksh 2024: तर्पण, Shraadh और पिंडदान का महत्व और प्रक्रिया

Rahul Pandey September 17, 2024 1 minute read
Pitrapaksh

हिंदू धर्म में Pitrapaksh को विशेष महत्व दिया जाता है। यह वह समय होता है जब हम अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। 

Pitrapaksh

Pitrapaksh हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करने के लिए विविध धार्मिक कर्मकांड करते हैं।

 Pitrapaksh 2024, 17 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है और 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर समाप्त होगा। इस दौरान पितरों के तर्पण के लिए जल और तिल का विशेष महत्व है, और यह प्रक्रिया धार्मिक परंपराओं के अनुसार की जाती है।

 

Table of Contents

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      • तर्पण क्यों किया जाता है जल और तिल से?
      • Pitrapaksh में कितनी पीढ़ियों का श्राद्ध किया जाता है?
      • कौन कर सकता है तर्पण और श्राद्ध?
      • श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया
      • Pitrapaksh 2024 में विशेष दिन और तिथियों का महत्व
      • उदाहरण के लिए:
      • पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध और ऋषि तर्पण
      • Pitrapaksh 2024 के अद्भुत संयोग और धार्मिक महत्व
      • पितृदोष से मुक्ति और आशीर्वाद का महत्व
  • About the Author
    • Rahul Pandey

तर्पण क्यों किया जाता है जल और तिल से?

तर्पण और श्राद्ध कर्म के दौरान जल और तिल का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। इसे “तिलांजलि” भी कहा जाता है। इसका धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है। जल को शीतलता और त्याग का प्रतीक माना गया है। यह जीवन के आरंभ से लेकर मोक्ष तक साथ रहता है। वहीं, तिल को सूर्य और शनि से जोड़ा गया है, जिन्हें पिता-पुत्र का प्रतीक माना जाता है। इस तरह से तिल हमारे पितरों से भी संबंध रखता है। जल और तिल के माध्यम से तर्पण करने से पितर तृप्त होते हैं और प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

 

Pitrapaksh में कितनी पीढ़ियों का श्राद्ध किया जाता है?

Pitrapaksh के दौरान तीन पीढ़ियों का श्राद्ध किया जाता है – पितृ (पिता), पितामह (दादा), और परपितामह (परदादा)। ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य कन्या राशि में आता है, तो पितर अपने परिजनों के पास आते हैं। तीन पीढ़ियों को देव तुल्य माना गया है – पिता को वसु के समान, दादा को रुद्र के समान और परदादा को आदित्य के समान। यह मान्यता भी है कि एक सामान्य मनुष्य की स्मरण शक्ति भी तीन पीढ़ियों तक ही रहती है।

 

कौन कर सकता है तर्पण और श्राद्ध?

तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं हैं। आमतौर पर पुत्र, पौत्र, भतीजा, या भांजा श्राद्ध करता है। लेकिन यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, तो धेवता (पुत्री का पुत्र) और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं। अगर यह भी संभव न हो, तो पुत्री या बहू भी श्राद्ध कर सकती है। इसलिए श्राद्ध कर्म किसी भी निकटतम संबंधी द्वारा किया जा सकता है, ताकि पितरों को तृप्ति मिल सके।

Pitrapaksh

श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया

तर्पण करने के लिए सबसे पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ता और गाय का अंश निकाला जाता है। इसके बाद किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प रखकर कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण किया जाता है। तर्पण के दौरान “ॐ पितृदेवताभ्यो नम:” का उच्चारण किया जाता है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

Pitrapaksh 2024 में विशेष दिन और तिथियों का महत्व

Pitrapaksh 2024 की शुरुआत 17 सितंबर से हो रही है। इस दिन चतुर्दशी तिथि पूर्वाह्न 11:44 बजे तक रहेगी, जिसके बाद पूर्णिमा तिथि लग जाएगी। इस बार कोई तिथि क्षय न होने के कारण पूरे 16 दिन श्राद्ध होंगे। इन 16 दिनों के दौरान हर दिन किसी न किसी तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

19 सितंबर को द्वितीया और प्रतिपदा का श्राद्ध होगा।

20 सितंबर को तृतीया तिथि का श्राद्ध होगा।

22 सितंबर को पंचमी तिथि का श्राद्ध होगा।

2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध का समापन होगा।

पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध और ऋषि तर्पण

Pitrapaksh की पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध विशेष महत्व रखता है। इसे “ऋषि तर्पण” कहा जाता है। इस दिन अगस्त्य मुनि का तर्पण किया जाता है, जो देवताओं और ऋषियों के रक्षक माने जाते हैं। इस दिन पिंडदान और तर्पण के अलावा पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान-पुण्य भी किया जाता है। साथ ही गाय, कौआ और कुत्ते के लिए भोजन निकालने की परंपरा भी है, जो श्राद्ध कर्म का एक अभिन्न हिस्सा है।

श्राद्ध में क्या करना चाहिए और क्या नहीं?

श्राद्ध पक्ष के दौरान कुछ चीजों की खरीदारी और उपयोग से बचने की सलाह दी जाती है, जैसे:

 

झाड़ू – यह आर्थिक और घरेलू स्थिरता से जुड़ा माना जाता है।

सरसों का तेल – इसे नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा माना गया है।

नमक – यह वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर सकता है।

इन चीजों की खरीदारी पितृपक्ष में वर्जित मानी जाती है। इसके अलावा, पितरों की तृप्ति के लिए भोजन में सात्विकता का पालन करना चाहिए और भोग लगाते समय पूरे विधि-विधान का ध्यान रखना चाहिए।

 

Pitrapaksh 2024 के अद्भुत संयोग और धार्मिक महत्व

इस बार Pitrapaksh का प्रारंभ 17 सितंबर को अद्भुत संयोगों के साथ हो रहा है। चतुर्दशी तिथि के बाद पूर्णिमा तिथि लगने से 17 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी की जाएगी, जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान पितर पृथ्वी लोक पर अपने परिजनों से मिलने आते हैं और उनके द्वारा किए गए तर्पण और श्राद्ध से तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह भी माना जाता है कि पितर इस समय अपने परिवार को समृद्धि, सुख और शांति का आशीर्वाद देते हैं।

 

पितृदोष से मुक्ति और आशीर्वाद का महत्व

Pitrapaksh के दौरान श्राद्ध कर्म, तर्पण, और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस व्यक्ति पर पितरों की कृपा होती है, उसे जीवन में किसी प्रकार की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। साथ ही पितृदोष से भी मुक्ति मिलती है, जो ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जीवन में आने वाली बाधाओं का मुख्य कारण माना जाता है।

Pitrapaksh हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने का समय है। इन 16 दिनों के दौरान किए गए धार्मिक कर्मकांड न केवल पितरों को तृप्त करते हैं, बल्कि परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि भी लाते हैं।

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