pregnant women health: दिल्ली-एनसीआर की जहरीली हवा, गर्भवती महिलाओं और अजन्मे बच्चों के लिए बढ़ता खतरा
pregnant women health: दिल्ली-एनसीआर की हवा एक बार फिर ज़हर बन चुकी है। शहर के आसमान में धुआं, धूल और धुंध का ऐसा मिश्रण घुल गया है कि सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) लगातार 400 के आसपास बना हुआ है, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। इस जहरीली हवा का असर सबसे ज़्यादा उन लोगों पर पड़ रहा है जो पहले से ही संवेदनशील हैं — जैसे बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं।
गर्भावस्था एक ऐसा समय होता है जब एक महिला का शरीर दो जिंदगियों की ज़िम्मेदारी निभा रहा होता है — अपनी और अपने बच्चे की। लेकिन जब हवा में ज़हर घुला हो, तो यह सफर और भी मुश्किल हो जाता है।
हवा में छिपा अदृश्य खतरा
जब हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, तो PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण शरीर के अंदर चले जाते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि फेफड़ों की दीवारों को पार कर सीधे रक्त प्रवाह में घुस जाते हैं। डॉक्टर बताते हैं कि गर्भवती महिलाओं में ये कण प्लेसेंटा (गर्भनाल) तक पहुंच सकते हैं, जिससे बच्चे के विकास पर सीधा असर पड़ता है।
अध्ययनों से पता चला है कि गर्भवती महिलाओं के प्रदूषित वातावरण में रहने से समय से पहले डिलीवरी, कम जन्म वजन, और कभी-कभी गर्भपात तक की संभावना बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, प्रदूषण के लंबे असर से बच्चे की फेफड़ों की क्षमता, संज्ञानात्मक विकास और इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो सकता है।
doctor tips for pregnant women in pollution
दिल्ली के कई बड़े अस्पतालों ने बताया है कि पिछले कुछ हफ्तों में सांस की तकलीफ, थकान, सिरदर्द और एलर्जी से जुड़ी शिकायतें गर्भवती महिलाओं में काफी बढ़ी हैं।
एम्स की एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ने कहा — “गर्भवती महिलाओं को इस मौसम में बाहर निकलने से बचना चाहिए। प्रदूषित हवा न केवल उनके लिए बल्कि भ्रूण के विकास के लिए भी नुकसानदेह है। थोड़ी सी लापरवाही गंभीर परिणाम ला सकती है।”
डॉक्टरों का कहना है कि प्रदूषण से शरीर में सूजन (inflammation) बढ़ जाती है। यह स्थिति गर्भावस्था में जटिलताएँ पैदा कर सकती है, जैसे ब्लड प्रेशर बढ़ना, प्री-एक्लेम्पसिया और थकान।
air pollution prevention during pregnancy
हालांकि हवा को साफ करना तुरंत संभव नहीं है, लेकिन कुछ छोटे कदम गर्भवती महिलाओं को इस खतरे से काफी हद तक बचा सकते हैं:
- सुबह या देर शाम बाहर न निकलें — इन समयों में प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है।
- घर की खिड़कियाँ बंद रखें, और यदि संभव हो तो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।
- बाहर जाने की ज़रूरत पड़े तो N95 या N99 मास्क पहनें।
- पानी खूब पिएं और अपनी डाइट में एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर चीज़ें जैसे मौसमी फल, हरी सब्ज़ियाँ और मेवे शामिल करें।
- घर में इनडोर पौधे जैसे एलोवेरा या स्पाइडर प्लांट रखें, जो हवा की गुणवत्ता थोड़ी बेहतर करते हैं।
- हल्की एक्सरसाइज या योग घर के अंदर ही करें।
- और सबसे ज़रूरी — डॉक्टर से नियमित संपर्क में रहें।
अगर किसी भी तरह की सांस लेने में दिक्कत, खांसी, या सीने में जलन महसूस हो तो तुरंत चिकित्सक को दिखाएं।
यह सिर्फ सेहत नहीं, एक जिम्मेदारी भी है
प्रदूषण अब सिर्फ मौसम की समस्या नहीं रहा, यह हमारे समाज की जिम्मेदारी बन चुका है। जब एक गर्भवती महिला जहरीली हवा में सांस लेती है, तो उसके साथ-साथ उसके अजन्मे बच्चे पर भी वही असर होता है। ऐसे में प्रदूषण से लड़ना सिर्फ सरकार का नहीं, हर नागरिक का कर्तव्य है।
हमें यह समझना होगा कि जब हम सड़कों पर गाड़ियों का धुआं छोड़ते हैं या कचरा जलाते हैं, तो हम अनजाने में किसी बच्चे की पहली सांस को खतरे में डाल रहे होते हैं।
क्या कहा विशेषज्ञों ने?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पर्यावरण अध्ययन विभाग की प्रोफेसर ने हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा, “दिल्ली की हवा अब सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं, आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व का सवाल बन चुकी है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह ‘साइलेंट इमरजेंसी’ है।”
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रदूषण के कारण जन्म लेने वाले बच्चों में एलर्जी, अस्थमा और कमजोर इम्युनिटी जैसी समस्याएं भविष्य में ज्यादा देखी जा सकती हैं।
उम्मीद की किरण
सरकारें क्लाउड सीडिंग, निर्माण कार्यों पर रोक और स्मॉग टावर जैसी कोशिशें कर रही हैं। लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब लोग खुद जागरूक होंगे। अगर हर व्यक्ति अपनी गाड़ी कम चलाए, सार्वजनिक परिवहन अपनाए, और घर के आसपास पेड़ लगाए — तो यह स्थिति धीरे-धीरे सुधर सकती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे खुद को और अपने बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए इन उपायों को गंभीरता से लें। क्योंकि आखिरकार, स्वस्थ माँ ही स्वस्थ समाज की नींव रखती है।
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