
Purnia News: डायन है उसे जलाओ! - पूर्णिया में तंत्र-मंत्र के नाम पर जलाया गया पूरा परिवार
Purnia News: बिहार के पूर्णिया से एक ऐसी दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है, जिसने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है।
यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, हकीकत है – एक गांव, एक तांत्रिक, और अंधविश्वास का ऐसा ज़हर जिसने एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया।
घटना पूर्णिया पूर्व के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के रजीगंज पंचायत के टेटगामा आदिवासी टोला की है, जहां 70 साल की कातो देवी को कुछ लोगों ने डायन बता दिया। और सिर्फ इसी एक आरोप के दम पर पूरे गांव ने मिलकर उसकी पारिवारिक कब्र खुद बना दी।
तांत्रिक का तंत्र, और गांव का अंधा विश्वास
गांव में रहने वाले नकुल उरांव नाम के एक मिट्टी माफिया ने कथित रूप से एक तांत्रिक के कहने पर यह अफवाह फैलाई कि कातो देवी डायन है और उसके कारण गांव में लोग बीमार पड़ रहे हैं। तांत्रिक ने जो कहा, गांव वालों ने आंख मूंद कर मान लिया। फिर क्या था – करीब 50 से 60 लोग रात के अंधेरे में एकजुट होकर कातो देवी के घर पर टूट पड़े।
उनके बेटे बाबूलाल उरांव, बहू, पोता, और बाकी सदस्य – किसी को नहीं बख्शा।
घर में घुसकर मारा, पीटा, बांधा और फिर… आग में फूंक दिया।
40 हज़ार में मंगवाया गया ट्रैक्टर, दफनाए गए शव
सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि ये कोई गुस्से में हुई भीड़ की हरकत नहीं थी – यह सब एक योजनाबद्ध मर्डर था।
पुलिस जांच में सामने आया कि मुख्य आरोपी नकुल उरांव ने अपने साथी मु. सनाउल्ला से 40 हज़ार रुपये में ट्रैक्टर ट्रॉली किराये पर मंगवाया।
पांचों अधजले शव उसी पर लादे गए और गांव से करीब एक किलोमीटर दूर एक ईंट भट्ठे के पास जेसीबी से गड्ढा खुदवाकर उन्हें दफना दिया गया।
अब गांव वीरान है… और डरावना भी
घटना के बाद टेटगामा गांव का हर घर सूना हो गया है। जिसने भी इस हत्या में हाथ बंटाया था, वो सब फरार हैं। मृतक बाबूलाल उरांव का बेटा सोनू कुमार, जो इस खौफनाक वारदात का चश्मदीद है, उसने पुलिस को पूरी जानकारी दी। उसके मुताबिक, “गांव के लोगों ने हमारे पूरे परिवार को घसीटकर ले जाकर आग के हवाले कर दिया… मैं अकेला बच गया।” अब पुलिस कई थानों की फोर्स, डॉग स्क्वॉड और दो डीएसपी की निगरानी में पूरे इलाके में जांच कर रही है।
अंधविश्वास का ज़हर और शिक्षा की कमी
पूर्णिया का यह टोला अभी भी 20वीं सदी के अंधकार में जी रहा है। यह वही क्षेत्र है जिसकी आत्मा को कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी कहानियों में उकेरा था। रेणु की कहानियों में भूत, प्रेत और डायन जैसे अंधविश्वासों का जिक्र तो था, लेकिन इतनी क्रूरता नहीं थी।
टेटगामा गांव में आज भी बच्चों का स्कूल जाना जरूरी नहीं समझा जाता। अभिभावक भी मानते हैं कि “बस दो वक्त की रोटी मिल रही है, वही काफी है।” यही कारण है कि इस इलाके में शिक्षा का प्रतिशत बेहद कम है और अंधविश्वास का असर बेहद गहरा।
सवाल हम सब से है…
- क्या आज भी हम उसी समाज में जी रहे हैं जहां डायन कह दो और इंसान को जिंदा जला दो?
- क्या विकास सिर्फ शहरों तक सीमित रह गया है?
- क्या ऐसी घटनाएं पूरे बिहार की छवि को धूमिल नहीं करती?
- इस घटना ने न सिर्फ पूर्णिया को शर्मसार किया है, बल्कि पूरे समाज को यह सोचने पर मजबूर किया है कि *अब भी हम कितना पीछे हैं।*
पुलिस की कार्रवाई और उम्मीद की एक किरण
फिलहाल इस मामले में कई गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। मुख्य आरोपी नकुल उरांव पुलिस की गिरफ्त में है।
पुलिस यह भी पता लगा रही है कि वह तांत्रिक कौन था जिसने गांव को भड़काया।
राज्य सरकार और प्रशासन पर अब दबाव है कि वो ऐसे अंधविश्वासी और हिंसक मानसिकता वाले लोगों के खिलाफ कड़ा कदम उठाएं।
ये वक्त है सवाल उठाने का, चुप रहने का नहीं
“डायन” कोई सच नहीं, सिर्फ एक सामाजिक कलंक है।
और जब तक समाज इसे सच मानता रहेगा, तब तक निर्दोष महिलाएं और परिवार इसी तरह जलते रहेंगे।
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