
Rishi Panchami 2025 : इस व्रत की कथा, महत्व और पूजा विधि – क्यों जरूरी है कथा का पाठ?
Rishi Panchami 2025: भारत में हर पर्व और व्रत के पीछे एक गहरी भावना और लोककथा छिपी होती है। इन्हीं में से एक है ऋषि पंचमी व्रत, जो हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल यह व्रत 28 अगस्त 2025 को पड़ रहा है और इसका शुभ मुहूर्त सुबह 11:05 बजे से दोपहर 1:39 बजे तक है।
क्या है ऋषि पंचमी व्रत का महत्व?
हिंदू धर्म में स्त्रियों के मासिक धर्म को लेकर कई नियम और परंपराएं रही हैं। प्राचीन काल में इसे एक विशेष अवस्था माना जाता था और उस समय कुछ धार्मिक कार्यों से दूर रहने की परंपरा थी। माना जाता है कि मासिक धर्म के दौरान अगर कोई स्त्री अनजाने में या भूलवश कुछ धार्मिक नियमों का पालन न कर पाए, तो उसे शुद्धि और दोष मुक्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए।
ऋषि पंचमी व्रत सप्तऋषियों की पूजा के लिए समर्पित है। सप्तऋषि – वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि और गौतम – को हिंदू धर्म में ज्ञान, तप और धर्म के प्रतीक माना गया है। इस व्रत को करने से माना जाता है कि स्त्रियों को दोषों से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार पर ऋषियों का आशीर्वाद बना रहता है।
व्रत की मुख्य विशेषताएं
- यह व्रत खासतौर पर महिलाएं करती हैं।
- इस दिन गंगा स्नान या किसी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है।
- पूजा के समय सप्तऋषियों का पूजन किया जाता है।
- व्रत के दौरान कथा पाठ करना अनिवार्य माना जाता है।
क्यों जरूरी है व्रत कथा का पाठ?
कहा जाता है कि व्रत बिना कथा के अधूरा होता है। कथा के माध्यम से हम उस व्रत के पीछे छिपे भाव और संदेश को समझ पाते हैं। ऋषि पंचमी की कथा हमें बताती है कि कर्म, नियम और श्रद्धा का जीवन में कितना महत्व है।
ऋषि पंचमी की पौराणिक कथा
कथा कुछ इस प्रकार है –
बहुत समय पहले एक नगरी में एक किसान और उसकी पत्नी रहते थे। एक दिन किसान की पत्नी मासिक धर्म के समय भी अपने काम करती रही और धार्मिक नियमों का पालन नहीं कर पाई। इसके कारण उसे दोष लगा और पति भी इस दोष से ग्रसित हो गया।
पुनर्जन्म में पत्नी को कुतिया और पति को बैल के रूप में जन्म मिला। लेकिन उनका बेटा सुचित्र इस जन्म में मानव रूप में था और वह अपने माता-पिता को पहचानता था। दोनों माता-पिता अपने पुत्र के यहां रहने लगे।
एक दिन सुचित्र के घर ब्राह्मण भोजन के लिए आए। सुचित्र की पत्नी ने भोजन तैयार किया, लेकिन जैसे ही वह बाहर गई, एक सांप आया और भोजन में विष छोड़ गया। कुतिया ने यह सब देखा और अपने बेटे और बहू की जान बचाने के लिए तुरंत भोजन में अपना मुख डाल दिया, ताकि कोई विषाक्त भोजन न खा सके।
बहू ने यह देखकर गुस्से में कुतिया को घर से निकाल दिया। रात में कुतिया ने अपने पति यानी बैल को सारी बात बताई। संयोग से पुत्र ने भी यह बातचीत सुन ली।
इसके बाद सुचित्र ऋषि के पास गया और माता-पिता के दोष से मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि उसे और उसकी पत्नी को ऋषि पंचमी का व्रत करना चाहिए। सुचित्र ने वैसा ही किया और माता-पिता को पशु योनि से मुक्ति मिल गई।
इस कथा से सीख क्या मिलती है?
यह कथा हमें कई बातें सिखाती है:
- धार्मिक नियमों का पालन करना जरूरी है, लेकिन सबसे बड़ा धर्म है सदाचार और कर्तव्य।
- माता-पिता का सम्मान और उनकी रक्षा करना संतान का कर्तव्य है।
- ऋषि पंचमी जैसे व्रत हमें शुद्धि, भक्ति और कृतज्ञता का संदेश देते हैं।
पूजा विधि (संक्षेप में)
- सुबह स्नान करें – संभव हो तो गंगा या किसी पवित्र नदी में।
- सप्तऋषियों की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- गंध, फूल, दीप और नैवेद्य से पूजा करें।
- व्रत कथा का पाठ करें।
- अंत में व्रत का संकल्प लें और ब्राह्मणों को दान दें।
आज के समय में इसका महत्व
आज की व्यस्त और आधुनिक जीवनशैली में लोग अक्सर परंपराओं को सिर्फ एक रस्म मानकर निभाते हैं। लेकिन इन व्रतों और कथाओं में जीवन की गहरी बातें छिपी होती हैं – जैसे कर्म का फल, परिवार के प्रति जिम्मेदारी और आत्मशुद्धि का भाव।
ऋषि पंचमी का व्रत न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि गलतियों का प्रायश्चित करना और सही मार्ग अपनाना हमेशा संभव है।
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