Sarvapitri Amavasya: Pitro की विदाई और दुर्गा पूजा का आरंभ

Sarvapitri Amavasya हिंदू धर्म में एक विशेष दिन है, जो पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का अवसर प्रदान करता है। यह दिन पितृपक्ष के समापन का प्रतीक है और इसे Mahalya Amavasya के नाम से भी जाना जाता है। महालया का दिन न केवल पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत का भी प्रतीक है, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में।

Sarvapitri Amavasya
Sarvapitri Amavasya

Sarvapitri Amavasya का धार्मिक महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष 15 दिनों का होता है, और इसका अंतिम दिन Sarvapitri Amavasya के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को पितरों की विदाई का दिन भी माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि देते हैं, तर्पण और श्राद्ध करते हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद दे सकें। पवित्र नदियों में स्नान करना, दान देना, और ब्राह्मणों को भोजन कराना भी इस दिन के प्रमुख अनुष्ठानों में शामिल है।

Sarvapitri Amavasya और दुर्गा पूजा का आरंभ

Sarvapitri Amavasyaका दिन पश्चिम बंगाल में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन से 10-दिवसीय दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, महालया के दिन देवी दुर्गा शिवलोक से धरती पर आती हैं, और उनके आगमन के साथ ही दुर्गा पूजा की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं। महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए देवी दुर्गा को ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों से बनाया था। इस कथा के अनुसार, Mahalya Amavasya का दिन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है।

Sarvapitri Amavasya
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Sarvapitri Amavasya और तर्पण की विधि

Sarvapitri Amavasyaका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा तर्पण और श्राद्ध होता है, जो पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। इस दिन जिन पूर्वजों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए विशेष रूप से तर्पण किया जाता है। तर्पण के दौरान कुश, जौ, काले तिल और अक्षत का उपयोग किया जाता है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण किया जाता है, क्योंकि दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा माना गया है। तर्पण के बाद, जरूरतमंदों को भोजन कराना और दान देना भी शुभ माना जाता है।

पूर्वजों के लिए तर्पण और श्राद्ध का महत्व

तर्पण का शाब्दिक अर्थ है जल अर्पण करना। यह एक धार्मिक क्रिया है, जिसके माध्यम से पितरों की आत्मा की शांति के लिए जल अर्पित किया जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना। Mahalya Amavasya के दिन तर्पण और श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर परिवार की रक्षा करते हैं।

पितरों की आत्मा की शांति के लिए इस दिन विशेष भोजन तैयार किया जाता है, जिसे कौए, गाय, और कुत्ते को खिलाया जाता है। पितरों के लिए भोजन बनाने की परंपरा यह दर्शाती है कि हम अपने पूर्वजों को भूले नहीं हैं, और हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रयासरत हैं।

महालया का शाब्दिक अर्थ और इसके महत्व

महालया संस्कृत के दो शब्दों ‘महा’ और ‘आलया’ से मिलकर बना है। ‘महा’ का अर्थ है ‘महान’ और ‘आलया’ का अर्थ है ‘निवास स्थान’। इस प्रकार, महालया का अर्थ है ‘महान निवास’, यानी देवी दुर्गा का पृथ्वी पर आगमन। यह दिन बंगाल में विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है। महालया के दिन, देवी दुर्गा की मूर्ति की आंखों को बनाने की परंपरा होती है, जिसे ‘चक्षु दान’ कहा जाता है।

Mahalya Amavasya के दौरान दुर्गा पूजा की शुरुआत

महालया के दिन से ही दुर्गा पूजा का आरंभ हो जाता है। इस दिन से बंगाल में दुर्गा पूजा का माहौल तैयार होता है, और लोग देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना की तैयारियों में जुट जाते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान देवी दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजा जाता है, जिन्होंने महिषासुर का वध किया था। महालया के दिन लोग रवींद्रनाथ टैगोर के गीत सुनते हैं और देवी दुर्गा के आगमन का स्वागत करते हैं।

Sarvapitri Amavasya 2024: तिथि और समय

Sarvapitri Amavasya 2024 2 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन, पितृपक्ष का समापन होगा और दुर्गा पूजा की शुरुआत होगी। इस दिन पितरों के लिए तर्पण करने का शुभ मुहूर्त है, जो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति कराता है। इस दिन की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में होती है, और लोग अपने पितरों को जल अर्पित करते हैं।

Mahalya Amavasya एक आध्यात्मिक और धार्मिक दिन है, जो पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का अवसर प्रदान करता है। यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक भी है, और देवी दुर्गा के धरती पर आगमन का सूचक है। महालया से दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत होती है, जो न केवल बंगाल, बल्कि पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।

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