आज भारतीय Share Market में भारी गिरावट देखने को मिली। Sensex 1,264.2 अंक गिरकर 83,456 पर पहुंचा, जिससे बाजार में 6 लाख करोड़ रूपये स्वाहा हो गए। जबकि Nifty 50 इंडेक्स भी 0.97% गिरकर 25,548.4 अंकों पर पहुंच गया। दुनिया के बाजारों में कमजोर संकेतों और मध्य पूर्व में तनाव के बढ़ने के कारण घरेलू बाजारों में गिरावट का माहौल है। बीएसई मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स भी लाल निशान में कारोबार कर रहे हैं, जबकि धातु क्षेत्र को छोड़कर सभी सेक्टोरल इंडेक्स में गिरावट दर्ज की गई है।
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Toggleप्रमुख शेयरों में गिरावट और बढ़त
Nifty में टॉप गेनर्स में जेएसडब्ल्यू स्टील, ओएनजीसी, टाटा स्टील, ग्रासिम और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल रहे, जबकि टॉप लूजर्स में एशियन पेंट्स, बीपीसीएल, श्रीराम फाइनेंस, टाटा मोटर्स, और ईशर मोटर्स प्रमुख हैं। बीपीसीएल लगभग 2.8% गिरावट के साथ सबसे अधिक नुकसान में रहा, जबकि जेएसडब्ल्यू स्टील ने 3% की बढ़त दर्ज की।
30 Sensex कंपनियों में से टाटा मोटर्स, एशियन पेंट्स, लार्सन एंड टुब्रो, एक्सिस बैंक, महिंद्रा एंड महिंद्रा, रिलायंस इंडस्ट्रीज, मारुति, कोटक महिंद्रा बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, और एचडीएफसी बैंक ने सबसे ज्यादा नुकसान उठाया।
तेल आपूर्ति बाधाओं की आशंका से Share Market में दबाव
विश्लेषकों का मानना है कि घरेलू बाजारों में तेल की आपूर्ति बाधित होने की आशंका के कारण अधिक बिकवाली का दबाव बना हुआ है। मध्य पूर्व में बढ़ते संघर्षों ने निवेशकों के बीच चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि इससे तेल की वैश्विक आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ सकता है। तेल की कीमतों में उछाल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी हानिकारक साबित हो सकती है, क्योंकि भारत अपनी तेल और दूसरी ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा बाहर से खरीदता है।
वैश्विक बाजारों में मंदी का असर
Sensex और Nifty की यह गिरावट एशियाई बाजारों के रुझानों से मेल खाती है, जो 1.5% की गिरावट के साथ कारोबार कर रहे हैं। बाजार में गिरावट के लिए मुख्य कारण मिडिल ईस्ट क्राइसिस का बढ़ना है, जिसमें ईरान द्वारा इजराइल पर हमला किये जाना और इजराइल द्वारा प्रतिक्रिया स्वरूप ईरान को इसके लिए ‘कीमत चुकाने’ की चेतावनी देना शामिल है। साथ ही इजराइल की तरफ से ईरान के नुक्लीअर इंस्टॉलेशंस पर हमला किये जाने पर विचार करने की भी खबरें आ रही हैं।
1 अक्टूबर रात को, ईरान ने इजराइल पर लगभग 200 मिसाइलों से हमला किया था, जिसके जवाब में इजराइल ने कहा कि वह ईरान से बदला लेगा। इस पूरे संघर्ष ने तेल सप्लाई पर भारी दबाव डाल दिया है, जिससे दुनिया भर के बाजारों में उथल-पुथल मची हुई है।
FII की भारी बिकवाली
वैश्विक निवेशकों द्वारा बड़ी मात्रा में बिकवाली से भी बाजार प्रभावित हुआ। विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने 1 अक्टूबर को ₹5,579.35 करोड़ की इक्विटी बेची, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) ने ₹4,609.55 करोड़ की खरीदारी की। FII की यह लगातार तीसरे दिन की बिकवाली थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि FII अभी भी चीनी शेयरों में निवेश के लिए अपने पैसे निकाल रहे हैं, क्योंकि हांगकांग के शेयरों की वैल्यूएशन भारतीय शेयरों की तुलना में सस्ती है। इसका बात का असर भी भारतीय बाजारों पर स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है।
SEBI के नए डेरिवेटिव नियमों का प्रभाव
भारतीय बाजार नियामक सेबी (SEBI) द्वारा डेरिवेटिव ट्रेडिंग के लिए कड़े नियम लागू किए गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है की इसके चलते भी बाजार में गिरावट आई है। नए नियमों के तहत वीकली ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स निराशा का माहौल है।
क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल
मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतों में भी वृद्धि हुई है। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स 1.24% बढ़कर $74.82 प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था, जबकि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड फ्यूचर्स 1.37% बढ़कर $71.06 प्रति बैरल पर पहुंच गया। तेल की कीमतों में यह उछाल भारतीय बाजारों के लिए एक और मुसीबत के रूप में आयी है, क्योंकि भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है और तेल की कीमतों में वृद्धि से देश की आयात लागत बढ़ जाती है।
बाजार का भविष्य: कमजोर वैश्विक संकेत
विश्लेषकों का कहना है कि निकट भविष्य में Share Market में स्थिरता की संभावना कम है, क्योंकि बाजार पर मंदी का दबाव लगातार बना हुआ है। हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था में अच्छी मानसूनी बारिश के बावजूद ग्रामीण मांग में गिरावट देखी जा रही है, जो कंस्यूमर मांग को कमजोर कर सकती है। इसके अलावा, तेल की कीमतों में वृद्धि और FII की बिकवाली ने बाजार के मनोबल को और कमजोर कर दिया है।
मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव, FII की भारी बिकवाली और SEBI के नए नियमों के कारण भारतीय शेयर बाजार में गिरावट आई है। निवेशकों को सतर्क रहने और बाजार में किसी भी नई एंट्री से पहले तकनीकी संकेतों को ध्यान में रखने की सलाह दी जा रही है। बाजार में मंदी का यह दौर कुछ समय तक बना रह सकता है, क्योंकि वैश्विक तनाव और कच्चे तेल की कीमतें बाजार की दिशा को प्रभावित कर रही हैं।
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