
Sheetla Saptami एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जो माता शीतला देवी को समर्पित होता है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएँ अपने परिवार की समृद्धि, बच्चों के स्वास्थ्य और सुख-शांति के लिए माता शीतला की पूजा करती हैं। यह पर्व विशेष रूप से चेचक, खसरा, त्वचा रोग और संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए मनाया जाता है। चलिए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजा विधि।
Sheetla Saptami क्या है?
बता दें कि शीतला सप्तमी मुख्य रूप से माता शीतला को समर्पित एक व्रत और पूजन पर्व है। यह व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन कुछ स्थानों पर इसे अष्टमी तिथि को भी मनाया जाता है, जिसे शीतला अष्टमी या बसोड़ा भी कहा जाता है। इस दिन घरों में ताजे भोजन को नहीं पकाया जाता, बल्कि एक दिन पहले बना हुआ ठंडा भोजन ही ग्रहण किया जाता है। वही यह भजन पहले शीतला माता पर चढ़ाया जाता है उसके बाद खुद इस भोजन को ग्रहण करना होता है।
माता शीतला का परिचय
माता शीतला को हिन्दू धर्म में रोगों से बचाने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इन्हें चेचक और अन्य त्वचा रोगों की देवी माना जाता है। शीतला माता को एक हाथ में झाड़ू और दूसरे में जल से भरा कलश धारण करते हुए दर्शाया जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि स्वच्छता और शुद्धता से रोगों का नाश होता है। वही शीतला माता का व्रत करने से और पूजा करने से बच्चों पर भी कोई अर्चना नहीं आती है।
Sheetla Saptami का महत्व
माता शीतला की पूजा करने से चेचक, खसरा, त्वचा रोग और अन्य संक्रामक बीमारियाँ नहीं होतीं। इस दिन विशेष रूप से स्वच्छता पर ध्यान दिया जाता है। कहा जाता है की माता की पूजा करने से खसरा जैसी बीमारी से बचा जा सकता है। माता की पूजा करने से मां बच्चों की रक्षा करती है। वही माता शीतला की कृपा से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। और खासकर इस व्रत को हिंदू संस्कृति में बहुत ही महत्व दिया जाता है। सभी महिलाएं इस व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर मां शीतला की पूजा करती हैं।
Sheetla Saptami की पूजा विधि
•महिलाएँ व्रत का संकल्प लेकर माता शीतला की पूजा करती हैं।
•इस दिन ताजे भोजन को नहीं पकाया जाता, बल्कि एक दिन पहले का बना हुआ भोजन खाया जाता है। माता पर चढ़ाया जाता है।
•प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करना आवश्यक होता है।
•पूजा स्थल और रसोई की अच्छे से सफाई की जाती है।
Sheetla Saptami की पूजा
शीतला माता की मूर्ति या चित्र के समक्ष घी का दीपक जलाया जाता है।और उन्हें हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, और फूल अर्पित किए जाते हैं।माता को ठंडा भोजन जैसे बासी रोटी, दही, चीनी, चूरमा, और मीठे चावल का भोग लगाया जाता है। वही इस व्रत में माता को एक दिन पहले नवाय जाता है।इस दिन शीतला माता की कथा पढ़ी या सुनी जाती है।कथा के बाद माता की आरती गाई जाती है।प्रसाद वितरण के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।
Sheetla Saptami व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक गाँव में एक महिला प्रतिदिन भोजन बनाने के बाद झूठे हाथों से बच्चों को खाना खिला देती थी और घर में सफाई का ध्यान नहीं रखती थी। एक दिन माता शीतला देवी ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और स्वच्छता अपनाने की सलाह दी, परंतु महिला ने इसे अनदेखा कर दिया।कुछ ही दिनों में गाँव में महामारी फैल गई और उसके बच्चे बीमार पड़ गए। तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने माता शीतला की पूजा की। माता की कृपा से उसके बच्चे ठीक हो गए। तब से यह परंपरा बन गई कि लोग शीतला माता का व्रत और पूजन करें ताकि बीमारियाँ न फैलें।
Sheetla Saptami से जुड़े प्रमुख स्थल
भारत में कई मंदिर हैं जहाँ माता शीतला की पूजा विशेष रूप से की जाती है:
- शीतला माता मंदिर, गुड़गांव (हरियाणा) – यह सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
- शीतला माता मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – यहाँ चैत्र मास में विशेष उत्सव होता है।
- शीतला माता मंदिर, राजस्थान – यहाँ भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं।
- मध्य प्रदेश और गुजरात के मंदिर – यहाँ भी इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है।
शीतला सप्तमी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि स्वच्छता, स्वास्थ्य और समाज में अनुशासन का भी प्रतीक है। माता शीतला की पूजा करने से बीमारियों से बचाव होता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। और घर के सभी बच्चों बड़ों पर मां की कृपा बनी रहती है।
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