बीते 22 दिनों में 7 राज्यों से 25 BLO deaths की खबर ने इस अभियान पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची के डिजिटाइजेशन के लिए चल रहे SIR campaign पर विवाद गहराता जा रहा है। 51 करोड़ से अधिक मतदाताओं के घर-घर पहुंचने की जिम्मेदारी संभाल रहे 5.32 लाख से अधिक बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारी) लगातार भारी कार्यभार का सामना कर रहे हैं। बीते 22 दिनों में 7 राज्यों से 25 BLO deaths की खबर ने इस अभियान पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई राज्यों में यह मामला राजनीतिक रंग लेने लगा है, जबकि निर्वाचन आयोग फिलहाल राज्यों और जिला प्रशासन की रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है।
टीएमसी का दावा: सिर्फ बंगाल में 34 मौतें
पश्चिम बंगाल में SIR campaign को लेकर सबसे अधिक तनाव दिख रहा है। राज्य के मंत्री अरुप बिस्वास ने दावा किया कि SIR के दबाव में 34 लोगों की मौत हुई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे “पीछे के दरवाजे से एनआरसी लागू करने” का प्रयास बताया। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया से लोगों में डर फैलाया जा रहा है।
वहीं, भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने टीएमसी के आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा कि “टीएमसी के दबाव में मतदाता सूची में फर्जी और संदिग्ध नाम जोड़े जा रहे हैं।”
निर्वाचन आयोग के सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि अब तक बीएलओ की मौत का कोई मामला “काम के दबाव” से जुड़ा हुआ सिद्ध नहीं हुआ है। अंतिम रिपोर्ट आना बाकी है।
यूपी में दो BLO deaths ने हिलाया सिस्टम
उत्तर प्रदेश में बीएलओ की मौतों ने विवाद को और हवा दी है। गोंडा में शिक्षक व बीएलओ विपिन यादव की खुदखुशी ने सबको झकझोर दिया।
सोमवार को जहर खाकर जान देने से पहले उन्होंने अपने पिता से फोन पर कहा था कि प्रशासन उन पर ओबीसी वोटरों के नाम हटाने और सवर्ण मतदाताओं के नाम बढ़ाने का दबाव डाल रहा है। पिता सुरेश यादव ने गंभीर आरोप लगाए कि मना करने पर एसडीएम और बीडीओ अधिकारी निलंबन और गिरफ्तारी की धमकी दे रहे थे।
विपिन की पत्नी सीमा ने भी कहा कि अधिकारी आधार न देने वालों के नाम जोड़ने के निर्देश दे रहे थे, जिससे पति मानसिक दबाव में थे।
बरेली में सर्वेश गंगवार की अचानक मौत
26 नवंबर को बरेली में बीएलओ सर्वेश गंगवार अचानक गिर पड़े और अस्पताल में उनकी मौत हो गई। परिजनों का कहना है कि देर रात तक चल रहे SIR campaign कार्य और लगातार सर्वर समस्याओं के कारण उनके भाई अत्यधिक तनाव में थे।
बीएलओ की मौतों को लेकर चिंता इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि अगले साल से देशभर में जनगणना शुरू होगी और उसमें भी सबसे बड़ा बोझ शिक्षकों पर ही पड़ेगा।
एक्सपर्ट की सलाह “सिस्टम सुधरे तो संकट कम हो”
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि SIR की प्रक्रियाओं को “सिस्टम-फ्रेंडली” बनाकर बीएलओ का दबाव काफी हद तक कम किया जा सकता है। उन्होंने उदाहरण दिया मध्यप्रदेश में एप पर कैप्चा हटाने से कार्य आसान हुआ।
बड़े पैमाने पर फॉर्म अपलोड करने से सर्वर बैठ जाता है, इसलिए रात में अपलोडिंग की व्यवस्था की गई। दिसंबर में शिक्षकों पर स्कूलों में कोर्स पूरा कराने का दबाव भी रहता है, जिससे दोहरी समस्या हो जाती है।
रावत ने कहा कि समस्याओं का समाधान “बीएलओ के स्तर पर” नहीं, बल्कि सिस्टम और तकनीक के स्तर पर किया जाना चाहिए।
SIR campaign डिजिटाइजेशन में राजस्थान सबसे आगे
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार SIR डिजिटाइजेशन में कुछ राज्यों की प्रगति इस प्रकार है—
राजस्थान – 82.61%
मध्य प्रदेश – 78.50%
प. बंगाल – 78.42%
गुजरात – 73.37%
तमिलनाडु – 65.42%
SIR पर नेताओं के बयान
राहुल गांधी: “SIR के नाम पर भाजपा पिछड़े, दलित, गरीब वोटरों को लिस्ट से हटाकर अपने अनुसार मतदाता सूची तैयार कर रही है।”
सुधांशु त्रिवेदी, भाजपा: “विपक्ष की तरह यह आरोप भी झूठा साबित होगा। पहले EVM पर झूठ फैलाया, अब वोटर लिस्ट पर।”
अखिलेश यादव: “भाजपा-आयोग 3 करोड़ नाम काटने की तैयारी में है। मृतक बीएलओ के परिजनों को 1-1 करोड़ का मुआवजा मिलना चाहिए। सपा 2-2 लाख देगी।”
इधर, चुनाव आयोग ने बंगाल में सीईओ कार्यालय पर हुए विरोध-प्रदर्शन को “गंभीर सुरक्षा उल्लंघन” बताया है और कोलकाता पुलिस आयुक्त से 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी “SIR नई प्रक्रिया होना चुनौती का आधार नहीं”
सुप्रीम कोर्ट ने SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा SIR को इसलिए चुनौती नहीं दी जा सकती कि यह पहली बार हो रहा है। आयोग के पास फॉर्म-6 में दर्ज प्रविष्टियों की सत्यता जांचने की संवैधानिक शक्ति है। आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, और आधार होने मात्र से किसी को मतदाता नहीं बनाया जा सकता। यदि किसी मतदाता का नाम हटाया जाएगा, तो उसे पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
गुरुवार को SIR campaign मामले की अगली सुनवाई होगी।
SIR campaign पर बढ़ती मौतें, राजनीतिक आरोप और तकनीकी समस्याएं इस प्रक्रिया को राष्ट्रीय बहस का केंद्र बना चुकी हैं। आयोग की रिपोर्ट और कोर्ट के आगामी फैसले तय करेंगे कि यह अभियान आगे किस दिशा में बढ़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: Bihar SIR में Aadhaar card को मिला मान्यता, लेकिन not for citizenship
