
Skandmata Puja Vidhi: कैसे हुआ तारकासुर का अंत और क्यों खास है यह दिन? जानिए कथा और पूजा का महत्व
Skandmata Puja Vidhi: शारदीय नवरात्रि का हर दिन मां दुर्गा के एक अलग स्वरूप की पूजा को समर्पित होता है। इस बार नवरात्रि का छठा दिन विशेष है, क्योंकि आज मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाएगी। सामान्य रूप से मां स्कंदमाता की आराधना नवरात्रि के पांचवें दिन होती है, लेकिन इस बार तिथियों के संयोग के कारण उनका व्रत छठे दिन रखा गया है।
मां स्कंदमाता देवी पार्वती का ही एक स्वरूप हैं और भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता होने के कारण उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। इन्हें कमल के आसन पर विराजमान दिखाया जाता है, जहां उनकी गोद में बाल कार्तिकेय विराजमान रहते हैं। एक हाथ में कमल का पुष्प और दूसरे हाथ से भक्तों को आशीर्वाद देती हुई मां स्कंदमाता का यह रूप भक्तों को संतान सुख, वैभव और जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है।
मां स्कंदमाता की पौराणिक कथा
प्राचीन समय में तारकासुर नामक एक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। जब ब्रह्माजी उसके सामने प्रकट हुए तो उसने अमरता का वरदान मांगा। लेकिन ब्रह्माजी ने समझाया कि संसार में कोई भी अमर नहीं हो सकता। तब तारकासुर ने चतुराई से कहा कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो। ब्रह्माजी ने ‘तथास्तु’ कहकर वरदान दे दिया।
वरदान पाते ही तारकासुर का अत्याचार बढ़ गया। उसने देवताओं को पराजित कर स्वर्गलोक तक पर कब्जा कर लिया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। आखिरकार सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और समाधान पूछा। विष्णु जी ने बताया कि तारकासुर का वध केवल शिव पुत्र ही कर सकते हैं। इसका अर्थ यही था कि भगवान शिव का विवाह होना जरूरी है।
उस समय भगवान शिव गहरी तपस्या में लीन थे। देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना पर उन्होंने माता पार्वती से विवाह किया। विवाह के बाद माता पार्वती के गर्भ से एक अत्यंत तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसे कार्तिकेय या स्कंद के नाम से जाना गया।
माता पार्वती ने स्वयं कार्तिकेय को युद्ध कला और अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया। थोड़े ही समय में कार्तिकेय एक महान योद्धा बन गए। जब समय आया, तो देवताओं ने उन्हें अपना सेनापति बनाया। युद्ध में कार्तिकेय ने अपनी वीरता और मां की शिक्षा के बल पर तारकासुर का वध कर दिया। इस प्रकार तीनों लोक उसके आतंक से मुक्त हुए।
मां स्कंदमाता का महत्व
मां स्कंदमाता नवरात्रि की पांचवीं शक्ति हैं। वे करुणा और ममता की मूर्ति मानी जाती हैं। उनके गोद में सदैव बालक कार्तिकेय विराजमान रहते हैं। यह दृश्य इस बात का प्रतीक है कि मां अपने भक्तों की भी उसी तरह रक्षा करती हैं, जैसे अपने पुत्र की।
कहा जाता है कि मां स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। जिन दंपतियों को संतान की इच्छा होती है, वे विशेष रूप से इस दिन मां की आराधना करते हैं। इसके अलावा मां स्कंदमाता बुद्धि, ज्ञान और मोक्ष का वरदान भी देती हैं।
भक्तों का विश्वास है कि मां स्कंदमाता की उपासना करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।
पूजा विधि
नवरात्रि के छठे दिन मां स्कंदमाता की पूजा करने के लिए प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर मां स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। धूप-दीप, फल-फूल और नैवेद्य अर्पित करें। विशेष रूप से कमल का फूल मां को अर्पित करना शुभ माना जाता है।
इस दिन ‘ॐ देवी स्कंदमातायै नमः’ मंत्र का जाप करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है। कथा पाठ और आरती करने के बाद प्रसाद का वितरण करें।
कथा से मिलने वाली सीख
मां स्कंदमाता की कथा हमें यह संदेश देती है कि मातृत्व केवल ममता का प्रतीक ही नहीं, बल्कि शक्ति और प्रेरणा का स्रोत भी है। जिस तरह माता पार्वती ने कार्तिकेय को स्वयं तैयार किया और उन्हें राक्षस तारकासुर के वध के लिए प्रेरित किया, उसी तरह हर मां अपने बच्चों को जीवन में चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूत बनाती है।
मां स्कंदमाता का स्वरूप हमें यह भी बताता है कि सच्चे मन से की गई आराधना से असंभव भी संभव हो जाता है। भक्तों के लिए यह दिन आत्मबल और विश्वास को मजबूत करने का है।
यह भी पढ़े
Maa Kushmanda Worship: मां कुष्मांडा की आराधना का शुभ दिन, जानिए शुभ मुहूर्त, राहुकाल और योग