ऑस्ट्रेलिया में 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर लगाए गए दुनिया के “सबसे सख़्त सोशल मीडिया बैन” को चुनौती देते हुए 13 साल की एक बच्ची ने महज़ कुछ मिनटों में सिस्टम को चकमा दे दिया।
Social media safety concerns: ऑस्ट्रेलिया में 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर लगाए गए दुनिया के “सबसे सख़्त सोशल मीडिया बैन” को चुनौती देते हुए 13 साल की एक बच्ची ने महज़ कुछ मिनटों में सिस्टम को चकमा दे दिया। यह घटना सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स की उम्र-पुष्टि तकनीक की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
स्नैपचैट सहित दस प्रमुख प्लेटफ़ॉर्म्स पर लागू की गई Australia banned social media नई नीति के बाद, इन कंपनियों ने अपने कम उम्र के उपयोगकर्ताओं को अकाउंट वेरिफिकेशन के लिए नोटिफ़िकेशन भेजने शुरू कर दिए हैं। ऐसे ही एक नोटिफ़िकेशन के बाद 13 वर्षीय इसाबेल को अपना अकाउंट सक्रिय रखने के लिए उम्र साबित करनी थी।
बच्ची ने कैसे किया सिस्टम क्रैश?
इसाबेल ने बताया कि उसने अपनी मां की एक तस्वीर कैमरे के सामने दिखा दी और सिस्टम ने तुरंत उसकी उम्र को ‘वेरिफ़ाइड’ मान लिया। वह कहती है, “मैंने बस मम्मी की फोटो दिखाई और स्क्रीन पर ‘Thank you for verifying your age’ लिखा आ गया।” उसके मुताबिक, उसने सुना है कि कुछ उपयोगकर्ताओं ने उम्र वेरिफिकेशन के लिए मशहूर अमेरिकी गायिका बियोंसे की तस्वीर तक इस्तेमाल कर ली थी, और सिस्टम ने उसे भी स्वीकार कर लिया।
क्या है नया कानून?
10 दिसंबर 2024 से लागू इस कानून के तहत 16 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह का सोशल मीडिया अकाउंट रखने की अनुमति नहीं है। ऑस्ट्रेलियाई सरकार का दावा है कि यह नीति बच्चों को साइबर बुलिंग, हानिकारक कंटेंट और ऑनलाइन शोषण से बचाने के लिए बनाई गई है। सरकार का कहना है कि बड़ी संख्या में माता-पिता इस कदम का समर्थन करते हैं।
हालाँकि इसाबेल की मां मेल, जो पहले इस कानून को लेकर सकारात्मक थीं, अब इसकी व्यवहारिकता पर सवाल उठा रही हैं। वह कहती हैं कि कानून से माता-पिता को कुछ हद तक मदद मिलनी चाहिए थी, लेकिन जिस तरह बच्चों ने इसे चकमा देना शुरू कर दिया है, उससे यह उम्मीद कमजोर पड़ गई है।
सोशल मीडिया कंपनियाँ दबाव में
नीति के अनुसार, जिम्मेदारी सीधे-सीधे सोशल मीडिया कंपनियों पर डाली गई है। कंपनियों को सुनिश्चित करना होगा कि उनका हर यूज़र कम से कम 16 साल का हो। ऐसा न करने पर उन पर 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, जो भारतीय मुद्रा में लगभग 295 करोड़ रुपये होता है।
सरकार ने उम्र सत्यापन के लिए किए गए अपने ट्रायल में पाया कि सभी तकनीकें—चाहे वह आईडी आधारित वेरिफिकेशन हो, फेस स्कैनिंग हो या एज इंफरेंस—तकनीकी रूप से संभव हैं, लेकिन कोई भी 100 प्रतिशत भरोसेमंद और सुरक्षित नहीं है। पहचान-पत्र आधारित वेरिफिकेशन सबसे सटीक माना गया, मगर इसमें संवेदनशील दस्तावेज़ साझा करने का जोखिम है। वहीं एज इंफरेंस यानी ऑनलाइन गतिविधियों के आधार पर उम्र का अनुमान लगाना भी पूरी तरह सटीक साबित नहीं हुआ।
स्नैपचैट के लिए उम्र और पहचान सत्यापन करने वाली कंपनी K-ID ने तकनीकी चुनौतियों को स्वीकार किया है। उनके अधिकारी ल्यूक डिलैनी ने कहा कि यह एक सतत लड़ाई है और सिस्टम को रोज़ बेहतर बनाना पड़ता है।
विशेषज्ञों और बच्चों की राय में अंतर
एक ओर सरकार और कई माता-पिता इस प्रतिबंध को बच्चों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी मानते हैं, वहीं दूसरी ओर विशेषज्ञ इसके प्रभावी होने पर गंभीर संदेह जताते हैं। ट्रायल में एक बात साफ हुई—किशोर आसानी से इन सिस्टमों को चकमा दे सकते हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी बच्चों पर पूरी तरह नियंत्रण न कर पाने की संभावना से चिंतित हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रतिबंध बच्चों को इंटरनेट के और असुरक्षित हिस्सों की ओर धकेल सकता है, जैसे अनमॉडरेटेड गेमिंग चैटरूम, जहां कट्टरपंथ और शोषण का खतरा अधिक रहता है।
इसके अलावा, टिकटॉक या यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्मों पर बच्चे बिना अकाउंट बनाए भी वीडियो देख सकते हैं। इससे कंटेंट पर किसी भी तरह की उम्र आधारित सुरक्षा नहीं लगती, जो और अधिक खतरनाक हो सकता है।
कानूनी चुनौतियाँ और उद्योग की प्रतिक्रिया
Facebook के पूर्व ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड प्रमुख स्टीफन शीलर का कहना है कि भारी जुर्माने भी बड़ी टेक कंपनियों को ज़्यादा प्रभावित नहीं करेंगे। उनके अनुसार, “यह उनके लिए बस एक पार्किंग फाइन जैसा है।” उनकी राय में कंपनियां इस बैन को धीरे-धीरे कमजोर करने की कोशिश कर सकती हैं।
इस बीच, दो किशोर पहले ही इस कानून को देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दे चुके हैं, इसे “असंवैधानिक” और “अत्यधिक नियंत्रणकारी” बताते हुए। गूगल और यूट्यूब की मालिक कंपनी अल्फाबेट भी अपने कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है।
मानवाधिकार संगठनों और कई कानून विशेषज्ञों ने भी इस नीति पर सवाल उठाए हैं, यह कहते हुए कि यह बच्चों की डिजिटल स्वतंत्रता पर अत्यधिक अंकुश लगाती है।
क्या यह नीति सफल हो पाएगी?
ऑस्ट्रेलिया की संचार मंत्री एनीका वेल्स का कहना है कि सरकार बच्चों को हानिकारक कंटेंट से बचाने और सोशल मीडिया कंपनियों की एल्गोरिद्म आधारित शक्ति को नियंत्रित करने के ठोस कदम उठाना चाहती है। वे मानती हैं कि यह नीति परफेक्ट नहीं है, मगर “इलाज की योजना” की तरह समय के साथ बेहतर हो सकती है।
वहीं इसाबेल जैसी किशोरियों का मानना है कि यह प्रतिबंध अंततः कामयाब नहीं होगा। इसाबेल कहती है, “अगर मेरा अकाउंट बैन भी हो गया, तो भी मैं कोई और ऐप इस्तेमाल कर लूंगी।”
नीति पर यह बहस जारी है कि क्या यह बच्चों को सुरक्षित रखेगी या उन्हें और जोखिमभरी डिजिटल दुनिया की तरफ़ धकेल देगी। अब यह देखना बाकी है कि तकनीकी खामियों, कानूनी चुनौतियों और बच्चों की जिज्ञासा के सामने यह बैन कितना टिक पाता है।
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