
Supreme Court on Himachal Pradesh: भारत के नक्शे से गायब हो जाएगा हिमाचल?" – सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी और हमारी जिम्मेदारी
Supreme Court on Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश… जब हम इस नाम को सुनते हैं, तो हमारी आँखों के सामने बर्फ से ढकी चोटियाँ, हरी-भरी वादियाँ और नदियों की मधुर ध्वनि गूंजने लगती है। लोग वहाँ जाते हैं सुकून और शांति की तलाश में। लेकिन सोचिए, अगर यही हिमाचल आने वाले समय में प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ के कारण खतरे में पड़ जाए, तो क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अगर हिमाचल प्रदेश में अनियंत्रित निर्माण और पर्यावरण विनाश इसी तरह जारी रहा, तो यह राज्य भारत के नक्शे से ही गायब हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
28 जुलाई 2025 को जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा –
“भगवान न करे ऐसा हो, लेकिन अगर हालात ऐसे ही चलते रहे, तो हिमाचल का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।”
कोर्ट ने साफ कहा कि हिमाचल में भूस्खलन, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाएँ पूरी तरह प्राकृतिक नहीं, बल्कि इंसानों द्वारा किए गए गलत विकास मॉडल का नतीजा हैं।
- अवैज्ञानिक तरीके से फोरलेन सड़कें बनाना
- हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स से नदियों का संतुलन बिगाड़ना
- पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई
- बारूद से पहाड़ उड़ाना
ये सब वजहें हिमाचल के पर्यावरण को खोखला कर रही हैं।
“राजस्व सब कुछ नहीं” – अदालत का संदेश
कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा –
“सिर्फ राजस्व कमाना ही लक्ष्य नहीं हो सकता। अगर कमाई के लिए पर्यावरण और पारिस्थितिकी को नष्ट किया गया, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं बचेगा।”
आज हम सड़कों और होटलों के नाम पर जंगल और नदियाँ खो रहे हैं। सतलुज जैसी ताक़तवर नदी अब एक छोटी धारा जैसी लग रही है। पहाड़ों की ढलानें कमजोर हो चुकी हैं और जरा सी बारिश में भूस्खलन होने लगता है।
हिमाचल के लोग और पर्यटक भी जिम्मेदार
केवल सरकार ही दोषी नहीं है। हम सभी पर्यटक भी जिम्मेदार हैं। सोचिए, जब हम छुट्टियाँ मनाने जाते हैं तो कितनी बेफिक्री से बोतलें, पॉलिथिन और डिस्पोजेबल सामान फेंक आते हैं।
दिल्ली से घूमने गईं रीना शर्मा कहती हैं –
“सच कहूँ तो पहले मुझे भी लगता था कि एक बोतल या पैकेट फेंकने से क्या फर्क पड़ेगा। लेकिन जब देखा कि हर जगह कचरे का ढेर है, तब समझ आया कि हम सब मिलकर कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं।”
अगर हम ही प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को क्या देंगे?
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से क्या कहा?
कोर्ट ने हिमाचल सरकार को आदेश दिया है कि चार हफ्तों में विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करें। इस रिपोर्ट में यह बताना होगा कि –
- अब तक पर्यावरण की रक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
- भूस्खलन वाले इलाकों में निर्माण पर क्या रोक लगी है।
- हाइड्रो प्रोजेक्ट्स और नदियों की सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं।
- पहाड़ी ढलानों को मजबूत करने के लिए क्या वैज्ञानिक कदम उठाए जाएंगे।
अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
पर्यटकों को क्या करना चाहिए?
अगर आप हिमाचल या किसी भी पहाड़ी क्षेत्र में जाते हैं, तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि पर्यावरण का ख्याल रखें।
कुछ छोटे-छोटे कदम बड़ा फर्क ला सकते हैं –
पानी की बोतल और डिस्पोजेबल चीजें न खरीदें, अपनी बोतल रिफिल करें।
- कचरा डस्टबिन में डालें। अगर डस्टबिन न मिले तो बैग में रखकर वापस शहर लौटकर फेंकें।
- छोटी दूरी पैदल तय करें, टैक्सी की जगह लोकल बस या शेयरिंग वाहन का इस्तेमाल करें।
- नदियों में साबुन या डिटर्जेंट का इस्तेमाल न करें।
- पेड़-पौधों को नुकसान न पहुँचाएँ और फूल-पत्तियाँ न तोड़ें।
- स्थानीय खान-पान खरीदें और उनकी संस्कृति का सम्मान करें।
याद रखिए – “Leave No Trace” यानी जगह को वैसा ही छोड़कर लौटें, जैसा आपने उसे पाया था।
हमारी जिम्मेदारी
हिमाचल केवल एक राज्य नहीं है, बल्कि भारत की धरोहर है। यह हमारी साँसों का स्रोत है, क्योंकि देश की 66% से ज़्यादा ऑक्सीजन देने वाली वनस्पति हिमालयी राज्यों से आती है। अगर हमने अभी भी अपनी आदतें और विकास की दिशा नहीं बदली, तो वह दिन दूर नहीं जब हिमाचल की सुंदर वादियाँ सिर्फ तस्वीरों और यादों में रह जाएँगी।
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