राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है।
Supreme Court on pollution: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सोमवार को प्रदूषण पर हुई सुनवाई में दो टूक कहा कि पराली जलाने को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए और न ही इस मुद्दे को हर साल की एक ‘रस्म’ की तरह दुहराया जा सकता है।
कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि केंद्र, आयोग और राज्य सरकारें समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठातीं, तो स्थिति हर साल बदतर होती जाएगी।
“दिल्ली में प्रदूषण को अक्टूबर में सूचीबद्ध कर छोड़ नहीं सकते” CJI सूर्यकांत
सुनवाई के दौरान CJI ने कहा कि अदालत इस मामले को सिर्फ अक्टूबर में सुनकर छोड़ नहीं देगी, बल्कि अब नियमित सुनवाई करेगी।
उन्होंने कहा, “हमने देखा है कि जब भी इस मामले पर सुनवाई होती है, वायु गुणवत्ता में कुछ सुधार देखने को मिलता है। इसका मतलब है कि निगरानी और जवाबदेही का सीधा प्रभाव पड़ता है।”
पीठ ने केंद्र सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को स्पष्ट संदेश दिया कि उनमें से कोई भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकता। अदालत ने कहा कि यह मान लेना गलत है कि इस समस्या का कोई समाधान नहीं है।
CAQM की कार्ययोजना पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने CAQM से उसकी अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं का विस्तृत खाका पेश करने को कहा है। CJI ने आयोग से सीधे पूछा “क्या आपकी कार्य योजना ने वास्तव में स्थिति को सुधारा है? क्या आपके लक्ष्य पूरे हुए हैं?”
उन्होंने कहा कि यदि कार्य योजना प्रभावी नहीं है, तो आयोग को वैकल्पिक उपायों पर गंभीरता से विचार करना होगा। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी ठोस रणनीति और परिणाम के केवल कागजों पर योजनाएं बनाते रहने का कोई लाभ नहीं।
पराली जलाने के मुद्दे पर कोर्ट का स्पष्ट रुख
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि आयोग ने राज्यों से विस्तृत सुझाव लेकर पराली जलाने, वाहन उत्सर्जन, निर्माण कार्यों की धूल, सड़क की धूल और बायोमास जलाने पर कार्य योजनाएं तैयार की हैं। हालांकि उन्होंने माना कि कार्यान्वयन में अभी भी कमी है। कोर्ट ने इस पराली के मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। CJI ने कहा, “पराली जलाने पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देना गलत है। हम इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि जिन लोगों पर आरोप लगाया जाता है, उनका यहां कोई प्रतिनिधित्व तक नहीं होता। सरकारें उन पर बोझ डालकर आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेती हैं।”
कोविड काल का उदाहरण देकर पूछा “तब नीला आसमान कैसे था?”
कोर्ट ने एक अहम बात उठाई “कोविड महामारी के दौरान भी पराली जलाई जा रही थी। फिर भी दिल्ली का आसमान साफ और नीला था। इसका जवाब किसी को देना होगा।”
CJI ने महामारी के दौरान वाहनों, उद्योगों और निर्माण गतिविधियों के बंद होने का हवाला देते हुए कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि दिल्ली की जहरीली हवा का सबसे बड़ा कारण कौन है। उन्होंने कहा कि असली कारणों की पहचान किए बिना केवल पराली के मुद्दे को उछालना तर्कसंगत नहीं है।
किसानों को दोष देना आसान लेकिन समाधान नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसानों पर दोषारोपण करना आसान है, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। CJI ने कहा “पराली के मुद्दे को राजनीति का खेल या अहंकार का सवाल नहीं बनाया जाना चाहिए। किसानों को समझाया जाए, उनकी मदद की जाए और उन्हें आवश्यक मशीनें उपलब्ध कराई जाएं।”
यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि हर साल अक्टूबर-नवंबर में पराली जलाने को दिल्ली की जहरीली हवा का प्रमुख कारण बताया जाता रहा है, जबकि विशेषज्ञ कई बार यह कह चुके हैं कि दिल्ली-एनसीआर में स्थानीय कारक जैसे वाहन प्रदूषण और निर्माण गतिविधियां भी बड़े पैमाने पर जिम्मेदार हैं।
अदालत का सख्त रुख, नियमित रिपोर्ट दें केंद्र और CAQM
सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि अब दिल्ली और आसपास के राज्यों को नियमित रूप से अपनी कार्य योजनाओं और उनके परिणामों की रिपोर्ट देनी होगी। अदालत ने कहा कि केवल निर्देश जारी करना पर्याप्त नहीं है; वास्तविक सुधार दिखना चाहिए।
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