विपक्षी दल कांग्रेस ने इस योजना पर सवाल उठाते हुए कहा है कि आयोग “बेहद जल्दबाजी” में काम कर रहा है और यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
चुनाव आयोग द्वारा हाल ही में घोषित “SIR 2.0” (Systematic Information Review 2.0) योजना को लेकर सियासी घमासान मच गया है। विपक्षी दल कांग्रेस ने इस योजना पर सवाल उठाते हुए कहा है कि आयोग “बेहद जल्दबाजी” में काम कर रहा है और यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। इतना ही नहीं, तीन राज्यों; कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल ने भी आयोग के इस फैसले का विरोध किया है, इसे “संविधान के दायरे से बाहर का निर्णय” बताया है।
क्या है SIR 2.0 (Systematic Information Review 2.0) योजना?
चुनाव आयोग ने इस महीने की शुरुआत में SIR 2.0 लॉन्च करने की घोषणा की थी। इस योजना का उद्देश्य वोटर लिस्ट की त्रुटियों को दूर करना, दोहराव वाले नामों की पहचान करना और आधार कार्ड व अन्य सरकारी डेटाबेस के माध्यम से मतदाता जानकारी की रियल-टाइम पुष्टि करना बताया गया है। आयोग का कहना है कि इससे मतदान प्रक्रिया और मतदाता पहचान की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
हालांकि कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने इसे “डेटा निगरानी का नया तरीका” बताते हुए इसकी नीयत पर सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस का आरोप: “मतदाता सूची में मनमानी की तैयारी”
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “चुनाव आयोग इतनी जल्दी में क्यों है? क्या किसी राजनीतिक दबाव में यह योजना लाई जा रही है? इस सिस्टम से मतदाता सूची में चयनात्मक बदलाव करने की संभावना बढ़ जाएगी।”
उन्होंने कहा कि (Systematic Information Review 2.0) का इस्तेमाल मतदाताओं की व्यक्तिगत जानकारी इकट्ठा करने और विपक्षी वोटरों को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है। पार्टी ने यह भी मांग की है कि जब तक इस योजना की पूरी प्रक्रिया संसद में प्रस्तुत नहीं की जाती, इसे लागू न किया जाए।
तीन राज्यों की आपत्ति
कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने चुनाव आयोग को लिखे पत्रों में Systematic Information Review 2.0 को लेकर आपत्ति दर्ज कराई है। उनका कहना है कि “आधार या अन्य निजी डेटा को मतदाता सूची से जोड़ना निजता के अधिकार का उल्लंघन है।”
तेलंगाना सरकार ने इसे “राज्य की अधिकारिता में हस्तक्षेप” करार दिया, जबकि पश्चिम बंगाल ने कहा कि आयोग को पहले राज्यों से परामर्श लेना चाहिए था।
आयोग की सफाई
विवाद के बाद चुनाव आयोग ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा है कि Systematic Information Review 2.0 किसी भी तरह की निजी जानकारी इकट्ठा नहीं करता। आयोग के अनुसार,“यह प्रणाली केवल वोटर लिस्ट में दोहराव, मृत मतदाताओं और त्रुटियों को पहचानने के लिए डिज़ाइन की गई है। इसमें किसी की निजता का हनन नहीं होता।” आयोग ने यह भी कहा कि यह योजना 2026 के लोकसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को अधिक सटीक और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक अहम कदम है।
विपक्ष को नहीं है भरोसा
विपक्षी दलों का तर्क है कि हाल के वर्षों में आयोग की निष्पक्षता पर लगातार सवाल उठे हैं, ऐसे में इस तरह की तकनीकी परियोजनाओं से “राजनीतिक दखल” की आशंका और गहरी हो सकती है। कांग्रेस ने कहा कि अगर आयोग वास्तव में पारदर्शिता चाहता है, तो उसे “राजनीतिक दलों और नागरिक संगठनों” को इस प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए।
विशेषज्ञों की राय
चुनाव विशेषज्ञ प्रो. एस.पी. त्रिपाठी के अनुसार,“तकनीकी सुधार जरूरी हैं, लेकिन जब इनका इस्तेमाल संवेदनशील डेटा से जुड़ा हो, तो पारदर्शिता और भरोसे का स्तर और ऊँचा होना चाहिए। Systematic Information Review 2.0 को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में टेस्ट करने के बाद ही लागू करना चाहिए।”

