The International Day of Non-Violence: शांति, सहिष्णुता और समझ के लिए 2 October को Mahatma Gandhi के सिद्धांतों का प्रसार

हर साल 2 October को, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ‘The International Day of Non-Violence’ मनाता है। यह दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायक Mahatma Gandhi की जयंती के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने अहिंसा के सिद्धांत का पालन करते हुए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया।

The International Day of Non-Violence
The International Day of Non-Violence

गांधी जी के विचार और उनकी अहिंसावादी जीवनशैली ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया। महात्मा गाँधी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कठिन चुनौतियों के बावजूद, शांति और अहिंसा के माध्यम से समाज में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 15 जून 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर 2 अक्टूबर को The International Day of Non-Violence के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इसका उद्देश्य शिक्षा और सार्वजनिक जागरूकता के माध्यम से अहिंसा का संदेश फैलाना है।

Mahatma Gandhi और अहिंसा के सिद्धांत

महात्मा गांधी का अहिंसा सिद्धांत सिर्फ शारीरिक हिंसा से परहेज नहीं था बल्कि यह एक मजबूत संघर्ष का तरीका था जिससे समाज और राजनीति में बड़े बदलाव लाने का प्रयास गांधी जी ने किया। गांधी जी का मानना था कि अहिंसा मानवता के पास सबसे बड़ी ताकत है, जो किसी भी विध्वंसक हथियार से अधिक शक्तिशाली है। उनके इन विचारों ने दुनिया भर में कई आंदोलनों को प्रेरित किया है और उन्हें वैश्विक स्तर पर आदर और सम्मान उनके इन विचारो के कारण ही दिया जाता है। उन्होंने कहा था, “अहिंसा मानव जाति के पास सबसे बड़ी शक्ति है। यह मानव ingenuity द्वारा बनाए गए सबसे विनाशकारी हथियार से भी अधिक शक्तिशाली है।”

गांधी जी का योगदान न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम में था, बल्कि उन्होंने पूरे विश्व को यह संदेश दिया कि परिवर्तन हिंसा के बिना भी संभव है। उनके नेतृत्व में किए गए आंदोलनों में डांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन जैसी महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल हैं, जिनमें अहिंसा के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विरोध किया गया था।

The International Day of Non-Violence की स्थापना

The International Day of Non-Violence की स्थापना का प्रस्ताव पहली बार जनवरी 2004 में ईरानी नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी द्वारा प्रस्तुत किया गया था। यह विचार सभी ने पसंद किया और 2007 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया। भारत के तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री आनंद शर्मा ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 140 सह-प्रायोजकों की ओर से इस प्रस्ताव को पेश किया। इस प्रस्ताव को मिला भारी समर्थन यह दर्शाता है कि महात्मा गांधी और उनके विचारों का विश्व स्तर पर कितना सम्मान किया जाता है। यह दिन अहिंसा, शांति और सहिष्णुता के संदेश को फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

The International Day of Non-Violence
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अहिंसा के महत्व पर जोर

अहिंसा का महत्व केवल युद्ध और हिंसा से बचने तक सीमित नहीं है। यह एक काफी गहरी प्रक्रिया है, जिसमें संवाद, समझ और सहयोग के माध्यम से हर प्रकार के मतभेदों को सुलझाया जाता है। गांधी जी ने हमेशा यह संदेश दिया कि समाज में शांति और स्थिरता प्राप्त करने के लिए बच्चों और युवाओं को शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा था, “अगर हम दुनिया में शांति लाना चाहते हैं, तो हमें बच्चों से शुरुआत करनी होगी।”

संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित एक और प्रस्ताव ने 21वीं सदी के पहले दशक (2001-2010) को ‘द इंटरनेशनल डिकेड फॉर अ कल्चर ऑफ पीस एंड नॉन-वॉयलेंस फॉर द चिल्ड्रेन ऑफ द वर्ल्ड’ के रूप में घोषित किया था। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बच्चों को अहिंसा और शांति की संस्कृति के माध्यम से सशक्त करना था, क्योंकि वे भविष्य के नेता हैं। इस तरह के प्रयासों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि शिक्षा और सार्वजनिक जागरूकता के माध्यम से अहिंसा का संदेश फैलाया जाए।

शांति और स्थिरता की आवश्यकता

आज के समय में, जब दुनिया के कई हिस्सों में हिंसा, असहिष्णुता और भेदभाव बढ़ रहे हैं, अहिंसा का सिद्धांत और भी प्रासंगिक हो जाता है। समाज में विभिन्न आधारों पर हो रहे भेदभाव जैसे जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक विचारधारा आदि के कारण शांति और स्थिरता को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। इसीलिए, The International Day of Non-Violence का उद्देश्य लोगों को यह याद दिलाना है कि मतभेदों को सुलझाने का सबसे प्रभावी तरीका संवाद, सहयोग और सहिष्णुता के माध्यम से है।

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Mahatma Gandhi का योगदान

महात्मा गांधी का योगदान न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में था, बल्कि उनकी विचारधारा ने दुनिया भर के स्वतंत्रता और मानवाधिकार आंदोलनों को प्रेरित किया है। उन्होंने स्वराज, स्वदेशी और असहयोग आंदोलन जैसे कई महत्वपूर्ण आंदोलनों की शुरुआत की, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध का उदाहरण बने।

The International Day of Non-Violence केवल महात्मा गांधी की विरासत का सम्मान करने के लिए नहीं है, बल्कि यह एक अवसर है कि हम अहिंसा, शांति और सहिष्णुता के महत्व को समझें और उसे अपने जीवन में लागू करें।

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