
आज के Tibet Earthquake ने 95 की जान ली: क्या है इसके कारण?
Tibet Earthquake ने 95 लोगों की जान ली और 130 से अधिक लोग घायल हो गए। यह भूकंप मंगलवार, 7 जनवरी 2025 को सुबह 9:05 बजे तिब्बत के तिंगरी काउंटी में आया, जो माउंट एवरेस्ट के लगभग 80 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। भूकंप की तीव्रता 6.8 मापी गई थी, हालांकि अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण (USGS) ने इसे 7.1 बताया। तिब्बत में इस भूकंप के चलते हुई जान-माल की भारी क्षति ने एक बार फिर यह साबित किया है कि यह क्षेत्र पृथ्वी के सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में से एक है।
भूकंप के झटके नेपाल, भूटान और भारत के कुछ हिस्सों में भी महसूस किए गए। यह प्राकृतिक आपदा वैश्विक स्तर पर चर्चा का कारण बन चुकी है। लेकिन इस भूकंप के पीछे कौन सी भौगोलिक प्रक्रिया जिम्मेदार है? आइए जानते हैं इस भूकंप के कारण और तिब्बत में भूकंप के बार-बार होने वाले कारणों के बारे में।
Tibet Earthquake के कारण क्या हैं?
तिब्बत और हिमालय क्षेत्र में भूकंपों का कारण मुख्य रूप से भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के बीच की टेक्टोनिक गतिविधि है। यह क्षेत्र पृथ्वी पर सबसे अधिक भूगर्भीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है। करीब 60 मिलियन साल पहले, भारतीय प्लेट और यूरेशियाई प्लेट की टक्कर ने हिमालय पर्वत और तिब्बत का गठन किया। यह टक्कर अब भी जारी है, और यही कारण है कि इस क्षेत्र में अक्सर भूकंप आते हैं।
भूकंप की ताजा लहर तिब्बत के ल्हासा ब्लॉक में एक रचना (rupture) के कारण आई, जो अत्यधिक भूकंपीय दबाव में है। ल्हासा ब्लॉक का यह क्षेत्र पिछले कुछ दशकों से भूगर्भीय सक्रियता का केंद्र बना हुआ है। इस प्रकार की टेक्टोनिक गतिविधि, जो भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के बीच हो रही है, भूकंपों को जन्म देती है।
भारतीय प्लेट और यूरेशियाई प्लेट का टकराव
भारतीय प्लेट और यूरेशियाई प्लेट का टकराव भूकंपीय गतिविधि के मुख्य कारणों में से एक है। इस टकराव के कारण भारत के भूगर्भीय क्षेत्र धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ रहे हैं और यूरेशियाई प्लेट को धक्का दे रहे हैं। इसका परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है और यह प्रक्रिया अब भी जारी है, जिससे लगातार भूकंपों की संभावना बनी रहती है।
हालांकि, भारतीय प्लेट का एक और दिलचस्प पहलू सामने आया है, जो “स्लैब टियर” (slab tear) के रूप में जाना जाता है। एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि भारतीय प्लेट का ऊपरी हिस्सा उसके निचले घने हिस्से से अलग हो रहा है। इस प्रक्रिया में पृथ्वी की सतह के नीचे गहरे स्तर पर बदलाव हो रहे हैं, जो भूकंपीय गतिविधि को बढ़ा सकते हैं। यह प्रक्रिया तिब्बत को दो भागों में विभाजित कर सकती है, हालांकि यह पृथ्वी की सतह पर किसी तरह की दरार या裂可能त नहीं बनेगी।
भूकंप के असर और वैज्ञानिक अध्ययन
यह भूकंप एक संकेत है कि तिब्बत क्षेत्र में आंतरिक बदलाव हो रहे हैं, जिनसे इस क्षेत्र में भविष्य में और भी अधिक भूकंप आने की संभावना हो सकती है। वैज्ञानिक इस क्षेत्र के भूकंपीय तरंगों और गहरे स्तर के भूकंपों का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि यह समझ सकें कि यह टेक्टोनिक गतिविधि और उसका प्रभाव भविष्य में क्या हो सकता है।
नेपाल और भारत में भी भूकंप के झटके महसूस हुए, लेकिन इन देशों में इस भूकंप से कोई बड़ी जानमाल की क्षति नहीं हुई। हालांकि, तिब्बत में भूकंप का प्रभाव बहुत व्यापक था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने स्थिति पर कड़ी नजर रखते हुए अधिकतम राहत कार्यों की दिशा में कदम उठाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही उन्होंने भूकंप के प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास और बचाव कार्यों को प्राथमिकता देने की बात कही है।
तिब्बत में भूकंपों का इतिहास
तिब्बत क्षेत्र में भूकंपों की कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी तिब्बत में बड़े भूकंप आए हैं। उदाहरण के लिए, 1950 में एक अत्यधिक शक्तिशाली 8.6 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसने इस क्षेत्र को हिलाकर रख दिया था। इसके अलावा, 2015 में नेपाल में आए भूकंप के झटके भी तिब्बत तक पहुंचे थे, जिससे इस क्षेत्र की भूकंपीय सक्रियता का संकेत मिलता है।
भूकंप के बाद की स्थिति और बचाव कार्य
भूकंप के बाद चीन सरकार ने आपातकालीन राहत कार्यों को तेज़ी से लागू किया। पर्यटन स्थल, विशेषकर माउंट एवरेस्ट के आस-पास के क्षेत्र को तत्काल बंद कर दिया गया है, ताकि पर्यटन से जुड़े संभावित खतरों को कम किया जा सके। राहत कार्यों में हेलीकॉप्टर और अन्य उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है, और प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
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