Tula Sankranti 2024, सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने के दिन मनाई जाती है। यह पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने में आता है, और इस वर्ष (2024) तुला संक्रांति 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसे तुला संक्रमण के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। खासकर उड़ीसा और कर्नाटक में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है।
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Toggleतुला संक्रांति का धार्मिक महत्व
तुला संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होने का विश्वास किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन की पूजा से व्यक्ति के करियर और कारोबार में वृद्धि होती है। इसके अलावा, तीर्थ स्नान, दान और सूर्य देव की आराधना से याचक की उम्र और आजीविका में वृद्धि होती है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि ऋग्वेद, पद्म पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत में सूर्य पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देना अत्यंत फलदायक माना जाता है।
तुला संक्रांति का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, 17 अक्टूबर 2024 को पुण्य काल सुबह 6:23 से 11:41 बजे तक रहेगा। महा पुण्य काल सुबह 6:23 से 9:47 बजे तक है। इस दिन सूर्य देव तुला राशि में 17 अक्टूबर से 16 नवंबर तक रहेंगे, जो इस पर्व को और भी विशेष बनाता है।
तुला संक्रांति की पूजा विधि
तुला संक्रांति की पूजा विधि सरल और प्रभावशाली है। पूजा की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- स्नान और शुद्धता: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
- पूजा की तैयारी: एक साफ स्थान पर सूर्य देव की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- जल चढ़ाना: सूर्य देव को जल अर्पित करें और उन्हें अर्घ्य दें। इस दौरान देवी लक्ष्मी और माता पार्वती की पूजा करें।
- भोग अर्पित करना: देवी को चावल, गेहूं, सुपारी के पत्ते, चंदन और कराई पौधों की शाखाओं का भोग लगाएं।
- मंत्रों का जप: इस समय विशेष मंत्रों का जप करें, जैसे “ॐ सूर्याय नमः”।
- आरती: अंत में आरती करके पूजा का समापन करें।
तुला संक्रांति की कथा
तुला संक्रांति के पीछे एक प्रसिद्ध कथा है जो कावेरी नदी की उत्पत्ति से संबंधित है। यह कथा विष्णु माया नाम की एक लड़की की है, जो भगवान ब्रह्मा की बेटी थी और बाद में कावेरी मुनि की बेटी बन गई। कावेरी मुनि ने विष्णु माया को कावेरी नाम दिया। अगस्त्य मुनि को कावेरी से प्रेम हो गया और उन्होंने उससे विवाह किया।
एक दिन, अगस्त्य मुनि अपने कामों में इतने व्यस्त हो गए कि उन्होंने अपनी पत्नी कावेरी से मिलने का समय नहीं निकाला। उनकी इस लापरवाही के कारण कावेरी मुनि के स्नान क्षेत्र में गिर जाती हैं और कावेरी नदी के रूप में प्रकट होती हैं। तभी से इस दिन को कावेरी संक्रमण या तुला संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।
Tula Sankranti 2024 का महत्व
तुला संक्रांति का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। अश्विन माह में पड़ने वाली यह संक्रांति अनजाने में किए गए पापों को काटने में सहायक मानी जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। सूर्य देव के 108 नाम का जप करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है।
इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है। परिवार के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करने और उन्हें चावल चढ़ाने से भविष्य में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है। तुला संक्रांति को दान-पुण्य करने से भी अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
कर्नाटक में इस दिन कावेरी नदी के तट पर मेला लगता है, जहाँ लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर स्नान करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। यह एक सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है, जहाँ लोग एक साथ मिलकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
निष्कर्ष
तुला संक्रांति न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह हमारे जीवन में सकारात्मकता और एकता का संदेश भी देती है। इस दिन सूर्य देव की आराधना, देवी लक्ष्मी की पूजा और दान-पुण्य करके हम अपने जीवन को समृद्ध और खुशहाल बना सकते हैं। इस पर्व को मनाकर हम अपने जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।
इस प्रकार, तुला संक्रांति एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे हमें श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति कर सकें।
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