
EVM पर उठे बड़े सवाल: अमेरिकी इंटेलिजेंस चीफ तुलसी गबार्ड बोलीं - "पेपर बैलेट ही सुरक्षित विकल्प", भारत में भी गरमाई बहस
चुनाव की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को लेकर एक बार फिर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर वैश्विक स्तर पर बहस छिड़ गई है। अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर और चर्चित नेता तुलसी गबार्ड ने हाल ही में EVM को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि EVM को हैक किया जा सकता है और इससे चुनाव नतीजों में हेरफेर की संभावना रहती है। उनका सुझाव है कि अमेरिका को फिर से पेपर बैलेट पर लौट आना चाहिए।
तुलसी गबार्ड का बयान और ट्रम्प की मौजूदगी में बवाल
गबार्ड ने यह टिप्पणी अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मौजूदगी में की, जिसके बाद अमेरिका में चुनावी सुरक्षा पर एक नई बहस तेज़ हो गई। गबार्ड के बयान के सोशल मीडिया पर वायरल होते ही दो धड़े बन गए — कुछ ने उनका समर्थन किया तो कुछ ने इसे राजनीतिक एजेंडा करार दिया।
गौरतलब है कि ट्रम्प ने हाल ही में एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत 2020 के चुनावों में हुई कथित गड़बड़ियों की जांच के निर्देश दिए हैं।
भारत में भी उठा सवाल: सुरजेवाला बोले- चुप क्यों है चुनाव आयोग?
भारत में कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया है। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर पूछा — जब अमेरिकी खुफिया प्रमुख EVM को लेकर चिंतित हैं, तो भारत का चुनाव आयोग और केंद्र सरकार क्यों चुप हैं?
उन्होंने कहा, “क्या चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को अमेरिकी टिप्पणी का संज्ञान नहीं लेना चाहिए? आखिर जिसे हमने भारत में सम्मानित किया, उसके बयान को नजरअंदाज करना कहां तक सही है?”
इलॉन मस्क ने भी उठाया था सवाल
टेस्ला और स्पेसX के CEO एलन मस्क ने भी पिछले साल EVM की सुरक्षा पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि EVM को इंसान या AI के जरिए हैक किया जा सकता है। भले ही यह संभावना कम हो, लेकिन खतरा बहुत बड़ा है। मस्क ने यहां तक कहा था कि अमेरिका को EVM का इस्तेमाल ही बंद कर देना चाहिए।
भारतीय चुनाव आयोग का जवाब: हमारी EVM दुनिया से अलग
भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने गबार्ड के बयान पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय EVM और अमेरिकी मशीनों के बीच अंतर स्पष्ट किया है:
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ऑपरेटिंग सिस्टम: भारतीय EVM में कोई OS नहीं होता, जबकि अमेरिकी मशीनें Windows या Linux पर आधारित होती हैं।
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कनेक्टिविटी: भारतीय EVM पूरी तरह ऑफलाइन होती है, जबकि अमेरिका की मशीनें इंटरनेट से जुड़ सकती हैं।
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प्रोग्रामिंग: एक बार प्रोग्राम होने के बाद भारतीय EVM में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
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VVPAT: भारत में हर वोट की पुष्टि एक पर्ची के रूप में होती है, जो मतदाता देख सकता है। अमेरिका में यह सुविधा नहीं है।
ECI के अनुसार अब तक 5 करोड़ से अधिक VVPAT पर्चियों का मिलान EVM वोटों से किया गया है और कोई भी गड़बड़ी सामने नहीं आई है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या कहता है?
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2002: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि EVM सुरक्षित और भरोसेमंद हैं।
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2013: कोर्ट ने EVM के साथ VVPAT अनिवार्य किया।
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2023: अब तक कोई तकनीकी हैकिंग का सबूत नहीं मिला।
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2025: 100% VVPAT गिनती की मांग कोर्ट ने खारिज की।
क्या अब फिर से लौटेगा पेपर बैलेट का दौर?
गबार्ड के बयान, एलन मस्क की टिप्पणियों और भारत में सुरजेवाला की मांगों के बाद सवाल उठ रहा है — क्या दुनिया को चुनावों की पारदर्शिता के लिए फिर से पेपर बैलेट की ओर लौटना चाहिए? या भारतीय मॉडल ही सबसे सुरक्षित और भरोसेमंद है?