बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के 70वीं प्रारंभिक परीक्षा के लिए परीक्षा प्रक्रिया में प्रस्तावित बदलावों को लेकर शुक्रवार को पटना में बड़ा प्रदर्शन देखने को मिला। बीपीएससी द्वारा परीक्षा के नए फॉर्मेट को लेकर छात्रों के बीच असंतोष और नाराजगी बढ़ती जा रही है। छात्रों की मुख्य मांग है कि परीक्षा को पारंपरिक तरीके से, एक शिफ्ट और एक पेपर के फॉर्मेट में लिया जाए, और प्रस्तावित नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को रद्द किया जाए। इस विरोध प्रदर्शन में छात्र संघ और कई प्रमुख नेता भी शामिल हुए, जो छात्रों के पक्ष में खड़े हो गए हैं।
BPSC Prilims से जुड़ा क्या है विवाद?
BPSC 70वीं प्रारंभिक परीक्षा के संदर्भ में विवाद की जड़ें उस बदलाव में हैं, जिसे बीपीएससी ने प्रस्तावित किया है। बीपीएससी का मानना है कि परीक्षा की कठिनाई स्तर को समान बनाने के लिए नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को लागू किया जाए। यह एक सांख्यिकीय प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य विभिन्न शिफ्टों में आयोजित परीक्षा के कठिनाई स्तर के भेद को कम करना है। हालांकि, इस प्रक्रिया से छात्रों में डर और असंतोष का माहौल बन गया है।
अभ्यर्थियों का कहना है कि इस नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया के कारण, उन छात्रों को नुकसान हो सकता है जिन्हें अपेक्षाकृत कठिन पेपर देना पड़ेगा। इसलिए वे चाहते हैं कि परीक्षा पारंपरिक तरीके से एक ही शिफ्ट में आयोजित की जाए, ताकि सभी के पास समान अवसर हो।
70वीं बीपीएससी प्रारंभिक परीक्षा में करीब 5 लाख छात्र शामिल होने वाले हैं और परीक्षा 925 परीक्षा केंद्रों पर आयोजित की जाएगी। परीक्षा की तारीख 13 दिसंबर तय की गई है, लेकिन इस बदलाव के विरोध में छात्र संगठनों ने एक बड़ा आंदोलन छेड़ दिया है।
प्रदर्शन और लाठीचार्ज
शुक्रवार दोपहर को पटना के बीपीएससी कार्यालय के बाहर छात्रों ने ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने बीपीएससी के प्रस्तावित नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया के खिलाफ नारेबाजी की और अपनी मांगें उठाईं। प्रदर्शन उग्र हो गया जब छात्र बीपीएससी कार्यालय की ओर मार्च करने लगे। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन जब प्रदर्शनकारी सड़क पर बैठकर यातायात में बाधा डालने लगे, तो पुलिस को हल्का लाठीचार्ज करना पड़ा। पटना के एसएसपी राजीव मिश्रा ने कहा कि प्रदर्शनकारी बार-बार अनुरोध करने के बाद भी नहीं हटे, जिसके चलते हल्का बल प्रयोग करना पड़ा। हालांकि, किसी को गंभीर चोट नहीं आई है और मामले की जांच सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से की जा रही है।
Khan Sir ने बढ़ाया प्रदर्शन का समर्थन
प्रदर्शन में एक और महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब प्रसिद्ध शिक्षक और यूट्यूबर Khan Sir छात्रों के समर्थन में आए। खान सर, जो अपनी शिक्षण शैली और छात्रों के बीच लोकप्रियता के लिए जाने जाते हैं, ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि बीपीएससी अध्यक्ष खुद सामने आकर यह स्पष्ट करें कि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया लागू नहीं की जाएगी। परीक्षा एक शिफ्ट और एक पेपर के फॉर्मेट में होनी चाहिए।”
खान सर ने यह भी साफ किया कि यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित नहीं है और छात्रों की मांग केवल पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए है। प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने खान सर को हिरासत में लिया, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया।
छात्रों की अन्य चिंताएं
नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया के अलावा, छात्रों ने रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में खामियों को लेकर भी अपनी नाराजगी जताई है। कई छात्रों का कहना है कि सर्वर की दिक्कतों के कारण उनके आवेदन अस्वीकार कर दिए गए हैं, और अब वे परीक्षा की तारीख बढ़ाने और सभी आवेदन स्वीकार करने की मांग कर रहे हैं। छात्रों की इस समस्या को लेकर भी प्रदर्शनकारियों ने आवाज उठाई है और बीपीएससी से सुधार की अपील की है।
राजनीतिक समर्थन भी मिला
प्रदर्शन को राजनीतिक समर्थन भी मिल रहा है। बिहार की प्रमुख विपक्षी पार्टी राजद के नेता तेजस्वी यादव ने इस आंदोलन का समर्थन करते हुए बीपीएससी से परीक्षा के पुराने फॉर्मेट को बहाल करने की मांग की। तेजस्वी यादव ने कहा, “बीपीएससी को बिना नॉर्मलाइजेशन के परीक्षा लेनी चाहिए, जैसे पहले होती थी। आयोग को छात्रों की समस्याओं का समाधान करना चाहिए। उनकी मांगों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।”
राजनीतिक समर्थन के साथ-साथ छात्रों के इस आंदोलन ने सरकार और बीपीएससी पर दबाव बढ़ा दिया है, ताकि वह उनकी मांगों को गंभीरता से सुने और कुछ ठोस कदम उठाए।
70वीं बीपीएससी परीक्षा का महत्व
70वीं बीपीएससी परीक्षा बिहार राज्य के प्रशासनिक और अन्य उच्च पदों के लिए अभ्यर्थियों का चयन करती है। यह परीक्षा राज्य में सरकारी नौकरी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण मार्ग है और लाखों छात्रों के लिए यह एक बड़ा अवसर होती है। इसलिए, छात्रों का इस परीक्षा से संबंधित प्रक्रिया पर इस तरह का विरोध जताना स्वाभाविक है। जब छात्रों को लगता है कि परीक्षा की पारदर्शिता और निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है, तो उनकी चिंता स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है।