राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित विशेष चर्चा Vande Mataram debate in parliament की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की
लोकसभा में सोमवार का दिन ऐतिहासिक रहा। राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित विशेष चर्चा Vande Mataram debate in parliament की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। अपनी एक घंटे से अधिक लंबी स्पीच में पीएम मोदी ने कहा कि “वंदे मातरम् अंग्रेजों को करारा जवाब था, यह नारा आज भी देश को प्रेरणा देता है।” उन्होंने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि बापू भी इस गीत को राष्ट्रीय गीत से आगे एक राष्ट्रीय भावना का प्रतीक मानते थे।
प्रधानमंत्री ने भाषण के दौरान ‘वंदे मातरम्’ 121 बार, ‘देश’ 50 बार, ‘भारत’ 35 बार, ‘अंग्रेज’ 34 बार और ‘बंगाल’ 17 बार कहा। भाषण में उन्होंने रचनाकार बंकिम चंद्र चटर्जी का 10 बार जिक्र किया। नेहरू, गांधी, मुस्लिम लीग और जिन्ना के ऐतिहासिक संदर्भों की चर्चा करते हुए उन्होंने गीत के नाम पर हुए विवादों और राजनीतिक निर्णयों की भी आलोचना की।
नेहरू पर निशाना “जिन्ना के सामने झुक गए”
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने 15 अक्टूबर 1936 को लखनऊ से वंदे मातरम् के खिलाफ अभियान शुरू किया। उनके अनुसार, कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू इस दबाव में आ गए।
पीएम ने कहा, “बजाय इसके कि नेहरू मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों का जवाब देते, उन्होंने वंदे मातरम् की पड़ताल शुरू कर दी।”
उन्होंने दावा किया कि पांच दिन बाद नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा और वंदे मातरम् की पृष्ठभूमि पर आपत्ति जताते हुए कहा कि “इससे मुस्लिम समुदाय को चोट पहुंच सकती है।” इसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने गीत के उपयोग की समीक्षा का निर्णय लिया।
मोदी ने कहा, “इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए।”
पीएम मोदी की स्पीच की 6 प्रमुख बातें
1.“वंदे मातरम् का स्मरण सदन का सौभाग्य”
मोदी ने कहा कि यह वही मंत्र है जिसने आजादी के आंदोलन को ऊर्जा दी। “जिस नारे ने बलिदान का मार्ग दिखाया, उसका स्मरण करना सदन का सौभाग्य है।”
2. 150 साल में भारत की यात्रा
पीएम ने तीन मील के पत्थर गिनाए। 50 वर्ष पूरे हुए, तब देश गुलाम था। 100 वर्ष पूरे हुए, तब देश आपातकाल के अंधेरे में था। 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं, जब भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
3. 1906 का बारीसाल जुलूस
मोदी ने कहा कि 20 मई 1906 को बारीसाल (अब बांग्लादेश) में 10 हजार लोग वंदे मातरम् का झंडा लेकर सड़कों पर उतरे। हिंदू, मुस्लिम, सभी समुदायों ने मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया।
4. बंगाल में वंदे मातरम् का प्रभाव
उन्होंने कहा, “बंगाल की गली-गली में वंदे मातरम् गूंजता था। हमारे जांबाज सपूत फांसी पर चढ़ते समय भी आखिरी सांस तक यह नारा लगाते थे।”
5. कांग्रेस पर हमला ‘INC से MNC’
पीएम ने कहा कि कांग्रेस की नीतियां आज भी आउटसोर्सिंग पर टिकी हैं। “INC चलते-चलते MNC हो गई है। जिन-जिन के साथ कांग्रेस जुड़ी है, वही वंदे मातरम् पर विवाद खड़ा करते हैं।”
6. तुष्टिकरण पर तीखी टिप्पणी
उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् के 1937 के विवाद को कांग्रेस ने राजनीतिक दबाव में हवा दी और इस महान गीत के साथ “अन्याय” किया।
संसद में वर्षभर का कार्यक्रम
राष्ट्रगीत के 150 वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार पूरे देश में सालभर कार्यक्रम आयोजित करेगी। 2 दिसंबर को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी दलों की बैठक बुलाई थी, जिसमें निर्णय हुआ कि 8 दिसंबर को लोकसभा में चर्चा, 9 दिसंबर को राज्यसभा में चर्चा होगी।
वंदे मातरम् पर चर्चा कराने की 5 वजहें
1.राष्ट्रीय भावना को मजबूत करना
सरकार चाहती है कि गीत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को सामने लाकर राष्ट्रीय एकता और गर्व का संदेश दिया जाए।
2. बंगाल में संदेश भेजना
3. वंदे मातरम् का जन्म और प्रभाव बंगाल से जुड़ा है। 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले यह मुद्दा राजनीतिक रूप से अहम माना जा रहा है।
4. 1937 का विवाद याद दिलाना
सरकार इस बात को उजागर करना चाहती है कि कांग्रेस ने धार्मिक आपत्तियों के कारण गीत के दूसरे हिस्से को हटा दिया था।
5. स्वतंत्रता आंदोलन की यादें ताज़ा करना
बंगाल विभाजन (1905) के खिलाफ हुए आंदोलनों में वंदे मातरम् केंद्रीय नारा था। सरकार इस ऐतिहासिक संदर्भ को फिर सामने लाना चाहती है।
6. संसद की सकारात्मक छवि
SIR जैसे विवादों के बीच सरकार चाहती है कि संसद का माहौल इस भावनात्मक चर्चा से सकारात्मक बने।
Vande Mataram debate in parliament पर विपक्ष का पक्ष
चर्चा में विपक्ष की ओर से लोकसभा में उपनेता प्रतिपक्ष गौरव गोगोई ने सबसे पहले अपनी बात रखी। विपक्ष ने कहा कि वंदे मातरम् पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन सरकार इसे राजनीतिक बनाना चाहती है।
150 वर्ष बाद भी वंदे मातरम् आज केवल एक गीत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना, आजादी के संघर्ष और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बनकर भारतीय लोकतंत्र के केंद्र में खड़ा है।
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