
voter list fact check वाराणसी की वोटर लिस्ट में ‘48 बच्चे’ नहीं, 48 शिष्य सोशल मीडिया का दावा भ्रामक
voter list fact check: सोचिए—एक ही व्यक्ति के 48 “बच्चे”, और उनमें से 11 एक ही साल में पैदा! सोशल मीडिया पर वायरल एक तस्वीर के साथ यही दावा किया जा रहा है। माहौल पहले से गरम है क्योंकि 7 अगस्त 2025 को राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर हेरफेर का आरोप लगाया था; ऐसे में यह तस्वीर “वोट चोरी” की बहस को और भड़का देती है। लेकिन हमारे फ़ैक्ट-चेक में जो सच सामने आया, वह इस वायरल दावे से बिल्कुल अलग है।
दावा क्या है?
वायरल लिस्ट में “रामकमल दास” नाम के व्यक्ति के “48 बेटे” दिखाए जा रहे हैं। इसे लोकसभा/विधानसभा की वोटर लिस्ट बताकर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
सच क्या है?
- यह लिस्ट 2023 के वाराणसी नगर निगम चुनाव की है, न कि लोकसभा या विधानसभा की। वायरल पेज वाराणसी नगर निगम के वार्ड नंबर 51 (भेलूपुर/काश्मीरीगंज क्षेत्र) से जुड़ा है। कई विश्वसनीय फ़ैक्ट-चेक और स्थानीय रिपोर्टों में इसकी पुष्टि हो चुकी है।
- रामकमल दास” कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि राम जानकी मठ के महंत—स्वामी रामकमल दास वेदांती हैं। मठ में रहने वाले शिष्य पारंपरिक “गुरु–शिष्य” परंपरा के अनुसार अपने दस्तावेज़ों में पिता के नाम की जगह गुरु का नाम लिखते हैं; यही नाम वोटर लिस्ट में भी दर्ज हुआ है। इसलिए “48 बेटे” नहीं, 48 शिष्य हैं।
- उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) ने भी स्पष्ट किया कि यह शहरी निकाय चुनाव (Urban Local Body) की लिस्ट है और धार्मिक मठों/आश्रमों में रहने वालों की पहचान कई दस्तावेज़ों में पिता की जगह गुरु के नाम से दर्ज होती है—इसीलिए एक ही गुरु का नाम कई मतदाताओं के “पिता” के रूप में दिख रहा है।
कैसे भ्रामक नैरेटिव बना?
राहुल गांधी द्वारा 7 अगस्त को “वोट चोरी” को लेकर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाने के बाद विपक्ष–सत्ता पक्ष के बीच जुबानी जंग तेज़ हुई। इसी माहौल में 2023 की यह पुरानी नगर निगम लिस्ट फिर से सामने लाई गई और उसे मौजूदा राष्ट्रीय चुनावी नैरेटिव से जोड़कर प्रसारित कर दिया गया। नतीजा—एक पुराना, संदर्भ से काटा हुआ पेज शेयर होते-होते “चुनावी घोटाले” का सबूत बन गया। वहीं, चुनाव आयोग और यूपी CEO की ओर से अलग-अलग मामलों में जारी स्पष्टीकरणों में यह रेखांकित किया गया कि कई वायरल दावे लिस्ट के “गलत पढ़े जाने” या “संदर्भ से हटाकर” पेश करने से पैदा हो रहे हैं।
क्यों ज़रूरी है संदर्भ?
- चुनाव की श्रेणी अलग थी: शहरी निकाय की लिस्ट को राष्ट्रीय/विधानसभा की लिस्ट बताना ही मूल गलती है।
- परंपरा का पहलू: मठों/आश्रमों में गुरु का नाम पिता की जगह दर्ज होना असामान्य नहीं है; यह शैक्षिक दस्तावेज़ों तक में देखने को मिलता है।
- डेटा की प्रस्तुति: वोटर लिस्ट के एक हिस्से का स्क्रीनशॉट लेकर “एक आदमी के 48 बेटे” कहना तथ्यों की गलत व्याख्या है।
क्या कहता है कानून/प्रक्रिया?
वोटर लिस्ट का संकलन–संशोधन कई स्तरों पर होता है—वार्ड, बूथ, क्षेत्रीय कार्यालय। शहरी निकाय चुनावों की लिस्टें भी स्थानीय निकायों के लिए तैयार होती हैं और उनकी संरचना/फॉर्मेट राष्ट्रीय चुनावों से भिन्न हो सकता है। किसी भी लिस्ट का मूल्यांकन करते समय चुनाव की श्रेणी, वार्ड विवरण, और नामों के संदर्भ की जांच पहली शर्त है। यूपी CEO ने हालिया प्रेस स्पष्टीकरणों में भी इस बात पर ज़ोर दिया कि कई “डुप्लीकेट/असंगति” के आरोप लिस्ट पढ़ने में त्रुटि से उपजे हैं।
सोशल मीडिया और राजनीति: आग में घी
सोशल मीडिया पर सनसनीखेज़ दावों को तेजी से लाइक–शेयर मिलते हैं। राजनीतिक बयानबाज़ी और ध्रुवीकरण के दौर में आधा सच पूरा सच बनकर आगे बढ़ जाता है। यही कारण है कि 2023 की स्थानीय लिस्ट की तस्वीर 2025 के राष्ट्रीय विमर्श में “टूल” की तरह इस्तेमाल होने लगी। फ़ैक्ट-चेकिंग प्लेटफ़ॉर्म्स ने इस दावे को भ्रामक बताया है, और फोटो की उत्पत्ति, वार्ड–तारीख़ आदि की ट्रेसिंग से असलियत सामने रखी है।
- वायरल दावा—भ्रामक।
- 48 बेटे नहीं, 48 शिष्य। गुरु–शिष्य परंपरा के तहत शिष्यों के दस्तावेज़ों में पिता की जगह गुरु का नाम दर्ज होने की वजह से लिस्ट में “रामकमल दास” बार-बार दिखाई दिया।
- लिस्ट—शहरी निकाय (वाराणसी नगर निगम 2023) की, न कि लोकसभा/विधानसभा की।
- प्रसंग से काटकर पुरानी लिस्ट को वर्तमान राजनीतिक आरोप–प्रत्यारोप से जोड़कर फैलाया गया।
Aarambh News की अपील: सच जानिए, सोच–समझकर बोलिए। किसी भी वायरल दावे पर यक़ीन करने से पहले स्रोत, तारीख़, और संदर्भ ज़रूर देखें।