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क्‍या कहता है विज्ञान: आखिर क्‍यों दुनिया में केवल एक प्रजाति बची है इंसानों की?

क्‍या कहता है विज्ञान: आखिर क्‍यों दुनिया में केवल एक प्रजाति बची है इंसानों की?

क्‍या कहता है विज्ञान: आखिर क्‍यों दुनिया में केवल एक प्रजाति बची है इंसानों की?

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आज पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। शेर, हाथी, और पक्षियों जैसी प्रजातियों के भी कई प्रकार हैं। मगर इंसानों के मामले में यह बात लागू नहीं होती। करीब 60 हजार साल पहले धरती पर छह मानव प्रजातियां थीं, लेकिन आज केवल एक ही बची है — होमोसेपियन्स, यानी हम। आखिर बाकी प्रजातियां क्‍यों विलुप्त हो गईं और हम कैसे बचे रह गए? यह सवाल वैज्ञानिकों के लिए अब भी एक पहेली बना हुआ है। आइए जानते हैं विज्ञान इस बारे में क्‍या कहता है।

मानव इतिहास की शुरुआत

विज्ञान के अनुसार, इंसानों की शुरुआत लगभग 6 लाख साल पहले अफ्रीका में हुई। तब एप्स जैसे जीवों ने सीधे खड़े होकर चलना शुरू किया। इनके कई वंशज बने, जिनमें से कुछ विलुप्त हो गए। वैज्ञानिक मानते हैं कि इंसानों के सबसे नजदीकी पूर्वज करीब 20 लाख साल पहले अस्तित्व में आए थे। इनमें होमो एरगास्टर नामक प्रजाति ने उपकरण बनाना शुरू कर दिया था और ये बेहतर शिकारी बन गए थे।

होमो इरेक्टस और होमोसेपियन्स का उदय

होमो इरेक्टस नामक प्रजाति तुर्की से लेकर चीन तक फैल चुकी थी। ये शिकारी थे और भोजन जमा करके रखते थे। इनका जीवन काफी हद तक आज के इंसानों से मेल खाता था। इसके बाद होमोसेपियन्स यानी आधुनिक मानव का उदय हुआ। माना जाता है कि होमोसेपियन्स ने लगभग 1 लाख 20 हजार साल पहले अफ्रीका छोड़ा था।

जब ये यूरोप पहुंचे, तब वहां निएंडरथॉल का वर्चस्व था। हालांकि, होमोसेपियन्स भारत और अन्य एशियाई इलाकों तक भी फैलने में कामयाब रहे।

महाज्वालामुखी घटना और प्रजातियों का संकट

लगभग 74 हजार साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया में माउंट टोबा नामक महाज्वालामुखी फटा था। यह पिछले 20 लाख सालों का सबसे विनाशकारी ज्वालामुखी माना जाता है। इसकी राख पूरे एशिया में फैल गई थी और वातावरण में बड़े बदलाव हुए।

इस घटना ने मानव प्रजातियों के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। अगले 40 हजार वर्षों में धीरे-धीरे कई मानव प्रजातियां विलुप्त हो गईं।

एक समय में छह मानव प्रजातियां

करीब 60 हजार साल पहले पृथ्वी पर इंसानों की छह प्रजातियां जीवित थीं:

इनमें से निएंडरथॉल ने होमोसेपियन्स को सबसे बड़ी चुनौती दी। लेकिन समय के साथ ये सभी प्रजातियां धरती से विलुप्त होती चली गईं।

प्रजातियों के विलुप्त होने के कारण

वैज्ञानिक मानते हैं कि होमोसेपियन्स के मस्तिष्क का आकार बड़ा था और वे बदलते हालात के मुताबिक खुद को आसानी से ढाल सकते थे। वहीं, निएंडरथॉल और अन्य प्रजातियां ऐसा करने में असफल रहीं। इसके अलावा कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. प्रतिस्पर्धा: बेहतर शिकार तकनीकों और संसाधनों की उपलब्धता के कारण होमोसेपियन्स ने अन्य प्रजातियों को पीछे छोड़ दिया।
  2. जलवायु परिवर्तन: महाज्वालामुखी और अन्य पर्यावरणीय परिवर्तनों ने नाजुक प्रजातियों के लिए जीवित रहना मुश्किल बना दिया।
  3. संभावित आक्रमण: कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि होमोसेपियन्स ने अन्य प्रजातियों का शिकार किया और उन्हें समाप्त कर दिया।
  4. अनुवांशिक विलय: ऐसा भी माना जाता है कि निएंडरथॉल और डेनिसोवन्स के जीन धीरे-धीरे होमोसेपियन्स के साथ मिल गए और वे स्वतंत्र प्रजाति के रूप में समाप्त हो गए।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?

लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के प्रोफेसर क्रिस स्ट्रिंजर के अनुसार, यह स्पष्ट रूप से बताना मुश्किल है कि अन्य मानव प्रजातियां क्यों समाप्त हो गईं। उनका मानना है कि होमोसेपियन्स ने बदलते पर्यावरण के अनुसार खुद को बेहतर तरीके से ढाला, जबकि अन्य प्रजातियां ऐसा करने में असफल रहीं।

हालांकि, एक सवाल यह भी उठता है कि क्‍या होमोसेपियन्स ने अन्य प्रजातियों को खत्म किया? इस पर वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। लेकिन यह संभावना जरूर है कि अलग-अलग प्रजातियों के बीच जीन का विलय हुआ और वे धीरे-धीरे गायब हो गईं।

आज भले ही पृथ्वी पर इंसानों की केवल एक ही प्रजाति मौजूद है, लेकिन इसका इतिहास बेहद जटिल और रोचक है। होमोसेपियन्स ने अपनी अनुकूलन क्षमता और बुद्धिमत्ता के बल पर लाखों सालों की चुनौतियों को पार किया और आज इस ग्रह पर अकेले राज कर रहे हैं। यह समझना कि हम कैसे बचे और अन्य प्रजातियां क्यों विलुप्त हो गईं, विज्ञान के लिए एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है।

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