
Malegaon Blast Case 2008: 17 साल बाद सभी आरोपी बरी, जानिए क्या था पूरा मामला
Malegaon Blast Case 2008: 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में एक बड़ा धमाका हुआ। यह धमाका रमजान के पवित्र महीने में हुआ था, जब लोग इबादत करके घर लौट रहे थे। धमाका इतना भयानक था कि 6 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। शुरू में पुलिस को लगा कि ये हमला आतंकवादी संगठनों का काम हो सकता है, लेकिन जब जांच आगे बढ़ी तो तस्वीर बदलती गई।
आरोपियों की गिरफ्तारी
इस धमाके की जांच सबसे पहले महाराष्ट्र एटीएस (Anti Terrorism Squad) ने शुरू की थी। जांच में पता चला कि धमाका एक एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल में बम लगाकर किया गया था। इस बाइक का रजिस्ट्रेशन साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर था। इसके बाद जांच एजेंसी ने कई और लोगों को गिरफ्तार किया। बाद में मामला एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) को सौंपा गया।
मामले में गिरफ्तार आरोपी
- साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
मध्य प्रदेश की रहने वाली प्रज्ञा सिंह ठाकुर इस केस की मुख्य आरोपी थीं। उन पर आरोप था कि उनकी मोटरसाइकिल का इस्तेमाल धमाके में हुआ। साथ ही, उन पर धमाके की साजिश रचने, बैठकें करने और बाकी आरोपियों को मदद देने का आरोप लगा। - लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित
सेना में अधिकारी रहे पुरोहित पर आरोप था कि उन्होंने 2006 में ‘अभिनव भारत’ नामक एक संगठन बनाया और उसके जरिए धमाके की योजना बनाई। उन पर यह भी आरोप था कि वे भारत में एक हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे और इसके लिए थाईलैंड या इजराइल में निर्वासित सरकार बनाने की बात करते थे। - रमेश उपाध्याय
सेना से रिटायर मेजर रमेश उपाध्याय पर आरोप था कि वे ‘अभिनव भारत’ संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष थे और मालेगांव धमाके की बैठकों में शामिल रहे। - अजय राहिरकर
पुणे के व्यापारी अजय राहिरकर पर आरोप था कि वे अभिनव भारत के कोषाध्यक्ष थे और फंड जुटाकर धमाके की तैयारी में मदद की। - सुधाकर चतुर्वेदी
सेना के खुफिया विभाग के लिए काम कर चुके चतुर्वेदी पर आरोप था कि उनके घर से धमाके में इस्तेमाल हुआ आरडीएक्स जैसा विस्फोटक मिला। - सुधाकर द्विवेदी
द्विवेदी के पास से लैपटॉप बरामद हुआ था जिसमें धमाके की बैठकों की रिकॉर्डिंग और वीडियो मिले। उन पर भी साजिश में शामिल होने का आरोप था। - समीर कुलकर्णी
समाजसेवी समीर कुलकर्णी पर भी साजिश में शामिल होने का आरोप लगा, लेकिन उन्होंने हमेशा कहा कि उन्हें झूठे सबूतों के आधार पर फंसाया गया। - रामचंद्र कालसांगरा और संदीप दांगे
इन दोनों को भी इस केस में आरोपी बनाया गया, लेकिन ये कभी गिरफ्तार नहीं हो सके। रामचंद्र पर मोटरसाइकिल में बम लगाने का आरोप था।
आरोपों के आधार
- धमाके में इस्तेमाल बाइक का रजिस्ट्रेशन
- कॉल रिकॉर्ड्स और बातचीत की रिकॉर्डिंग
- बैठक में मौजूदगी के वीडियो
- आरडीएक्स के सैंपल
- अभिनव भारत के फंड और गतिविधियों से जुड़े दस्तावेज
बचाव पक्ष की दलीलें
- सबूतों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए
- आरोपियों ने कहा कि उन्हें राजनीतिक कारणों से फंसाया गया
- आरोपियों का कहना था कि पुलिस ने जबरन बयान लिए
- एनआईए की चार्जशीट में भी कई विरोधाभास सामने आए
कोर्ट में क्या हुआ?
- 2008 में केस दर्ज हुआ
- 2011 में एक आरोपी को ज़मानत मिली
- 2017 में बाकी 6 आरोपियों को ज़मानत मिली
- 2023 में ट्रायल पूरा हुआ
- 31 जुलाई 2025 को विशेष एनआईए कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं थे। अदालत ने माना कि एटीएस की जांच में कई खामियां थीं और सबूतों को सही तरीके से नहीं प्रस्तुत किया गया
17 साल तक यह केस चला, कई लोगों की जिंदगी इस केस के कारण बदल गई। आखिरकार अदालत ने फैसला सुनाया कि सभी आरोपी दोषी नहीं हैं। यह केस भारतीय न्याय व्यवस्था, जांच एजेंसियों और आतंक के मामलों में जांच की गंभीरता पर भी सवाल खड़े करता है।
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