हिंदू धर्म में Ekadashi vrat के का काफी ज्यादा महत्व माना जाता है। वहीं हर महीने में दो एकादशी तिथि होती है एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। यह व्रत भगवान विष्णु जी के लिए किया जाता है।
जानिए क्या है Ekadashi vrat का महत्व
Ekadashi vrat का महत्व हिंदू धर्म के शास्त्रों में विस्तार से दिया है। भगवान विष्णु ने स्वयं इस व्रत की महिमा का वर्णन किया है। मान्यता है कि इस दिन उपवास और पूजा करने से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
1. वही पापों का नाश
2. मोक्ष की प्राप्ति होती है
3. स्वास्थ्य लाभ होता है
4. धार्मिक और मानसिक शांति मिलती है
जानिए Ekadashi vrat की क्या है विधियां
1. व्रत की तैयारी (एक दिन पहले)
व्रत से एक दिन पहले साधारण भोजन करें।
लहसुन प्याज और मांस का सेवन न करें।
2. एकादशी के दिन की दिनचर्या
जल्दी उठकर स्नान करें और और साफ कपड़े पहने।
भगवान विष्णु के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लें।
पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें। आप फलाहार कर सकते हैं या केवल जल ग्रहण कर सकते हैं।
भगवान विष्णु के 108 नामों का स्मरण करें।
Ekadashi vrat
1. पूजा का स्थान
पूजा का स्थान एकदम साफ सुथरा होना चाहिए और भगवान विष्णु की तस्वीर सामने होनी चाहिए।
2. सामग्री
भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर ।तिल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (फल, मिष्ठान्न) तुलसी के पत्ते
3. पूजा की प्रक्रिया
भगवान विष्णु को गंगाजल से स्नान कराएं।
चंदन, अक्षत, पुष्प, और तुलसी के पत्ते अर्पित करें।
दीप जलाकर भगवान की आरती करें।
भगवान को नैवेद्य अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
Ekadashi vrat के प्रकार
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, एक वर्ष में कुल 24 एकादशी तिथियां होती हैं। जब अधिकमास (अधिक माह) आता है, तब इनकी संख्या 26 हो जाती है। हर एकादशी का अलग महत्व और कथा होती है।
प्रमुख एकादशियां
1. कामदा एकादशी (चैत्र माह)
2. निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ माह)
3. पद्मिनी एकादशी (अधिकमास में)
4. पार्श्व एकादशी (भाद्रपद माह)
5. मोक्षदा एकादशी (मार्गशीर्ष माह)
Ekadashi vrat के नियम
1. व्रतधारी को दशमी तिथि की रात से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
2. व्रत के दौरान झूठ, क्रोध, हिंसा और नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए।
3. व्रत में केवल फलाहार करें और नमक का सेवन न करें।
4. तुलसी के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है, इसलिए तुलसी अर्पित करना अनिवार्य है।
5. व्रत का पारण द्वादशी तिथि को ही करें।
Ekadashi vrat की कथा
Ekadashi vrat से संबंधित अनेक कथाएं हैं। इनमें से एक कथा इस प्रकार है .
एक बार राजा मुचुकुंद के राज्य में एक मुर नामक राक्षस ने आतंक मचा रखा था। भगवान विष्णु ने मुर राक्षस का वध करने के लिए योगनिद्रा धारण की। जब मुर राक्षस भगवान को मारने आया, तब भगवान विष्णु की शक्ति से एक देवी प्रकट हुईं और उन्होंने मुर का वध किया। यह दिन एकादशी तिथि थी। तभी से भगवान विष्णु ने इस दिन को पुण्यदायी घोषित किया और इसे “एकादशी” नाम दिया।
वही आज दोपहर 1 बजकर 12 मिनट पर हो जाएगी शुरुआत . इसका समापन अगले दिन यानी 10 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 43 मिनट पर होगा.
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