केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के डॉ. भीमराव अंबेडकर पर दिए गए एक विवादित बयान के बाद संसद में हंगामा मच गया। उनके बयान को लेकर विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया और उन्हें माफी मांगने की मांग की। बुधवार, 18 दिसंबर 2024 को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों की कार्यवाही विपक्ष के तीव्र विरोध के कारण स्थगित कर दी गई।
अमित शाह ने 17 दिसंबर को राज्यसभा में संविधान पर चल रही बहस के दौरान यह टिप्पणी की थी कि अब “अंबेडकर, अंबेडकर” बोलना एक फैशन बन गया है। उन्होंने कहा था कि अगर विपक्ष ने भगवान का नाम उतनी बार लिया होता, तो वे स्वर्ग पहुंच गए होते। शाह का यह बयान विपक्षी दलों को बेहद आपत्तिजनक लगा, और उन्होंने इसे डॉ. अंबेडकर का अपमान मानते हुए विरोध शुरू कर दिया।
विपक्ष का तीव्र विरोध और संसद की कार्यवाही स्थगित
अमित शाह के बयान के बाद कांग्रेस, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने संसद में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने हाथों में डॉ. अंबेडकर की तस्वीरें उठाकर और नारेबाजी करते हुए सरकार से माफी की मांग की। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी वाड्रा और केसी वेणुगोपाल सहित अन्य सांसदों ने इस बयान की कड़ी निंदा की।
विपक्ष ने आरोप लगाया कि अमित शाह का बयान अंबेडकर की विरासत और उनके योगदान को नकारने की कोशिश है। इस विरोध के कारण राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित कर दी गई। हालांकि, जैसे ही दोनों सदनों में स्थिति सामान्य हुई, संसदीय कार्यवाही फिर से शुरू हुई, लेकिन विपक्ष के विरोध के बावजूद गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी बात जारी रखी।
अमित शाह का बयान और उसका प्रभाव
अमित शाह ने 17 दिसंबर को राज्यसभा में संविधान पर चल रही बहस के दौरान यह टिप्पणी की थी कि डॉ. अंबेडकर का नाम अब केवल एक फैशन बन गया है और यह नाम बार-बार उछाला जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष को अगर इतना ही श्रद्धा होती तो वे भगवान का नाम अधिक लेते। शाह के इस बयान ने अंबेडकर के समर्थकों और दलित समुदाय के बीच नाराजगी की लहर दौड़ा दी है।
इस बयान का उद्देश्य क्या था, इस पर कई प्रकार की बहस हो रही है। कुछ का कहना है कि शाह ने अंबेडकर के योगदान को कम करके दिखाने की कोशिश की, जबकि कुछ का मानना है कि उनका यह बयान सिर्फ राजनीतिक रूप से एक चुटकुले के रूप में था।
डॉ. अंबेडकर भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार थे और उनकी योगदान को लेकर देशभर में श्रद्धा का माहौल है। ऐसे में उनकी टिप्पणी को लेकर विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी।
विपक्ष का आरोप: अंबेडकर का अपमान
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने अमित शाह के बयान को सीधे तौर पर अंबेडकर के अपमान के रूप में लिया है। कांग्रेस ने इसे “दलितों और समाज के कमजोर वर्गों के खिलाफ” एक हमला बताया। राहुल गांधी ने कहा कि यह बयान न केवल अंबेडकर के अपमान के रूप में देखा जाना चाहिए, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकार उनके योगदान को महत्व नहीं देती।
कांग्रेस के सांसदों ने कहा कि शाह का यह बयान दलितों और पिछड़े वर्गों के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जो अंबेडकर के संघर्ष को दरकिनार करने का प्रयास कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि अंबेडकर ने भारतीय समाज को समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का संदेश दिया था, और उनका नाम बार-बार उछालना, समाज में उनके योगदान को साकार रूप में स्वीकार करना है, न कि किसी फैशन का हिस्सा।
अमित शाह के बयान के राजनीतिक संदर्भ
अमित शाह का यह बयान उस समय आया है जब देशभर में डॉ. अंबेडकर के योगदान की महत्ता पर बहस तेज हो गई है। आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए राजनीतिक दल अंबेडकर के नाम को प्रमुखता दे रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी अंबेडकर के योगदान को महत्व देती रही है, लेकिन शाह का यह बयान अब पार्टी की स्थिति को कमजोर कर सकता है, खासकर उन लोगों के बीच जो अंबेडकर के विचारों और उनके योगदान को सशक्त बनाते हैं।
हालांकि बीजेपी नेताओं ने इस बयान को हल्के तौर पर लिया और शाह के बयान का समर्थन किया, लेकिन विपक्षी दलों का कहना है कि यह बयान उनके खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति है, ताकि डॉ. अंबेडकर के विचारों और उनके संघर्ष को कमजोर किया जा सके।
क्या हो सकती है आगे की दिशा?
इस विवाद के बाद, विपक्षी दलों ने यह स्पष्ट किया कि जब तक गृह मंत्री अमित शाह माफी नहीं मांगते, तब तक उनका विरोध जारी रहेगा। अंबेडकर के समर्थकों ने यह सुनिश्चित किया है कि उनका योगदान भारतीय समाज में हमेशा महत्वपूर्ण रहेगा और ऐसे किसी भी बयान को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा जो उनके योगदान को कम करके दिखाने की कोशिश करता हो।
सरकार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण समय है, क्योंकि यह मामला अब न केवल संविधान और अंबेडकर की विरासत से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह आगामी चुनावों पर भी असर डाल सकता है। विपक्षी दल अब इस मुद्दे को अपने राजनीतिक लाभ के लिए उठा सकते हैं, और यह देखना होगा कि सरकार इस विवाद को कैसे संभालती है।
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