
International Day in Support of Victims of Torture 2025: यातना सिर्फ शारीरिक नहीं होती, मानसिक यातना भी उतनी ही क्रूर है!
International Day in Support of Victims of Torture 2025: हर वर्ष 26 जून को दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र द्वारा “यातना के पीड़ितों के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2025 “ (International Day in Support of Victims of Torture) मनाया जाता है। यह दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक आवाज है—उन लाखों पीड़ितों की, जो आज भी छुपी हुई क्रूरता, अमानवीयता और अत्याचार का सामना कर रहे हैं।
क्यों मनाया जाता है यह दिवस?
यातना न केवल एक मानव अधिकार का हनन है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत भी एक गंभीर अपराध है। यह दिवस हमें यह याद दिलाने का कार्य करता है कि:
यातना अस्वीकार्य है,
यह अंतरराष्ट्रीय मानकों के विरुद्ध है,
और इसके खिलाफ आवाज उठाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
26 जून को यह दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यातना के शिकार लोगों को न्याय और पुनर्वास मिल सके और भविष्य में ऐसा अत्याचार फिर कभी न दोहराया जाए।
इस दिन क्या होता है?
दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन, रिहैबिलिटेशन सेंटर्स, और सिविल सोसाइटी समूह इस दिन कई तरह की गतिविधियां आयोजित करते हैं, जिनका उद्देश्य पीड़ितों को समर्थन देना और आम जनता में जागरूकता फैलाना होता है।
कुछ प्रमुख गतिविधियाँ होती हैं:
फोटो प्रदर्शनी और वीडियो स्क्रीनिंग – जो यातना की भयावहता को दर्शाती हैं।
सेमिनार और गोष्ठियाँ – जहां विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, और कभी यातना झेल चुके लोग अपने अनुभव साझा करते हैं।
जागरूकता अभियान – पोस्टर, ब्रोशर और डिजिटल मीडिया के ज़रिए आम जनता तक जानकारी पहुँचाई जाती है।
सोशल मीडिया मुहिम – #SupportTortureVictims जैसे हैशटैग के ज़रिए दुनियाभर में एकजुटता दिखाई जाती है।
महत्वपूर्ण संगठन जो इस दिन से जुड़े हैं
IRCT (International Rehabilitation Council for Torture Victims)
Amnesty International
Human Rights Watch
United Nations Human Rights Council
ये संगठन न केवल इस दिन कार्यक्रम करते हैं, बल्कि सालभर यातना पीड़ितों को चिकित्सा, कानूनी सहायता और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रदान करते हैं।
क्या है इसका इतिहास?
यह दिवस पहली बार 26 जून, 1998 को मनाया गया था, लेकिन इसकी जड़ें 1987 में हैं।
26 जून 1987 को ‘यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ (UN Convention against Torture) लागू हुआ।
इस दिन को प्रतीकात्मक रूप से चुना गया ताकि दुनिया को याद दिलाया जा सके कि यातना का कोई स्थान सभ्य समाज में नहीं है।
1997 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने औपचारिक रूप से इसे एक अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया।
संयुक्त राष्ट्र का संदेश
संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस दिन एक स्पष्ट अपील की जाती है:
“हर व्यक्ति, हर देश और हर संस्था यातना के खिलाफ एकजुट हो। ये न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने की लड़ाई है, बल्कि यह मानवता के लिए एक संकल्प है।”
यातना: आज भी जारी है एक दर्दनाक हकीकत
हालांकि यातना पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोक है, फिर भी कई देशों में यह अब भी इस्तेमाल की जा रही है—कभी पुलिस कस्टडी में, कभी सशस्त्र संघर्षों के दौरान, और कभी जातीय या धार्मिक आधार पर।
बच्चों, महिलाओं और कमजोर तबकों को अक्सर इसका सबसे ज्यादा सामना करना पड़ता है।
मानसिक यातना भी एक ऐसी सच्चाई है, जो अक्सर अनदेखी रह जाती है।
क्या हम कुछ कर सकते हैं?
हां, बिल्कुल! एक आम नागरिक के रूप में भी हम बहुत कुछ कर सकते हैं:
- जागरूक रहें और दूसरों को करें।
- मानवाधिकार संगठनों को सहयोग करें।
- यातना की घटनाओं की रिपोर्टिंग में मदद करें।
- ऑनलाइन अभियानों से जुड़ें और आवाज़ बनें।
प्रतीक और संदेश
इस दिवस से जुड़ा *संयुक्त राष्ट्र का लोगो* एक *विश्व मानचित्र और जैतून की शाखाओं* से बना है, जो *दुनिया के लोगों और शांति* का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि शांति और सम्मान सबका अधिकार है—बिना किसी भेदभाव के।
निष्कर्ष
26 जून का दिन सिर्फ एक कैलेंडर की तारीख नहीं, बल्कि मानवता का वो संकल्प है, जिसमें हम सब एक साथ खड़े होते हैं—उनके लिए जो आज भी चुपचाप यातना सहते हैं।
यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम न केवल पीड़ितों के समर्थन में खड़े हों, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि आने वाली पीढ़ियों को ऐसा क्रूर चेहरा देखने की नौबत न आए।
किसी को भी यातना या अमानवीय व्यवहार का शिकार नहीं होना चाहिए – यह एक बुनियादी मानव अधिकार है।”
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