
Namaz controversy in Chhattisgarh Central University: 150 से ज्यादा गैर-मुस्लिम छात्रों का आरोप – जबरन कराई गई इस्लामिक प्रार्थना!
Namaz controversy: गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय (GGU) एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह है एक ऐसा कार्यक्रम जो ‘सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे’ के नाम पर आयोजित किया गया, लेकिन अब विवाद का रूप ले चुका है। आरोप है कि इस कार्यक्रम के दौरान 150 से अधिक गैर-मुस्लिम छात्रों को जबरन नमाज़ पढ़ने की प्रक्रिया में शामिल किया गया।
Namaz controversy: क्या था पूरा मामला?
जानकारी के मुताबिक, हाल ही में विश्वविद्यालय में एक वर्कशॉप आयोजित की गई थी, जिसमें छात्रों को विभिन्न धर्मों के बीच एकता और समझ बढ़ाने के उद्देश्य से शामिल किया गया। इस कार्यक्रम में इस्लाम धर्म के अंतर्गत आने वाली प्रार्थना ‘नमाज़’ को केंद्र में रखकर छात्रों को उसकी प्रक्रिया और महत्व के बारे में बताया गया।
यहां तक सब कुछ सामान्य लगता है। लेकिन जब कई छात्रों ने दावा किया कि उन्हें बिना पूर्व सूचना के नमाज़ पढ़ने के लिए बैठाया गया और कुछ हद तक इसे ज़बरदस्ती करवाया गया, तब मामला गरमा गया।
Namaz controversy: छात्रों का आरोप
छात्रों का कहना है कि उन्हें इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया। कुछ ने बताया कि उन्हें स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया था कि कार्यक्रम में धार्मिक प्रार्थना कराई जाएगी। कई छात्रों ने असहज महसूस किया और इसे उनकी धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताया।
इनमें से अधिकांश छात्र हिंदू और अन्य गैर-मुस्लिम समुदायों से आते हैं। उनका कहना है कि उन्हें इस्लामिक प्रार्थना की पूरी प्रक्रिया सिखाई गई, जैसे कि नमाज़ कैसे अदा की जाती है, कौन-कौन से शब्द कहे जाते हैं, और इसका उद्देश्य क्या होता है।
शिकायत पुलिस तक पहुंची
जब छात्रों की शिकायतों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने गंभीरता से नहीं लिया, तो मामला पुलिस तक पहुंच गया। छात्रों ने बिलासपुर के स्थानीय थाने में इस पूरे प्रकरण की शिकायत दर्ज करवाई।
छात्रों का आरोप है कि इस प्रकार का कार्यक्रम उनकी धार्मिक आस्था के खिलाफ है और इसे बिना उनकी सहमति के आयोजित किया गया।
हिंदू संगठनों का विरोध
मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब हिंदू जागरण मंच और अन्य संगठनों ने इसे लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। संगठनों का कहना है कि—
“किसी भी धर्म विशेष की प्रार्थना को जबरन छात्रों पर थोपना भारत के संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।”
उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन पर धार्मिक पक्षपात का आरोप लगाया और इस पूरे मामले की जांच की मांग की।
Namaz controversy: यूनिवर्सिटी प्रशासन का पक्ष
वहीं, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि यह कार्यक्रम “इंटरफेथ अवेयरनेस” यानी धर्मों के बीच आपसी समझ और शांति को बढ़ावा देने के लिए था। उनका दावा है कि कार्यक्रम पूर्णतः स्वैच्छिक था और किसी पर कोई दबाव नहीं डाला गया।
हालांकि, छात्रों की शिकायतें और थाने में दर्ज रिपोर्ट इस दावे पर सवाल खड़े करती हैं।
कई अहम सवाल
इस पूरे घटनाक्रम के बाद कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं:
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क्या छात्रों को कार्यक्रम की प्रकृति की पूरी जानकारी दी गई थी?
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क्या यह कार्यक्रम वास्तव में स्वैच्छिक था?
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यदि नहीं, तो इसे आयोजित करने का उद्देश्य क्या था?
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क्या इस तरह के कार्यक्रम शिक्षा के नाम पर किसी धार्मिक एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं?
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