तंबाकू के पौधों में प्राकृतिक रूप से एक केमिकल पाया जाता है। इसे निकोटिन कहते हैं। धूम्रपान की लत लगाने के लिए यही निकोटिन जिम्मेदार होता है। यह श्वसन-तंत्र, नाक, हार्ट हेल्थ के साथ गले को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है। इससे दिल की बीमारी, कैंसर, डायबिटीज और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) होने का खतरा बढ़ जाता हैं। निकोटिन पुरुषों और महिलाओं दोनों की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डालता है।
यह मादक पदार्थों की ही तरह ही व्यक्ति के मस्तिष्क में डोपामाइन रिलीज करता है। कई शोध में पता चला है कि लगभग दो तिहाई व्यक्ति धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं और करीब 50% तो हर साल छोड़ने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन इसे छोड़ने में सफलता पाना चुनौतीपूर्ण होता है। निकोटिन व्यक्ति के मूड और इमोशन्स को प्रभावित करता है। तंबाकू का सेवन करने वालों के लिए वापस इसे छोड़ना मुश्किल हो जाता है।
प्रजनन स्वास्थ्य पर निकोटिन का प्रभाव
पुरुषों पर
पुरुषों में निकोटिन से स्पर्म की गुणवता और मात्रा में कमी होती है। ई-सिगरेट में पाये जाने वाले रसायन, जैसे कि फॉर्मेल्डीहाइड और निकोटिन से स्पर्म बनने में बाधा गतिशीलता कम होने का पता चला है। धूम्रपान करने वालों का स्पर्मेटोज़ोआ उनके सेमिनल प्लाज़्मा के संपर्क में आता है, जिससे स्पर्म की गति और निषेचन क्षमता कम हो जाती है। इतना ही नहीं, इससे टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम हो जाता है और फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है।
निकोटिन सेलुलर प्रक्रियाओं और जीन में बाधा डालकर भ्रूण के विकास में अड़चन पैदा करता है। ऐसे में संतान में जन्मगत विकृतियों का जोखिम बढ़ जाता है। यह पशुओं पर किये अध्ययन में पता चला है।
महिलाओं पर
जो लोग कम उम्र में ही धूम्रपान का सेवन करने लगते हैं, जिससे फर्टिलिटी पर असर पड़ता है। धूम्रपान से एग्स के बनने, फर्टिलाइजेशन प्रोसेस और गर्भावस्था के दौरान शिशु की सही विकास पर असर पड़ सकता है। महिलाओं में धूम्रपान से निषेचन की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। इस स्थिति में प्रजनन क्षमता भी कम हो सकती है। निकोटिन की ज्यादा मात्रा से पीरियड्स से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं। जिसमें सेकंडरी एमेनोरीया, योनि से ज्यादा खून निकलना और एस्ट्रोजन्स जैसी समस्याएं शामिल हैं।