
Vinayak Savarkar Jayanti: एक क्रांतिकारी जिसकी कलम से कांप उठे थे अंग्रेज!
Vinayak Savarkar Jayanti: आज देश भर में विनायक दामोदरदास सावरकर जी की जयंती मनाई जा रही है। वीर सावरकर का जन्म 28 मई सन 1883 में हुआ था।
विनायक दामोदर सावरकर एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे और एक प्रसिद्ध लेखक भी थे। लोग उन्हें वीर सावरकर के नाम से भी जानते हैं, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई है और कई बार कारागार का दौरा भी किया है।
उन्होंने हिंदुत्व की अवधारणा दी थी, जिसके तहत हिंदू धर्म को एक जाति और संस्कृति के साथ-साथ राजनीतिक पहचान के रूप में भी देखा जाने लगा।
प्रारंभिक जीवन
वीर सावरकर का जन्म 28 मई सन 1883 में महाराष्ट्र में नासिक के भगुरु गांव में हुआ था। विनायक सावरकर के पिताजी का नाम दामोदर पंत सावरकर था, और उनकी माता का नाम राधाबाई सावरकर था, हालांकि जब विनायक 9 वर्ष के थे तभी हैजा की महामारी के कारण उनकी माता की मृत्यु हो गई थी, और माता के जाने की कुछ वर्ष बाद ही सन 1899 में प्लेग नमक महामारी से उनके पिता भी उन सभी को छोड़कर चले गए। वीर सावरकर जी के दो भाई थे और एक बहन भी थी।
वीर सावरकर का बचपन काफी कठिनाइयो भर रहा था। बचपन से ही वह काफी होशियार और पढ़ाई में सबसे आगे रहे हैं। उन्होंने शिवाजी हाई स्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षाएं पास करी, और उसके बाद काफी सारी कविताएं भी लिखी। आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल करी।
सन 1901 में विनायक सावरकर का विवाह रामचंद्र त्रयंबक जी की पुत्री जमुना बाई के साथ हुआ, जमुना बाई के पिता ने ही वीर सावरकर की की विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा का भार उठाया। वीर सावरकर ने 1904 में अभिनव भारत नाम की एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना करी। उनको बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर 1906 के दशक में श्याम जी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली।
किताब छपवाने में मुश्किलें
1908 में उन्होंने एक बुक लिखी जिसका नाम “द इंडियन वॉर का इंडिपेंडेंस था” यह किताब 1857 में ही तैयार हो गई थी, लेकिन इस किताब को छपवाने में काफी मुश्किलें आ रही थी। इसके बाद उन्होंने इसे लंदन, पेरिस और जर्मनी में छपवाने की कोशिश करी लेकिन हर जगह उनका नाकामी का सामना करना पड़ा।
हालांकि कुछ समय बाद उनकी यह किताब नीदरलैंड में छापी गई और इसकी कॉपियां चुपचाप फ्रांस तक पहुंचाई गई। उन्होंने इस किताब में सावरकर के 1857 के सिपाही विद्रोह को अंग्रेज के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई बताया।
इसके बाद 1909 में सावरकर ने लंदन से वकालत की पढ़ाई पूरी करें हालांकि वहां पर उनको वकालत करने की इजाजत नहीं मिली।सावरकर ने अपनी इस किताब को “पिक वीक पेपर्स और स्काउट पेपर्स” जैसे नकली नाम ऑन से भारत तक पहुंचा।
काला पानी की सजा
1911 में वीर सावरकर को नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था, इसके बाद 7 अप्रैल 1911 को उन्हें काला पानी की सजा दे दी गई।
काले पानी की सजा को सेलुलर जेल भी कहते हैं, वहां पर सावरकर की हालत काफी खराब हो गई थी। सेलुलर जेल में कैदियों को नारियल छीलना पड़ता था और तेल भी निकालना पड़ता था, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि बैल की तरह कोल्हू में जोत कर काम करवाया जाता था। उन सभी कैदियों को जंगल को साफ करके खेती करने लायक एक मैदान बनाना होता था। इतनी जुल्म के बाद भी अगर कोई कैदी इसका विद्रोह करता था तो उसकी बुरी तरीके से पीटा जाता था। इतना ज्यादा काम करने के बावजूद भी उन कैदियों को पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता था। आपको बता दे की सावरकर 4 जुलाई 1911 से 21मई 1921 तक इस जेल में बंद रहे।
अंग्रेजों के लिए खतरा बने !
वीर सावरकर ने अपनी किताब “the Indian war of independence 1857” में 1857 की लड़ाई को सच्ची आजादी की लड़ाई बताया।
अंग्रेजों ने इसे एक “सिपाही विद्रोह” कहकर उन सभी को कमजोर दिखाने की कोशिश करी, लेकिन सावकार ने सभी को बताया कि यह एक आजादी की लड़ाई है।
सावरकर की किताबों में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी, सभी लोगों में उनकी किताबों को पढ़कर देशभक्ति की भावना बढ़ने लगी थी, यही कारण था कि अंग्रेजों ने उनकी किताबों पर रोक लगा दिया।
सभी अंग्रेज सावरकर से इसीलिए डरते थे क्योंकि वीर सावरकर सिर्फ एक क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि एक उच्च विचारक भी थे। उनकी हिंदुत्व की अवधारणा ने भारतीय समाज को एकजुट करने का काम किया, इस कारण अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो यानी, divide and rule वाली नीति कमजोर होने लगी। सावलकर की किताबों में इतना जोश और देशभक्त था कि अंग्रेजों को डर लगने लगा कि उनकी किताबों से उनका बनाया साम्राज्य कहीं भस्म ना हो जाए।
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