
Guru Amardas Jayanti 2025: सेवा, समर्पण और समानता के प्रतीक
Guru Amardas Jayanti 2025: सिख धर्म में 10 गुरुओं को पूजा जाता है, जिनमें से गुरु अमरदास तीसरी गुरु माने जाते हैं। उनका जन्म 5 में 1475 को अमृतसर जिले के बसर के गांव में हुआ था। 2025 में 11 में को Guru Amardas Jayanti उनकी जन्म उत्सव के रूप में मनाई जाएगी। आईए जानते हैं गुरु अमरदास जी के बारे में-
गुरु अमरदास जी
सिख धर्म में दसवें गुरु में से तीसरा स्थान गुरु अमरदास जी का है। गुरु अमरदास जी का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 23 में 1479 ई. को अमृतसर के बसर के एक गांव में हुआ था।
गुरु अमरदास जी के पिता का नाम श्री तेजभान था, और उनकी माता का नाम श्रीमती लखमी जी था।
बचपन से ही वह खेती बाड़ी और व्यापार के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद भी, भगवान हरि का नाम जपते रहते थे। कहा जाता है कि गुरु अमरदास जी ने 21 बार हरिद्वार की पैदल फेरी लगाई थी।
सिख गुरु का खिताब मिला
26 मार्च, 1552 मे गुरु अमर दास जी को सिखों के तीसरे गुरु का पद मिला। तीसरे गुरु होने के साथ-साथ वह समाज सुधारक भी थे।
गुरु अमरदास जी ने समाज में कई प्रकार की बुराइयों के विरुद्ध आवाज उठाई और उनके खिलाफ कदम भी उठाया। गुरु अमरदास जी का मानना था की सभी महिलाएं और पुरुष एक समान होते हैं, और हमेशा उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की बात कही। उनका मानना था कि जिस तरह पुरुष अपनी महिलाओं के मरने के बाद दूसरी शादी कर सकते हैं, इस प्रकार महिलाएं भी अपने पति के मरने के बाद दूसरी शादी कर सकते हैं। साथियों उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज उठाई।
गुरु अमरदास जी हमेशा से अंधविश्वास के खिलाफ रहे हैं। आपको बता दे की आज जो मंदिरों और गुरुद्वारों में लंगर लगाते हैं, इसकी शुरुआत गुरु अमरदास जी के द्वारा ही हुई थी।
गुरु अमरदास जी की जीवनी
गुरु अमरदास जी के पिता का नाम श्री तेजभान था, और उनकी माता का नाम श्रीमती लखमी जी था। इसके बाद उनका विवाह माता मनसा देवी से हुआ, इसके बाद उनकी चार संताने हुई।
कैसे बने सिखों के तीसरे गुरु?
दरअसल एक बार गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद साहब की पुत्री से गुरु नानक साहिब के शब्द सुने। उन शब्दों को सुनकर वह इतने प्रभावित हुए की, उन्होंने गुरु अंगद देव जी, (जो सिखों के दूसरे गुरु हैं) उनका पता पूछा और उनके चरणों में चले गए। आपको बता दे की, 61 वर्ष की आयु में गुरु अमर दास जी ने अपने से 25 वर्ष छोटे गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु मान लिया। इसके बाद गुरु अमरदास जी ने लगातार 11 वर्षों तक प्रेम भाव के साथ गुरु अंगद जी की सेवा करी। इसके बाद गुरु अंगद जी गुरु अमर दास की सेवा और समर्पण से इतनी खुश हुए कि उन्होंने उनका तीसरा गुरु घोषित किया।
गुरु अमरदास जी का निधन
गुरु अमर दास जी का निधन 1 सितंबर, 1547 में अमृतसर में हुआ था। उन्होंने गुरुद्वारों में लंगर समारोह की प्रथा को हमेशा चलाए रखने की बात कही। उनका मानना था कि लंगर से सभी भक्तों को मुफ्त में भोजन मिल पाएगा और जरूरतमंद लोग अपना मुफ्त में पेट भर पाएंगे।
इसके बाद से सिख धर्म में लंगर प्रथा की शुरुआत हुई। और तब से लेकर आज तक हर रोज गुरुद्वारों में निशुल्क लंगर लगाए जाते हैं, और जरूरतमंद लोग अपना पेट भर पाते हैं। गुरु अमर दास जी ने सिख धर्म के प्रचार और विकास में जरूरी योगदान दिया था। उन्होंने लंगर परंपरा को मजबूती दी और सिख धर्म के नियमों और सिद्धांतों को स्पष्ट किया।
गुरु अमरदास जयंती का समारोह!
हर साल सिख समुदाय तथा हिंदू समुदाय के लोग तीसरे गुरु श्री अमरदास जी की जयंती को बड़ी श्रद्धा और भव्यता से मनाते हैं।
गुरु अमरदास जयंती के दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और रात के समय पूरा गुरुद्वारा रोशनी से चमक जाता है।
इस दिन गुरुद्वारों में पवित्र किताब गुरु ग्रंथ साहिब का सम्मान किया जाता है और भक्ति और श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है। गुरुद्वारों में पूरे दिन चहल-पहल रहती है और कई सारे लोग गुरु के सामने अपना सिर झुकाते हैं और अरदास करते हैं।
गुरुद्वारों में इस दिन भव्य लंगर आयोजित होता है। कई सारे लोग गुरुद्वारों में सेवा करते हैं। कई सारे लोग इस दिन गुरुद्वारों में आटा, दाल ,चावल, चीनी, तेल आदि का दान करते हैं।
गुरु अमरदास जयंती प्यार भाईचारे और इंसानियत का प्रतीक है।
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