Shibu Soren death: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन नहीं रहे, 'गुरुजी' की विरासत और संघर्षों की कहानी
Shibu Soren death: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। पिछले डेढ़ महीने से वे बीमार चल रहे थे और किडनी से जुड़ी समस्याओं के कारण उन्हें जून के अंतिम सप्ताह में अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
उनके बेटे और झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक्स पर पिता के निधन की जानकारी साझा करते हुए भावुक शब्दों में लिखा – “आज मैं शून्य हो गया…”। शिबू सोरेन का जाना सिर्फ एक नेता का नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा की एक बड़ी आवाज़ का शांत हो जाना है।
कौन थे शिबू सोरेन?
शिबू सोरेन को उनके समर्थक और झारखंड की जनता प्यार से “गुरुजी” कहकर बुलाते थे। वे झारखंड आंदोलन के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे। उन्होंने पूरी जिंदगी आदिवासी समाज, झारखंड के अधिकारों और राज्य की पहचान के लिए संघर्ष किया।
शुरुआती जीवन और संघर्ष
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के दुमका जिले में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। उनका जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा। जब वे छोटे थे, तब उनके पिता की हत्या जमींदारों द्वारा कर दी गई थी, क्योंकि वे आदिवासियों को शोषण के खिलाफ एकजुट कर रहे थे। यहीं से शिबू सोरेन के अंदर सामाजिक न्याय और विरोध की चिंगारी जली।
झारखंड आंदोलन और राजनीतिक सफर
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना शिबू सोरेन ने 1972 में की थी। उनका उद्देश्य था – आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना और झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना।
1980 में उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव दुमका सीट से जीता, जो उनके राजनीतिक करियर की एक बड़ी शुरुआत थी। इसके बाद वे कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य बने।
कोयला मंत्री के रूप में भूमिका
शिबू सोरेन दो बार केंद्र सरकार में कोयला मंत्री बने।
- पहला कार्यकाल: मई 2004 से जुलाई 2004 तक रहा। हालांकि इस दौरान उन्हें 1975 के एक पुराने मामले (चिरूडीह नरसंहार) में गिरफ्तारी वारंट के चलते इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में वे इस मामले से बरी हो गए।
- दूसरा कार्यकाल: जनवरी 2006 से नवंबर 2006 तक चला।
- उनके मंत्रालय के दौरान कोयला क्षेत्र में कई सुधार और फैसले हुए, लेकिन कई बार उनका कार्यकाल विवादों में भी रहा।
मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, उनका कोई भी कार्यकाल लंबा नहीं चला।
- पहली बार: 2005 में, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण 10 दिन में इस्तीफा देना पड़ा।
- दूसरी बार: अगस्त 2008 में, लेकिन जुलाई 2009 में सरकार गिर गई।
- तीसरी बार: दिसंबर 2009 से मई 2010 तक मुख्यमंत्री रहे।
उनकी सरकारें गठबंधन की मजबूरियों और राजनीतिक खींचतान के कारण टिक नहीं पाईं, लेकिन हर बार जनता और पार्टी में उनका भरोसा बना रहा।
राज्यसभा सदस्य के रूप में योगदान
शिबू सोरेन तीन बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
- पहली बार 1998 से 2001
- दूसरी बार 2002 में कुछ महीनों के लिए
- तीसरी बार 2020 से 2025 तक उनका कार्यकाल रहा, जो उनके निधन के साथ समाप्त हुआ।
झारखंड की आत्मा की आवाज़
शिबू सोरेन ने झारखंड के गठन के आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाई। जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक अलग राज्य बना, तो हर झारखंडी की आंखों में आंसू और गर्व दोनों थे — क्योंकि यह सपना गुरुजी के संघर्षों का ही परिणाम था।
उन्होंने हमेशा गरीब, आदिवासी, किसान और मजदूर वर्ग के लिए आवाज़ उठाई। झारखंड के जंगल, जमीन, और संसाधनों पर स्थानीयों के अधिकार को लेकर वे कभी समझौता नहीं करते थे।
एक युग का अंत
उनका निधन झारखंड और देश की राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। वे सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक विचार थे, जो आदिवासी अस्मिता, अधिकार और संघर्ष का प्रतीक बना।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “मेरे पिता मेरे जीवन के पथ प्रदर्शक थे। उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता। मैं वचन देता हूं कि उनके अधूरे सपनों को पूरा करूंगा।”
शिबू सोरेन का जाना एक युग के अंत जैसा है। वे हमेशा याद किए जाएंगे – झारखंड आंदोलन के शिल्पी, आदिवासी समाज के सच्चे प्रतिनिधि और एक ऐसे नेता के रूप में जिन्होंने कभी झुकना नहीं सीखा।
आज जब झारखंड उनके बिना आगे बढ़ेगा, तब भी उनकी छाया, उनके विचार और उनके संघर्षों की गूंज राज्य की मिट्टी में सुनाई देती रहेगी।
गुरुजी को विनम्र श्रद्धांजलि।
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