
Assam land scam: 3,000 बीघा ज़मीन अदानी को क्यों दी गई और क्यों भड़के लोग?
Assam land scam: असम की राजनीति इन दिनों ज़मीन को लेकर गर्म है। वजह है – राज्य की बीजेपी सरकार का एक बड़ा फैसला, जिसमें करीब 3,000 बीघा ज़मीन (लगभग 81 मिलियन स्क्वायर फीट) अदानी ग्रुप को सीमेंट फैक्ट्री लगाने के लिए दे दी गई।
यह खबर जब सामने आई तो न सिर्फ़ जनता भड़क गई बल्कि अदालत में भी इस पर तीखी टिप्पणियाँ सुनाई दीं। गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक जज ने तो यहाँ तक कह दिया – “Is this a joke? Are you giving an entire district?” यानी “क्या मज़ाक कर रहे हैं? पूरा ज़िला दे रहे हैं क्या?”
यह टिप्पणी साफ़ दिखाती है कि मामला कितना गंभीर है।
इतनी ज़मीन क्यों और किसके लिए?
3,000 बीघा ज़मीन का मतलब समझना ज़रूरी है।
इतनी ज़मीन में एक छोटा शहर बस सकता है। स्कूल, अस्पताल, बाज़ार और हज़ारों घर बन सकते हैं। लेकिन सरकार ने इसे एक कॉर्पोरेट कंपनी को दे दिया।
सरकार का तर्क है कि सीमेंट फैक्ट्री से उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, रोज़गार पैदा होंगे और विकास होगा। लेकिन सवाल उठता है – क्या वाकई स्थानीय लोगों को फायदा होगा?
लोगों का गुस्सा क्यों फूटा?
असम के किसान लंबे समय से अपनी ज़मीन और हक़ के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
- किसान कहते हैं कि जब उन्हें अपनी ज़मीन की ज़रूरत होती है तो सरकार मदद नहीं करती।
- नौजवान कहते हैं कि डिग्री होने के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिल रही।
- छोटे व्यापारी मंदी और महंगाई से परेशान हैं।
ऐसे माहौल में अगर हज़ारों बीघा ज़मीन अरबपतियों को दे दी जाती है, तो गुस्सा होना स्वाभाविक है।
क्रोनी कैपिटलिज़्म का आरोप
विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता इस डील को “Crony Capitalism” बता रहे हैं।
यानि – सरकार जनता की ज़मीन और संसाधन कॉर्पोरेट्स को सौंप देती है, और बदले में जनता को कुछ नहीं मिलता।
भारत में पहले भी ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं, जहाँ बड़े उद्योगपतियों को सरकारी नीतियों और फैसलों से फायदा पहुँचाया गया। असम का मामला भी अब उसी कड़ी से जोड़ा जा रहा है।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा पर आरोप
हिमंता बिस्वा सरमा, जिन्हें बीजेपी का “नॉर्थईस्ट स्ट्रॉन्गमैन” कहा जाता है, अब गंभीर सवालों के घेरे में हैं।
- लोग कह रहे हैं कि यह फैसला पारदर्शी तरीके से नहीं लिया गया।
- किसानों और स्थानीय नागरिकों को विश्वास में नहीं लिया गया।
- पूरे मामले की जांच होनी चाहिए।
कुछ विरोधी दल तो यहाँ तक मांग कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री को जेल भेजा जाए।
लोकतंत्र और पारदर्शिता पर सवाल
यह मामला सिर्फ़ ज़मीन देने का नहीं है। यह मामला लोकतंत्र और पारदर्शिता का भी है।
भारत का संविधान कहता है कि सरकार जनता के लिए है और जनता के हित में फैसले लेने चाहिए। लेकिन अगर सरकार जनता से बिना पूछे हज़ारों बीघा ज़मीन एक कंपनी को सौंप देती है, तो यह “लोकतंत्र की हत्या” जैसा है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी क्यों अहम है?
जब मामला गुवाहाटी हाईकोर्ट में पहुँचा तो जज ने सरकार से सीधे सवाल पूछे।
जज की टिप्पणी – “क्या आप पूरा ज़िला दे रहे हैं?” – जनता के गुस्से को और वैधता देती है।
इससे यह संदेश गया कि अदालत भी मान रही है कि सरकार का कदम सामान्य नहीं है। अदालत की सख़्ती से अब इस मामले की पूरी जांच और सुनवाई तेज़ हो सकती है।
क्या होगा असर?
इतिहास गवाह है कि भारत में जब-जब ऐसी बड़ी डील्स जनता के विरोध के बावजूद की गई हैं, तो उसका असर सरकारों पर भी पड़ा है।
- कभी सरकारें गिर गईं।
- कभी नेताओं का राजनीतिक करियर खत्म हो गया।
- और कभी बड़े घोटाले उजागर हो गए।
अब सवाल यह है – क्या यह मामला हिमंता बिस्वा सरमा की राजनीति के अंत की शुरुआत बनेगा?
जनता के सवाल
आज असम की जनता पूछ रही है –
- “हमारे लिए वादे कहाँ हैं?”
- “हमारे लिए नौकरी, शिक्षा और स्वास्थ्य कब आएंगे?”
- “क्या हमारी ज़मीन अब अरबपतियों की तिजोरी भरने के लिए है?”
अदानी को सीमेंट फैक्ट्री के लिए ज़मीन तो मिल गई, लेकिन आम लोग अब भी टूटी सड़कों, बेरोज़गारी और गरीबी से जूझ रहे हैं।
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