
Alimony Laws in India टीम इंडिया के क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और धनेश्वरी वर्मा का तलाक अब हो चुका है। चहल ने कोर्ट के आदेशों पर 4.75 करोड रुपए की एलिमनी राशि धनश्री को देनी पड़ी। अब सवाल यह उठता है कि तलाक के बाद कितनी एलिमनी देनी है कौन करता है इसका फैसला चलिए जानते हैं विस्तार से।
Alimony Laws in India: कैसे तय की जाती है एलिमनी
इस मामले में कई लोग जाना चाहते हैं की अदालत कैसे तय करती है कि एक पति या पत्नी को दूसरे को कितनी एलिमनी दी जानी चाहिए। भारत में तलाक के मामले में एलिमनी की रकम किसी निश्चित फार्मूले पर आधारित नहीं है। अदालत दोनों पक्षों की विपत्ति स्थिति कमाई की क्षमता और शादी में उनके योगदान जैसी कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इस बारे में फैसला करती है।
जैसे की-अगर कोई महिला 10 साल से एक गृहिणी है और वो अपने पति को तलाक देती है तो कोर्ट उसकी एलिमनी तय करते वक्त पति की आय को ध्यान में रखेगा. चूंकि, महिला सिर्फ गृहिणी है और उसने बच्चों-परिवार की देखभाल के लिए नौकरी नहीं की और अपना करियर त्याग दिया, इसलिए ऐसा गुजारा भत्ता तय किया जाएगा कि उसका सामान्य जीवन चलता रहे
जैसे कि मान लीजिए कोई पत्नी और पति दोनों ही नौकरी में 50-50 हजार रुपए महीने कमा रहे हैं तो जरूरी नहीं है कि कोर्ट गुजरा वक्त देने का आदेश दे क्योंकि दोनों ही आर्थिक स्थिति एक जैसी है अगर पत्नी या पति में से किसी एक पर बच्चों की देखभाल से ज्यादा विपत्ति फौज है तो कोर्ट वूमेन सहायता का आदेश दे सकता है।
Alimony Laws in India: क्या पुरुष एलिमनी का हकदार?
तलाक के ज्यादातर मामलों में पत्नियों को वित्तीय सहायता मिलती है, लेकिन भारतीय कानून में पुरुषों को भी गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में धारा 24 और 25 के तहत पति गुजारा भत्ता की मांग कर सकता है. हालांकि, कुछ खास स्थितियों में ही पति को गुजारा भत्ता मिलता है. इसके लिए पति को यह साबित करना होगा कि वो किसी खास वजह से आर्थिकतौर पर पत्नी पर निर्भर था. जैसे- उसे विकलांगता या कोई ऐसी स्थिति से जूझ रहा था जिसके कारण वो कमाई करने में असक्षम था.
Alimony Laws in India: सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण कारक
सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में परवीन कुमार जैन का नाम अंजू जैन मामले में गुजारा भक्ति करने के कुछ महत्वपूर्ण कारक का उल्लेख किया है।
- दोनों पति-पत्नी की सामाजिक और व्यक्तित्व स्थिति
- पति और बच्चों की जरूरत
- दोनों पक्षों की रोजगार स्थिति और योग्यता
- आवेदक की स्वतंत्रता आए या संपत्ति
- विवाह के दौरान जीवन स्तर
- पारिवारिक जिम्मेदारी के लिए किए गए त्याग
- गैर कामकाजी जीवनसाथी के लिए कानून खर्च
- पति की विपत्ति स्थिति जिसमें उसकी आय और कर्ज शामिल है।
भारत में तलाक के मामलों में दोष अधिकतर प्रणाली का पालन किया जाता है जिसमें पत्नी को अक्सर अदालत की सहानुभूति मिलती है और पति को कसूर या आरोपी साबित करना होता है इसके विपरीत कई पश्चिमी देश में दोष रहित तलाक प्रणाली लागू है जहां अदालत अधिक तटस्थ दृष्टिकोण अपनाती है भारत में अदालत के केस के आधार पर एकमुश्त या मासिक गुजारा भत्ता का आदेश दे सकती है।
Alimony Laws in India: बाकी देशों ने कैसे तय की जाती है एलिमनी
बाकी के देशों में गुजारा भत्ता तय करने के अपने-अपने तरीके हैं, कुछ देश सख्त फॉर्मूले का पालन करते हैं जबकि अन्य देश व्यापक दिशा-निर्देशों का इस्तेमाल करते हैं. पटना उच्च न्यायालय के एडवोकेट अंशुमान सिंह ने कहा कि अमेरिका जैसे देशों में, कुछ राज्य फॉर्मूले का इस्तेमाल करते हैं, जबकि अन्य आय, विवाह की अवधि और दोनों भागीदारों की कमाई क्षमता जैसे कई पहलुओं को देखते हैं. ब्रिटेन में अदालतें निष्पक्षता पर ध्यान केंद्रित करती हैं, यह सुनिश्चित करती हैं कि दोनों पति-पत्नी एक उचित जीवन स्तर बनाए रखें.
अंशुमान सिंह ने कहा कि जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में अल्पकालिक वित्तीय सहायता को प्राथमिकता दी जाती है. स्कैंडिनेवियाई देशों में शायद ही कभी गुजारा भत्ता दिया जाता है, क्योंकि दोनों भागीदारों से आत्मनिर्भर होने की अपेक्षा की जाती है. उन्होंने कहा कि चीन और जापान में गुजारा भत्ता असामान्य है और इसमें आमतौर पर एकमुश्त समझौता शामिल होता है. शरिया कानून का पालन करने वाले मध्य पूर्वी देशों में गुजारा भत्ता आमतौर पर अल्पकालिक होता है, जो तलाक के बाद सिर्फ वेटिंग पीरियड को कवर करता है।
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