Durga Puja 2024: Durga Puja हिंदू धर्म का एक अत्यंत प्रतिष्ठित त्योहार है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक भैंसे राक्षस पर विजय प्राप्त करने की कथा का उत्सव है।
Durga Puja की शुरुआत महालय अमावस्या के दिन होती है और इसे देवी पक्ष की शुरुआत माना जाता है। Durga Puja 2024 8 अक्टूबर से प्रारंभ होगी और यह पांच दिनों तक चलेगी, जिसे ‘दुर्गोत्सव’ कहा जाता है। इस अवसर पर देवी दुर्गा के आगमन को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और यह केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी पर्व है।
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ToggleDurga Puja 2024: तिथियां और समय
Durga Puja का पर्व पाँच प्रमुख दिनों में मनाया जाता है:
- पंचमी: 8 अक्टूबर 2024 (मंगलवार)
- षष्ठी: 9 अक्टूबर 2024 (बुधवार)
- सप्तमी: 10 अक्टूबर 2024 (गुरुवार)
- अष्टमी: 11 अक्टूबर 2024 (शुक्रवार)
- नवमी: 12 अक्टूबर 2024 (शनिवार)
- विजयादशमी: 13 अक्टूबर 2024 (रविवार)
Durga Puja के प्रमुख दिन और धार्मिक अनुष्ठान
- षष्ठी – देवी दुर्गा का आगमन: इस दिन देवी की मूर्ति का अनावरण होता है और उनकी उपस्थिति का आह्वान किया जाता है।
- महा सप्तमी – देवी की पूजा: सप्तमी के दिन पूजा अनुष्ठानों का विस्तार होता है और दुर्गा पूजा अपने चरम पर पहुँचने लगती है।
- महा अष्टमी – कुमारी पूजा: इस दिन देवी दुर्गा की पूजा एक युवा कन्या के रूप में की जाती है। इसे ‘कुमारी पूजा’ कहा जाता है, जिसमें बालिकाओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।
- महा नवमी – अंतिम पूजा: इस दिन देवी दुर्गा की पूजा के अंतिम चरण की रस्में पूरी होती हैं और भक्तगण अपने श्रद्धा और आभार व्यक्त करते हैं।
- विजयादशमी – देवी का विसर्जन: इस दिन देवी की मूर्ति को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है, जिसे ‘दुर्गा विसर्जन’ कहा जाता है। यह देवी की विजय और उनकी विदाई का प्रतीक है।
महालय अमावस्या और देवी पक्ष
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, Durga Puja की शुरुआत महालय अमावस्या के दिन होती है, जो पितृ पक्ष के अंत का संकेत होता है। इस दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है और इसे नए कार्यों की शुरुआत के लिए अशुभ माना जाता है। महालय अमावस्या के दिन देवी दुर्गा को पृथ्वी पर आमंत्रित किया जाता है। इसके अगले दिन से देवी पक्ष की शुरुआत होती है, जो देवी दुर्गा के आगमन और पूजन का समय है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व
Durga Puja धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ सांस्कृतिक एकता और सामाजिक सौहार्द का पर्व भी है। इस दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, पारंपरिक नृत्य, संगीत, सजावट और भोजन के भव्य आयोजन होते हैं। यह पर्व न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, खासकर जहां भारतीय प्रवासी समुदाय रहते हैं, जैसे बांग्लादेश, अमेरिका, जर्मनी, हांगकांग और स्विट्जरलैंड। यह पर्व सभी के लिए एक साझा मंच प्रदान करता है, जहां लोग धार्मिक आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक विविधता का उत्सव मनाते हैं।
देवी दुर्गा की कथा
Durga Puja का धार्मिक आधार देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध पर आधारित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर एक भैंसा राक्षस था जिसे किसी भी पुरुष द्वारा न मारे जाने का वरदान प्राप्त था। इस वरदान के बाद उसने देवताओं के निवास पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा को उत्पन्न किया, जो महिषासुर का वध कर सकें। देवी दुर्गा ने महिषासुर को पांच दिनों की लड़ाई के बाद पराजित किया और देवताओं को शांति दिलाई।
Durga Puja के विशेष अनुष्ठान
Durga Puja में कई विशेष अनुष्ठान होते हैं। महाशष्ठी के दिन देवी का आगमन माना जाता है और पंडालों में उनकी मूर्तियों का अनावरण किया जाता है। महा सप्तमी के दिन ‘प्राण प्रतिष्ठान’ की जाती है, जिसमें मूर्ति को जीवन दिया जाता है। महा अष्टमी को ‘कुमारी पूजा’ का आयोजन होता है, जहां छोटी लड़कियों को देवी के रूप में पूजा जाता है। महा नवमी को देवी दुर्गा की अंतिम पूजा होती है और महा आरती का आयोजन किया जाता है। विजयादशमी के दिन देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, जो उनकी वापसी का प्रतीक है।
Durga Puja का समापन और विजयादशमी
विजयादशमी के दिन देवी दुर्गा के महिषासुर पर विजय की स्मृति में मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। इस दिन महिलाएं देवी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाती हैं और एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिंदूर का यह अनुष्ठान सौभाग्य और मंगलकामना का प्रतीक होता है। इसके बाद मूर्तियों का विसर्जन नदी या जलाशय में कर दिया जाता है, जो देवी की वापसी का प्रतीक है।
Durga Puja एक ऐसा पर्व है जो श्रद्धा, सांस्कृतिक एकता और सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देता है। यह त्यौहार न केवल देवी दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह हमें साहस, करुणा और धैर्य जैसे गुणों की याद दिलाता है।
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