
उत्तराखंड में यूसीसी के लिव-इन प्रावधानों पर विवाद
उत्तराखंड में हाल ही में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू किया गया है। इसमें लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर किए गए प्रावधानों ने विशेष रूप से चर्चा बटोरी है। सरकार के इस कदम को निजता के हनन और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में भी देखा जा रहा है। आइए जानते हैं कि इस कानून में लिव-इन से जुड़े प्रावधान क्या हैं और इन्हें लेकर क्यों सवाल उठ रहे हैं।
क्या हैं यूसीसी के लिव-इन प्रावधान?
उत्तराखंड सरकार के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। इसके तहत:
- पंजीकरण: जोड़ों को एक संयुक्त आवेदन पत्र भरकर रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
- जानकारी: आवेदन में दोनों व्यक्तियों के नाम, पता, उम्र और अन्य जरूरी विवरण शामिल होंगे।
- धार्मिक प्रमाण पत्र: यदि संबंध ऐसे हैं जो सामान्य परिस्थितियों में विवाह के लिए प्रतिबंधित माने जाते हैं, तो धार्मिक गुरु या सामुदायिक प्रमुख से प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होगा।
- फीस और दस्तावेज: पंजीकरण के लिए शुल्क जमा करना और पूर्व संबंधों का विवरण देना भी आवश्यक होगा।
क्या होगा नियमों का उल्लंघन करने पर?
- बिना पंजीकरण के लिव-इन में रहने पर छह महीने तक की जेल हो सकती है।
- नियमों का उल्लंघन करने पर जोड़ों पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
धार्मिक प्रमाण पत्र पर विवाद
धार्मिक प्रमाण पत्र लेने की अनिवार्यता ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
- विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रावधान न केवल निजता का उल्लंघन करता है बल्कि संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ भी है।
- सुप्रीम कोर्ट की वकील चारू अली खन्ना का कहना है कि यह प्रावधान अजीब है और लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार करता है।
संविधान और सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
- सुप्रीम कोर्ट: कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी है और इसे दो वयस्कों का व्यक्तिगत निर्णय बताया है।
- घरेलू हिंसा से संरक्षण: घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को घरेलू संबंध की श्रेणी में रखा गया है।
क्या कह रहे हैं आलोचक?
देहरादून के वकील अजय कुंडलिया के अनुसार, यह प्रावधान असंवैधानिक प्रतीत होता है। यदि इसे कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।
सरकार का पक्ष
उत्तराखंड सरकार का कहना है कि यह प्रावधान केवल उन मामलों के लिए लागू होगा जहां विवाह प्रतिबंधित है। हालांकि, सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या यह प्रावधान दो अलग धर्मों के जोड़ों पर भी लागू होगा।
निजता का उल्लंघन या सुरक्षा का उपाय?
- कुछ लोगों का मानना है कि यह पंजीकरण प्रक्रिया लिव-इन जोड़ों की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए है।
- वहीं, अन्य लोग इसे राज्य का अनावश्यक हस्तक्षेप मानते हैं।
उत्तराखंड में यूसीसी के लिव-इन प्रावधानों को लेकर जारी विवाद भविष्य में कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर जनता और विशेषज्ञों की चिंताओं का समाधान कैसे करती है।
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