
Shaheed Sukhdev Thapar: 15 मई को जन्मे उस सच्चे नायक को याद करने का दिन
भारत के इतिहास में कई ऐसे नाम हैं जिन्हें हम साल में एक बार सिर्फ औपचारिक श्रद्धांजलि देकर भूल जाते हैं। लेकिन कुछ नाम ऐसे होते हैं जिन्हें केवल याद करना नहीं, जीना चाहिए — और उन्हीं नामों में से एक है Shaheed Sukhdev Thapar।
हर साल 23 मार्च को हम उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ याद करते हैं, लेकिन क्या हमें यह भी पता है कि उनका जन्मदिन 15 मई को आता है?
आज का दिन, 15 मई, उस क्रांतिकारी को याद करने का दिन है, जिसने आज़ादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। एक ऐसा नौजवान, जिसने कम उम्र में ही अपने देश के लिए बलिदान देना स्वीकार किया — बिना किसी झिझक, बिना किसी डर के।
Shaheed Sukhdev Thapar: एक नज़र उनके जीवन पर
Shaheed Sukhdev Thapar का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लुधियाना शहर में हुआ था। वे एक साधारण परिवार से थे, लेकिन उनके विचार असाधारण थे। छोटी उम्र से ही वे अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ खड़े हो गए थे और उन्होंने देशभक्ति की भावना को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) से जुड़कर भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन शुरू किया। उनका मानना था कि जब तक भारत में ब्रिटिश राज रहेगा, तब तक भारतीयों को कभी स्वतंत्रता और सम्मान नहीं मिलेगा।
लाला लाजपत राय की मौत और क्रांति की चिंगारी
1928 में, जब अंग्रेज़ों ने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज किया और उनकी मृत्यु हो गई, तो यह घटना सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु के लिए एक निर्णायक मोड़ बन गई। इन तीनों क्रांतिकारियों ने मिलकर ब्रिटिश अधिकारी J.P. Saunders की हत्या कर दी — जिसे लाला लाजपत राय की मौत का बदला कहा गया।
यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, यह अंग्रेज़ों के खिलाफ खुले विद्रोह का प्रतीक थी। इसके बाद, तीनों को Lahore Conspiracy Case में गिरफ्तार किया गया।
जेल और मौत का आलिंगन
जब Shaheed Sukhdev, Bhagat Singh, और Rajguru को फांसी की सज़ा सुनाई गई, तो उन्होंने इसे स्वीकार किया — न कोई डर, न कोई पछतावा। सुखदेव ने जेल में कभी दया याचिका नहीं दी। उन्होंने कहा था:
“अगर मुझे फिर से जीवन मिले, तो मैं फिर क्रांति का रास्ता चुनूंगा।”
23 मार्च 1931, लाहौर सेंट्रल जेल में तीनों को रात के अंधेरे में फांसी दी गई। ब्रिटिश सरकार को डर था कि अगर दिन में फांसी दी गई, तो देश में विद्रोह की आग भड़क सकती है। इसलिए उन्हें चुपचाप मार दिया गया — लेकिन वे इतिहास में अमर हो गए।
आज की पीढ़ी और भूले हुए नायक
आज जब हम film celebrities के जन्मदिन याद रखते हैं, तो क्या हमें उन असली हीरोज़ को भूल जाना चाहिए जिन्होंने हमें freedom दिलाई?
Shaheed Sukhdev Thapar का योगदान उतना ही महान है जितना कि भगत सिंह और राजगुरु का। लेकिन दुर्भाग्यवश, हम उन्हें सिर्फ 23 मार्च को याद करते हैं — उनके birth anniversary यानी 15 मई को नहीं।
यह एक दुखद सच्चाई है कि आज की युवा पीढ़ी इन नामों को सिर्फ school textbooks में पढ़ती है, और फिर भूल जाती है। जबकि हमें चाहिए कि हम इनकी कहानियों को inspiration बनाएं — अपने जीवन में उतारें।
क्या हमें अपने असली नायकों को नहीं याद रखना चाहिए?
आज का दिन एक सवाल पूछता है:
क्या हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि जिन लोगों ने हमें आज़ादी दी, उन्हें हम भूल गए?
15 मई सिर्फ एक तारीख नहीं है — यह उस real hero of India की याद है, जिसने हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूमा। वह चाहता तो अपनी जान बचा सकता था, लेकिन उसने अपने देश को चुना।
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