
Waqf Act 1995 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: बिना Property Registration कोई ज़मीन Waqf कैसे घोषित की जा सकती है?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) में इन दिनों एक बेहद अहम संवैधानिक मुद्दे पर सुनवाई चल रही है, जो सीधे तौर पर Waqf Act 1995, property rights in India, और नागरिकों के right to property से जुड़ा है। इस सुनवाई में Chief Justice of India (CJI) D.Y. Chandrachud ने वरिष्ठ अधिवक्ता Kapil Sibal से सीधा सवाल किया कि क्या किसी भी संपत्ति को Waqf घोषित करने से पहले उसका waqf property registration आवश्यक नहीं है?
क्या बिना Property Registration कोई ज़मीन Waqf हो सकती है?
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि देशभर में Waqf Board मनमाने ढंग से ज़मीनों को waqf property घोषित कर रहा है, जिनका न तो कोई proper registration होता है और न ही मालिकों की जानकारी या सहमति ली जाती है। इस पर सुनवाई करते हुए CJI ने कहा – “कोई भी संपत्ति, चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी, उसे Waqf घोषित करने के लिए क्या उचित दस्तावेज और प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए?”
Kapil Sibal का पक्ष: धार्मिक भावना और कानून की मर्यादा
Kapil Sibal waqf case में Waqf Board की ओर से पेश हुए और उन्होंने कहा कि Waqf एक धार्मिक भावना पर आधारित संस्था होती है, जहां संपत्ति को अल्लाह के नाम पर समर्पित किया जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि ऐसे मामलों में waqf property registration एक अलग प्रक्रिया से होता है, जो आम जमीन के रजिस्ट्रेशन से अलग है।
उन्होंने यह भी कहा कि हर मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप सही नहीं होगा, क्योंकि इससे धार्मिक मामलों में अनावश्यक टकराव पैदा हो सकता है।
CJI की चेतावनी: Courts Cannot Interfere हर जगह
Chief Justice ने कहा कि courts cannot interfere unless कोई संवैधानिक या विधिक उल्लंघन स्पष्ट रूप से हो रहा हो। उन्होंने यह भी कहा कि यदि हर मामले में अदालत दखल देती है तो यह न्यायपालिका की सीमाओं का उल्लंघन होगा। उन्होंने ‘Lakshman Rekha’ खींचते हुए कहा कि अदालत तभी हस्तक्षेप करेगी जब किसी व्यक्ति के fundamental rights जैसे right to property का उल्लंघन हो रहा हो।
Judicial Review की प्रक्रिया ज़रूरी
CJI ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी कानून की वैधता को परखने के लिए एकमात्र उपाय judicial review है। यानि अदालतें कानून के दायरे में रहकर ही यह जांच कर सकती हैं कि कोई कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं। waqf act 1995 के संदर्भ में यह सुनवाई इस बात की दिशा तय करेगी कि क्या इसमें नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
Waqf Board Land Dispute बना राष्ट्रीय मुद्दा
हाल के वर्षों में पूरे भारत में हजारों एकड़ ज़मीन को लेकर waqf board land dispute सामने आए हैं। इनमें से कई मामलों में ज़मीन के असली मालिकों को यह तक नहीं पता चला कि उनकी ज़मीन को Waqf घोषित कर दिया गया है। न कोई नोटिस, न कोई दस्तावेज, और न ही सुनवाई। इससे नागरिकों के property rights in India के सवाल खड़े हो गए हैं।
याचिकाकर्ता की दलील: Fundamental Rights का हनन
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की है कि Waqf Board को किसी भी जमीन को Waqf घोषित करने से पहले proper registration, public notice, और owner consent अनिवार्य किया जाए। उनका कहना है कि मौजूदा Waqf कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है, जिससे देश के नागरिकों के right to property पर सीधा हमला हो रहा है।
क्या Waqf Act 1995 में संशोधन की जरूरत है?
इस पूरी सुनवाई ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि क्या Waqf Act 1995 अब वर्तमान समय की संवैधानिक जरूरतों के अनुरूप है? क्या इसमें नागरिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त legal safeguards हैं? क्या Waqf Board के पास इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह बिना अनुमति किसी भी संपत्ति को अपने कब्जे में ले सके?
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