
Captain Vikram Batra's birthday : कारगिल का वो शेर, जिसने कहा – “ये दिल मांगे मोर”
Captain Vikram Batra’s birthday : भारत की धरती वीरों की धरती है। यहां हर युग में ऐसे सपूत जन्म लेते रहे हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा की। इन्हीं में से एक नाम है कैप्टन विक्रम बत्रा का। आज भी जब कारगिल युद्ध का जिक्र होता है तो सबसे पहले जिस शख्स की याद आती है, वो हैं ‘शेरशाह’ विक्रम बत्रा। उनकी बहादुरी, उनका जज़्बा और उनका डायलॉग “ये दिल मांगे मोर” आज भी लाखों भारतीयों के दिलों में जिंदा है।
बचपन से ही था फौज का जुनून
9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में विक्रम बत्रा का जन्म हुआ। बचपन से ही वो होशियार और निडर थे। पढ़ाई में अव्वल, खेलों में आगे और हर किसी की मदद करने वाले। जब बाकी बच्चे खिलौनों से खेलते थे, तब विक्रम फौजी बनने का सपना देखते थे। NCC कैडेट के तौर पर उन्होंने सेना की ट्रेनिंग भी ली और तभी उन्होंने ठान लिया कि वो एक दिन वर्दी ज़रूर पहनेंगे।
सेना में शामिल होने का सफर
विक्रम ने पढ़ाई पूरी करने के बाद इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून जॉइन की। वहां उनका परफॉर्मेंस इतना शानदार था कि जून 1997 में उन्हें 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट की पोस्ट मिली। यही पल उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था। परिवार को गर्व था और विक्रम खुद मानते थे कि अब उनका सपना पूरा हो गया है – “अब मैं सिर्फ अपने देश के लिए जीऊंगा।”
कारगिल युद्ध और ‘शेरशाह’
1999 में कारगिल युद्ध छिड़ा। पाकिस्तान ने चोरी-छिपे हमारे पहाड़ों पर कब्ज़ा कर लिया था। इन्हें वापस लेने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू हुआ। विक्रम बत्रा को सबसे मुश्किल मोर्चा मिला – प्वाइंट 5140। यह जगह दुश्मनों के कब्ज़े में थी और वहां से पूरे इलाके पर नज़र रखी जा सकती थी।
विक्रम बत्रा और उनकी टीम ने दुश्मनों से सीधी भिड़ंत ली। हाथों में हथियार, दिल में तिरंगे का जज़्बा और आंखों में जीत का सपना। भयंकर लड़ाई के बाद आखिरकार प्वाइंट 5140 पर भारतीय तिरंगा लहराया। इसी जीत के बाद विक्रम का मशहूर डायलॉग सामने आया – “ये दिल मांगे मोर।” यह सिर्फ एक लाइन नहीं थी, बल्कि एक सैनिक के दिल की आवाज़ थी।
शहादत से पहले आखिरी लड़ाई
प्वाइंट 5140 पर जीत के बाद विक्रम बत्रा का हौसला और बढ़ गया। उन्हें अगली बड़ी चुनौती मिली – प्वाइंट 4875। जुलाई 1999 की ठंडी रात… दुश्मन की गोलियां चारों ओर से बरस रही थीं। तभी एक साथी जवान घायल हो गया। विक्रम ने अपनी जान की परवाह किए बिना उसे बचाने का फैसला किया।
वो गोलियों की बारिश में आगे बढ़े और अपने साथी को सुरक्षित जगह पहुंचाया। लेकिन इसी दौरान दुश्मनों की गोली ने उन्हें छलनी कर दिया। आखिरी सांस तक उन्होंने लड़ाई जारी रखी और फिर तिरंगे के लिए शहीद हो गए।
उनकी शहादत पर उनके साथी जवान आज भी कहते हैं – “विक्रम आखिरी पल तक मुस्कुराते हुए लड़े। वो सच में शेरशाह थे।”
परमवीर चक्र और अमर गाथा
कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत ने पूरे देश को रुला दिया। लेकिन साथ ही उनका साहस हर दिल में बस गया। उनकी वीरता के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र मरणोपरांत प्रदान किया गया।
आज पालमपुर की धरती उन पर गर्व करती है। उनके नाम पर स्कूल, सड़कें और स्मारक बने हैं। और जब 2021 में उनकी जिंदगी पर बनी फिल्म ‘शेरशाह’ रिलीज़ हुई तो लाखों भारतीयों की आंखें नम हो गईं।
विक्रम बत्रा से सीख
कैप्टन विक्रम बत्रा सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी हमें ये सिखाती है कि देशभक्ति सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि कर्म से होती है। जब वो कहते थे “मैं या तो तिरंगा फहराकर लौटूंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा” – तो यह सिर्फ जज़्बा नहीं था, यह एक सैनिक का सच था।
शेरशाह विक्रम बत्रा का नाम आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। वो गए जरूर, लेकिन उनकी गूंज आज भी हर भारतीय के दिल में है –
“ये दिल मांगे मोर।”
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