Chhath Puja 2025: सूर्य की अराधना, जीवन का संतुलन, छठ पूजा 2025 का अर्थ और महत्व
Chhath Puja 2025: भारत में जब भी आस्था और प्रकृति की एकता की बात होती है, तो सबसे पहले नाम आता है छठ पूजा का। यह कोई साधारण पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्सव है जो सूर्य देव की उपासना के साथ-साथ इंसान के भीतर की सच्चाई, संयम और श्रद्धा को भी उजागर करता है।
साल 2025 में भी यह महापर्व पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है।
Chhath Puja 2025 की शुरुआत – नहाय खाय से लेकर अर्घ्य तक
छठ पर्व चार दिनों तक चलता है, और हर दिन की अपनी अलग पवित्रता होती है।
पहला दिन होता है नहाय खाय, जब व्रती शुद्ध होकर सात्विक भोजन करते हैं और इस दिन से व्रत की शुरुआत होती है।
दूसरे दिन आता है खरना, जिसमें पूरा दिन निर्जला उपवास रखा जाता है और शाम को गुड़ की खीर, रोटी और दूध से भगवान सूर्य को प्रसाद अर्पित किया जाता है। इसी के बाद शुरू होता है 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास, जो इस पर्व का सबसे कठिन और पवित्र हिस्सा माना जाता है।
तीसरे दिन यानी षष्ठी तिथि पर व्रती डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य देते हैं। घाटों पर हजारों लोग एक साथ ‘छठी मैया’ के गीत गाते हैं, पानी में खड़े होकर सूर्य देव को नमन करते हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
अंतिम दिन यानी सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रती उपवास खोलते हैं। यह पल भक्ति, भावना और ऊर्जा का अद्भुत संगम होता है।
Chhath Puja में व्रती रखें इन बातों का ध्यान
छठ व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। बिना पानी के 36 घंटे तक उपवास रखना शरीर पर गहरा असर डालता है, इसलिए डॉक्टरों की मानें तो कुछ सावधानियां बेहद ज़रूरी हैं।
व्रत से पहले हल्का और पौष्टिक भोजन करें ताकि शरीर तैयार रहे। पर्याप्त पानी पिएं और उपवास के दौरान छाया में रहें।
डॉक्टर सलाह देते हैं कि व्रती गंदे या दूषित पानी वाले घाटों से दूर रहें, क्योंकि ऐसे जलाशयों में मौजूद बैक्टीरिया और फफूंद से त्वचा संक्रमण, पेट की बीमारियां और आंखों में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
अगर पानी गंदा लगे तो प्रतीकात्मक स्नान करें और पूजा के बाद घर लौटकर एंटीसेप्टिक साबुन से नहाएं।
व्रत खोलते समय सबसे पहले गुनगुना पानी या नारियल पानी लें। तुरंत ठंडा पानी या भारी भोजन करने से बचें। हल्का भोजन करें, जैसे गुड़ की खीर, केला या दूध। यह शरीर को ऊर्जा देता है और कमजोरी दूर करता है।
लोक आस्था से जुड़ा विज्ञान और संदेश
छठ पूजा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद खास है।
सूर्य की उपासना करने से शरीर में विटामिन-डी की मात्रा बढ़ती है, जिससे हड्डियाँ मज़बूत होती हैं और त्वचा स्वस्थ रहती है।
व्रत के दौरान रखा जाने वाला अनुशासन और सात्विकता शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करती है।
छठ के गीतों में प्रकृति की महिमा गाई जाती है — पानी, धूप, मिट्टी और हवा — सबको देवता का रूप मानकर पूजा की जाती है। यही कारण है कि यह पर्व पर्यावरण के प्रति सम्मान का भी प्रतीक बन चुका है।
साफ-सफाई और समाज का सामूहिक रूप
छठ पूजा की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इसमें कोई भेदभाव नहीं होता।
हर जाति, हर वर्ग के लोग मिलकर घाटों की सफाई करते हैं, सजावट करते हैं और पूजा का इंतज़ाम संभालते हैं।
जहाँ एक ओर महिलाएँ व्रत रखती हैं, वहीं पुरुष सहयोगी की भूमिका निभाते हैं।
यह सामूहिकता भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी पहचान है — जहाँ भक्ति के साथ एकता और श्रम का भाव भी झलकता है।
नगर निगम और स्थानीय समितियाँ इन दिनों घाटों की सफाई, ब्लीचिंग पाउडर और फिटकरी के छिड़काव की व्यवस्था करती हैं ताकि श्रद्धालु सुरक्षित रहें।
इस पर्व में साफ-सफाई सिर्फ जलाशयों की नहीं, बल्कि मन और विचारों की भी होती है।
Chhath Puja का भावनात्मक पक्ष
छठ की शामें किसी जादू से कम नहीं लगतीं —
घाटों पर बजते पारंपरिक गीत, नारियल और फल से सजी टोकरी, और ढलते सूरज की किरणों में चमकते चेहरे…
यह दृश्य हर भारतीय के दिल में श्रद्धा जगा देता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि भक्ति का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि संयम, कृतज्ञता और प्रेम है।
जब व्रती जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो वह केवल भगवान से नहीं, बल्कि खुद से भी एक वादा करते हैं —
कि जीवन में सत्य, मेहनत और सादगी की राह नहीं छोड़ेंगे।
आस्था और सेहत का संतुलन
छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि सच्ची पूजा तभी है जब आस्था के साथ समझदारी भी जुड़ी हो।
इसलिए व्रती और श्रद्धालु दोनों ही अपने स्वास्थ्य, स्वच्छता और पर्यावरण का ध्यान रखें।
सूर्य की उपासना के इस पर्व में जहां श्रद्धा की लौ जलती है, वहीं सेहत और संतुलन का दीप भी प्रज्वलित होना चाहिए।
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