
चांद पर इंसानों के कदम रखते हुए 1969 में जब पहला कदम रखा गया, तो वहां की धूल ने वैज्ञानिकों और एस्ट्रोनॉट्स को भी हैरान कर दिया। हालांकि चांद पर हवा नहीं है, फिर भी चांद की धूल इतने समय बाद भी वहीं पड़ी रहती है। इसका कारण क्या है? यह सवाल बहुत से लोगों के मन में उठता है, और इसके पीछे छुपा है एक दिलचस्प विज्ञान।
चांद की धूल का ‘चिपकने’ का राज
चांद की धूल की चिपचिपाहट का मुख्य कारण स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी है। यह वही सिद्धांत है जिसे हम रोज़मर्रा की जिंदगी में देखते हैं। जैसे जब हम कपड़े धोकर या इस्त्री करके पहनते हैं, तो कभी-कभी कपड़े हमारी त्वचा से चिपक जाते हैं। इसका कारण होता है स्टैटिक क्लिंग, यानी स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी के कारण हल्की वस्तुएं एक दूसरे से चिपक जाती हैं। ठीक वैसे ही, चांद की धूल भी एस्ट्रोनॉट्स के सूट्स और अन्य वस्तुओं पर चिपक जाती है।
इलेक्ट्रॉन्स का खेल
चांद की धूल में यह चिपकने वाली प्रॉपर्टी इसलिए है क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉन होते हैं। जब कोई पदार्थ इलेक्ट्रॉन को खोता है या प्राप्त करता है, तो उसमें एक सकारात्मक या नकारात्मक चार्ज आ जाता है। और फिर यह पदार्थ अपनी विपरीत चार्ज वाली वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करता है। यही कारण है कि चांद की धूल इंसान के सूट्स और अन्य वस्तुओं से चिपक जाती है।
चांद की धूल की चिपचिपाहट क्यों है ज्यादा?
इसका कारण है कि चांद पर हमेशा सोलर विंड्स यानी सूरज से निकलने वाली कणों की बर्फीली लहरें चांद पर पड़ती रहती हैं। जब चांद इन सोलर विंड्स से गुजरता है, तो इसकी धूल पर इलेक्ट्रॉन्स की बमबारी होती है, जिससे चांद की धूल में चार्ज आ जाता है। यही चार्ज चांद की धूल को आकर्षित करता है और चिपकने का कारण बनता है।
नासा का समाधान
नासा इस समस्या का समाधान भी निकालने की कोशिश कर रहा है, ताकि एस्ट्रोनॉट्स के लिए चांद पर काम करना आसान हो। नासा के आर्टिमिस मिशन के तहत एक तकनीक विकसित की जा रही है जिसमें तरल नाइट्रोजन का उपयोग चांद की धूल को साफ करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि यह समाधान पूरी तरह से काम करेगा या नहीं, यह भविष्य में पता चलेगा जब इंसान फिर से चांद पर कदम रखेगा।
चांद की धूल का चिपकने का कारण वही विद्युत-स्थैतिक (स्टैटिक) गुण है, जो हमें रोज़मर्रा की जिंदगी में देखने को मिलता है। चांद पर यह गुण और भी अधिक प्रभावी होता है, और वैज्ञानिक इसके समाधान के लिए नई तकनीकों पर काम कर रहे हैं। आने वाले समय में चांद पर हमारे मिशनों में यह समस्या सुलझ सकती है, जिससे वैज्ञानिकों के लिए वहां काम करना आसान हो जाएगा।