
Ravi Pradosh Vrat 2025: व्रत से मिलेगा मोक्ष और समृद्धि, जानें पूजा का सही तरीका!
Ravi Pradosh Vrat 2025: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत की काफी मानता है। प्रदोष व्रत महादेव को समर्पित है, इससे दिन महादेव के साथ-साथ माता गौरी की पूजा अर्चना भी की जाती है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति विधि विधान से प्रदोष व्रत रखता है तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
रवि प्रदोष व्रत 2025
हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। जब प्रदोष व्रत की तिथि रविवार के दिन पड़ती है तो इससे “रवि प्रदोष व्रत” कहा जाता है।
रवि प्रदोष व्रत रखने से जीवन में सुख समृद्धि आती है और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है, पूजा करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
रवि प्रदोष व्रत शुभ तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर रखा जाता है।
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 8 जून सुबह 7:17 से शुरू होगी और स्थिति का समापन 9 जून सुबह 9:35 पर होगा।
रवि प्रदोष पूजा मुहूर्त
रवि प्रदोष के दिन आप किसी भी समय पूजा कर सकते हैं हालांकि कुछ समय ऐसे भी होते हैं जो काफी अशुभ माने जाते हैं, ऐसे समय पर कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर कुछ समय कल ऐसे भी होते हैं जो काफी शुभ माने जाते हैं, ऐसे में अगर आप कोई भी कार्य की शुरुआत करते हैं तो वह सफल होता है।
8 जून को रवि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस व्रत का पूजन शाम के समय ही होता है। आपको महादेव की पूजा करने के लिए केवल 2 घंटे 1 मिनट का समय मिलेगा। अगर आप इसी शुभ मुहूर्त पर पूजा करते हैं तो आपकी व्रत का पूर्ण फल आपको प्राप्त होगा। व्रत का शुभ मुहूर्त शुरू होगा शाम के 7:18 से और 9:19 तक यह शुभ मुहूर्त रहेगा। आईए जानते हैं अन्य शुभ मुहूर्त का समय क्या है—
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:02 से लेकर 42 a.m तक।
- अभिजीत मुहूर्त: 11:52 मिनट से दोपहर 12:48 तक।
- निशिता मुहूर्त: रात के 12:00 से 12:40 तक।
रुद्राभिषेक करने का शुभ मुहूर्त
8 जून के दिन महादेव को रुद्राभिषेक करने की विशेष महत्वता है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति रवि प्रदोष व्रत के दिन महादेव को रुद्राभिषेक करता है उसको उत्तम फलों की प्राप्ति होती है और महादेव उनकी सारी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।
आपको बता दे की प्रदोष व्रत की तिथि पर शिव वास कैलाश और नंदी पर है। कैलाश पर श्वास का समय प्रातः काल से लेकर सुबह 7:17 तक रहेगा। इसके बाद पूरे दिन शिव आवास नंदी पर सवार रहेंगे और विचरण करेंगे। इन दोनों स्थानों पर श्रीवास रुद्राभिषेक के लिए अति शुभ माना गया है।
प्रदोष व्रत क्यों रखा जाता है?
- प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव की अत्यंत कृपा होती है। प्रदोष व्रत वह लोग भी रखते हैं जनता वैवाहिक जीवन सुख में नहीं चल रहा होता, यह व्रत रखने से भगवान शिव और माता पार्वती की उन पर विशेष कृपा होती है।
- पापा से मुक्ति: मान्यता है कि रवि प्रदोष व्रत करने से समस्त पापों की मुक्ति होती है और सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है। अगर कोई कुकर्म वाला व्यक्ति प्रदोष व्रत को नियमों अनुसार रखता है तो उसके जीवन के सभी सत्य के मार्ग खुल जाते हैं और वह नेकी की राह पर चलने लगता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: मान्यता है कि भगवान शिव की आराधना से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत एक सबसे सरल और अच्छा मार्ग है मोक्ष की तरफ बढ़ने का।
- पुण्य फल की प्राप्ति : मान्यता है कि जो भी दुर्लभ व्यक्ति प्रदोष व्रत का नियम अनुसार पालन करता है तो इस व्रत से उसको पूर्ण फलों की प्राप्ति होती है और जीवन में नए द्वार खुलते हैं। शास्त्रों की माने तो जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत नया अनुसार रखता है तो उसको दो गौ माता के दान के समान पुण्य मिलता है।
- दुख कष्ट दूर: जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत रख के महादेव की पूजा आराधना करता है तो महादेव उसके समस्त दुख और कासन को हर लेते हैं।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
- प्रदोष व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें और घर को शुद्ध करें।
- पूजा स्थल की सफाई करके गंगाजल से मंदिर का शुद्धिकरण करें।
- साफ और स्वच्छ वस्त्र पहन कर सूर्य देव को जल अर्पित करें। जल अर्पित करते समय “ओम सूर्याय नमः ” मंत्र का जब शुरू करें।
- लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बेचकर महादेव और माता गौरी के साथ-साथ भगवान गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
- महादेव को पंचामृत से स्नान कराए।
- भगवान के आगे घी का दीपक प्रचलित करें, और सबसे पहले खुद को तिलक लगाए और फिर सभी प्रतिमाओं को भी तिलक लगाए।
- भगवान के समक्ष प्रदोष व्रत रखने का दृढ़ संकल्प ले।
- महादेव को बेल और धतूरा अर्पित करें।
- महादेव के मत्रों का 108 बार जाप करें।
- शिव चालीसा और दुर्गा चालीसा का भी पाठ करें, फिर में भगवान की आरती करके पूजा संपन्न करें।
- अंत में भगवान से क्षमा याचना करके, जाने अनजाने में हुई गलतियों की माफी मांगे।
यह भी पढ़े
Ganga Dussehra 2025: कैसे पाएं गंगा माता की कृपा और सुख-समृद्धि