
Shubman Gill birthday 2025: खेत की मिट्टी से भारत का ‘क्रिकेट प्रिंस’ बनने तक का सफर
Shubman Gill birthday 2025: कहते हैं… सपने वही पूरे होते हैं, जो नींद में नहीं बल्कि खुली आंखों से देखे जाते हैं और उन्हें सच करने के लिए पसीना बहाया जाता है। भारतीय क्रिकेट के उभरते सितारे शुभमन गिल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एक किसान का बेटा, जिसने अपने पिता के अधूरे सपने को पूरा किया और आज भारतीय टीम का अहम हिस्सा बन चुका है।
एक छोटे से गांव से शुरुआत
शुभमन गिल का जन्म 8 सितंबर 1999 को पंजाब के फाजिल्का ज़िले के छोटे से गांव चक खेरेवाला में हुआ। उनके पिता लखविंदर सिंह खुद क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें किसान बना दिया। हालांकि, उन्होंने ठान लिया कि जो सपना वो पूरा नहीं कर पाए, उसे उनका बेटा ज़रूर पूरा करेगा।
शुभमन बचपन से ही क्रिकेट में बेहद दिलचस्पी रखते थे। पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और खेत को ही क्रिकेट का मैदान बना दिया। वहीं से शुरू हुआ ‘क्रिकेट प्रिंस’ बनने का सफर।
100 रुपये की अनोखी शर्त
शुभमन गिल की बल्लेबाज़ी को निखारने के लिए पिता ने एक अनोखी शर्त रखी। उन्होंने गांव के लड़कों से कहा –
“जो भी शुभमन को आउट करेगा, उसे 100 रुपये का इनाम मिलेगा।”
बस फिर क्या था, गांव-गांव से बच्चे शुभमन को आउट करने आते। लेकिन गिल इतनी देर तक बैटिंग करते कि उनकी तकनीक और धैर्य दोनों मज़बूत होते गए। यह आदत उनके करियर की मजबूत नींव साबित हुई।
संघर्षों से भरी बचपन की ट्रेनिंग
गांव से आगे बढ़ते हुए शुभमन का परिवार जलालाबाद शिफ्ट हुआ, जहां एक छोटे से स्कूल में उन्हें क्रिकेट की ट्रेनिंग मिली। लेकिन पिता जानते थे कि असली उड़ान के लिए उन्हें बड़े मंच की ज़रूरत है।
इसलिए परिवार ने चंडीगढ़ का रुख किया। मोहाली स्टेडियम के पास शुभमन को एकेडमी में दाखिला दिलाया गया। यहां पूरा परिवार किराए के मकान में रहने लगा ताकि गिल सिर्फ क्रिकेट पर ध्यान दे सकें।
सुबह 3:30 बजे उठना, 4 बजे अकादमी पहुँचना, दिनभर प्रैक्टिस और फिर शाम को दोबारा अभ्यास—शुभमन की दिनचर्या क्रिकेट की तपस्या जैसी थी।
पिता की मेहनत, बेटे का जुनून
भारतीय क्रिकेट में अक्सर देखा गया है कि पिता अपने बेटे के करियर को दिशा देने में अहम भूमिका निभाते हैं। युवराज सिंह और शुभमन गिल दोनों ही पंजाब से हैं और दोनों के पीछे पिता की मेहनत है। फर्क बस इतना था कि युवराज को उनके पिता स्केटिंग से क्रिकेट की ओर लाए, जबकि शुभमन के पिता ने बचपन से ही उन्हें सिर्फ क्रिकेटर बनाने की ठान ली।
आज युवराज सिंह भारत के ‘सिक्सर किंग’ कहलाते हैं और शुभमन गिल ‘क्रिकेट का प्रिंस’।
अंडर-19 से IPL तक का सफर
शुभमन की असली पहचान 2018 के अंडर-19 वर्ल्ड कप में बनी। उन्होंने शानदार बल्लेबाज़ी की और भारत को खिताब जिताने में अहम भूमिका निभाई। उन्हें ‘मैन ऑफ द टूर्नामेंट’ का खिताब भी मिला।
इसके बाद IPL में भी गिल ने अपने शानदार प्रदर्शन से सबका दिल जीत लिया। उनकी क्लासिक बल्लेबाज़ी और शांत स्वभाव ने उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग पहचान दिलाई। धीरे-धीरे वह टीम इंडिया के लिए ओपनिंग करने लगे और अब भारतीय क्रिकेट का भविष्य माने जाते हैं।
किसान पिता की तपस्या
आज शुभमन गिल करोड़ों युवाओं के रोल मॉडल हैं। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक किसान पिता की तपस्या छिपी है। वो पिता, जिसने खेत को क्रिकेट का मैदान बना दिया। वो पिता, जिसने अपनी नींद, मेहनत और सपनों की कीमत पर बेटे को हर सुविधा दिलाई।
अक्सर कहा जाता है कि सफलता अकेले इंसान की नहीं होती, उसके पीछे पूरे परिवार का त्याग और बलिदान छिपा होता है। शुभमन की कहानी इसका जीता-जागता उदाहरण है।
क्या सीख मिलती है?
शुभमन गिल का सफर हमें यह सिखाता है कि सपने पूरे करने के लिए जुनून और मेहनत दोनों ज़रूरी हैं। अगर पिता का आशीर्वाद और परिवार का साथ हो, तो किसी भी छोटे गांव से निकला बच्चा दुनिया के सबसे बड़े मंच तक पहुँच सकता है।
उनकी कहानी हर युवा को यह प्रेरणा देती है कि चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, अगर मेहनत सच्चे दिल से की जाए तो सफलता ज़रूर मिलती है।
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