
International Literacy Day 2025 : सिर्फ किताबें नहीं, डिजिटल साक्षरता भी है ज़रूरी – जानिए क्यों
International Literacy Day 2025 : हर साल 8 सितंबर को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस (International Literacy Day) मनाती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि किसी भी देश की असली ताक़त उसके लोगों की शिक्षा और साक्षरता में छिपी होती है। अगर लोग पढ़े-लिखे होंगे, जागरूक होंगे तो समाज भी आगे बढ़ेगा और देश भी तरक्की करेगा।
क्यों ज़रूरी है साक्षरता?
सोचिए अगर कोई इंसान अख़बार न पढ़ पाए, मोबाइल पर मैसेज न समझ पाए या सरकारी फॉर्म न भर पाए, तो उसकी ज़िंदगी कितनी मुश्किल हो जाएगी। यही कारण है कि साक्षरता सिर्फ किताब पढ़ने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसान को अपनी ज़िंदगी बेहतर तरीके से जीने की ताक़त देती है।
एक साक्षर व्यक्ति नौकरी के नए अवसरों को समझ सकता है, हेल्थ से जुड़ी जानकारी पा सकता है और अपने अधिकारों के बारे में जागरूक रह सकता है। वहीं दूसरी ओर, अशिक्षा गरीबी, बेरोज़गारी और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है।
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की शुरुआत कैसे हुई?
इस दिन की जड़ें साल 1965 में ईरान की राजधानी तेहरान में हुए निरक्षरता उन्मूलन पर शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन से जुड़ी हैं। इस सम्मेलन के बाद यह तय किया गया कि दुनिया भर में शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में काम होना चाहिए।
इसके बाद 1966 में यूनेस्को (UNESCO) ने अपने 14वें सम्मेलन में आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि हर साल 8 सितंबर को International Literacy Day के रूप में मनाया जाएगा। और फिर 1967 से यह दिन पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा।
2025 की थीम क्या है?
हर साल इस दिन की एक खास थीम होती है। 2025 में इसकी थीम है – “डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना”।
आज के समय में जब ज़िंदगी का हर काम मोबाइल और इंटरनेट से जुड़ गया है, तो डिजिटल साक्षरता भी उतनी ही ज़रूरी है। अब पढ़ा-लिखा होना सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि कंप्यूटर, स्मार्टफोन और डिजिटल दुनिया को समझना भी उतना ही अहम है।
भारत में साक्षरता की स्थिति
भारत ने पिछले कुछ दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। सर्व शिक्षा अभियान और शिक्षा का अधिकार कानून जैसे कदमों ने स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या बढ़ाई है। लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाक़ों और खासकर महिलाओं में साक्षरता दर शहरों के मुकाबले पीछे है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत की कुल साक्षरता दर लगभग 77% के आसपास है। यानी अभी भी हर 100 में से करीब 23 लोग ऐसे हैं जो पढ़-लिख नहीं सकते। इनमें ज़्यादातर संख्या गरीब, ग्रामीण और वंचित वर्ग के लोगों की है।
साक्षरता का असर ज़िंदगी पर
साक्षरता सिर्फ पढ़ाई-लिखाई तक सीमित नहीं है, यह हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ी हुई है।
- एक साक्षर महिला अपने बच्चों को अच्छी परवरिश और शिक्षा दे सकती है।
- साक्षर किसान नई तकनीकों को अपनाकर खेती में सुधार ला सकता है।
- साक्षर नौजवान नौकरी के बेहतर अवसर तलाश सकता है।
- और सबसे बड़ी बात, साक्षरता इंसान को अपने हक़ और अधिकार पहचानने की समझ देती है।
डिजिटल साक्षरता: समय की मांग
आज का दौर डिजिटल है। बैंकिंग से लेकर पढ़ाई तक सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। ऐसे में अगर कोई डिजिटल दुनिया से कटा हुआ है, तो वह कई अवसरों से वंचित रह जाता है। यही वजह है कि 2025 की थीम ‘डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना’ बेहद प्रासंगिक है।
सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा ताकि देश के हर नागरिक तक डिजिटल शिक्षा पहुँचे।
हम क्या कर सकते हैं?
अक्सर लोग सोचते हैं कि साक्षरता सिर्फ सरकार का काम है, लेकिन सच यह है कि हम सब मिलकर भी इसमें योगदान दे सकते हैं।
- अगर हमारे घर में काम करने वाली महिला पढ़ना-लिखना नहीं जानती, तो हम उसे सिखा सकते हैं।
- बच्चों को स्कूल भेजना सिर्फ माता-पिता की ही नहीं, बल्कि समाज की जिम्मेदारी भी है।
- डिजिटल साक्षरता के लिए हम अपने आसपास के लोगों को मोबाइल का सही इस्तेमाल करना सिखा सकते हैं।
छोटे-छोटे प्रयास ही बड़े बदलाव की नींव रखते हैं।
निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि शिक्षा ही असली ताक़त है। बिना शिक्षा के विकास संभव नहीं। इस बार की थीम हमें सिखाती है कि सिर्फ लिखना-पढ़ना ही नहीं, बल्कि डिजिटल दुनिया को अपनाना भी ज़रूरी है।
तो आइए, इस दिन हम सब यह संकल्प लें कि साक्षरता को सिर्फ अधिकार नहीं, बल्कि अपनी जिम्मेदारी भी समझेंगे। क्योंकि जब हर हाथ में किताब होगी, हर इंसान डिजिटल दुनिया से जुड़ा होगा, तभी सच्चे मायनों में हमारा समाज और देश आगे बढ़ेगा।
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