
Digvijay Diwas 2025 : स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण की 132वीं वर्षगांठ
Digvijay Diwas 2025 : भारत का इतिहास ऐसे अनेक अवसरों से भरा है, जब हमारी संस्कृति और आध्यात्मिकता ने पूरी दुनिया को नई दिशा दी। ऐसा ही एक ऐतिहासिक क्षण था 11 सितंबर 1893 का दिन, जब स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में अपना अमर भाषण दिया। यह भाषण सिर्फ़ कुछ शब्दों का संगम नहीं था, बल्कि भारत की आत्मा, उसकी महान परंपराओं और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना का उद्घोष था। इसी दिन की स्मृति में हर साल 11 सितंबर को दिग्विजय दिवस मनाया जाता है।
दिग्विजय दिवस क्यों मनाया जाता है?
दिग्विजय दिवस का संबंध सीधे तौर पर स्वामी विवेकानंद से है। 11 सितंबर 1893 को जब उन्होंने शिकागो की धर्म संसद में बोलना शुरू किया, तो उनके पहले ही शब्द – “Sisters and Brothers of America” – ने वहां मौजूद हज़ारों लोगों को खड़े होकर ताली बजाने पर मजबूर कर दिया। यह अभिवादन उस समय के लिए असाधारण था, क्योंकि इसने पश्चिमी दुनिया को यह एहसास दिलाया कि भारत प्रेम, भाईचारे और सार्वभौमिक एकता की भूमि है।
स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में न केवल हिंदू धर्म की उदारता और सहिष्णुता को दुनिया के सामने रखा, बल्कि यह भी बताया कि भारत की आध्यात्मिक धरोहर संपूर्ण मानवता की संपत्ति है। इसी ऐतिहासिक क्षण की याद में हर साल दिग्विजय दिवस मनाया जाता है।
132वीं वर्षगांठ का महत्व
साल 2025 में इस महान भाषण की 132वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यह केवल एक तिथि भर नहीं है, बल्कि यह अवसर हमें स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं और विचारों को पुनः याद करने का है। उनके विचार आज भी युवाओं को आत्मविश्वास, साहस और राष्ट्रसेवा की ओर प्रेरित करते हैं।
आज जब दुनिया कट्टरता और विभाजन की चुनौतियों से जूझ रही है, तब विवेकानंद का यह संदेश कि “सभी धर्म सत्य की ओर ले जाते हैं और सभी मनुष्य एक परिवार का हिस्सा हैं” और भी प्रासंगिक हो जाता है।
योगी आदित्यनाथ और पुष्कर सिंह धामी के संदेश
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लिखा –
“राष्ट्रऋषि स्वामी विवेकानंद जी द्वारा शिकागो धर्म सम्मेलन में दिया गया उद्बोधन भारत की संस्कृति, संस्कार, धर्म एवं अध्यात्म का वैश्विक पटल पर यशस्वी उद्घोष था। यह हमारी सनातन और वैदिक परंपराओं का दिव्य संदेश था, जिसने पूरे विश्व को वसुधैव कुटुंबकम की भावना से जोड़ा।”
उन्होंने प्रदेशवासियों को इस ऐतिहासिक अवसर की हार्दिक बधाई दी।
वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने भी श्रद्धांजलि देते हुए लिखा –
“वर्ष 1893 में आज ही के दिन शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद जी ने अपने उद्बोधन से पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की महानता का संदेश दिया। उनके शब्दों ने न केवल भारत की आध्यात्मिक विरासत को वैश्विक मंच पर स्थापित किया, बल्कि पूरी दुनिया को सहिष्णुता, एकता और मानवता का अद्भुत संदेश दिया।”
धामी जी ने लोगों से अपील की कि वे विवेकानंद की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लें।
विवेकानंद का जीवन और संदेश
स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए आत्मविश्वास और अनुशासन सबसे बड़ी ताकत है। उनका प्रसिद्ध वाक्य – “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो” – आज भी युवाओं के लिए मार्गदर्शक है।
उनकी सोच केवल धर्म तक सीमित नहीं थी। वे शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि अगर भारत के युवा जाग उठें तो देश किसी भी बाधा को पार कर सकता है।
दिग्विजय दिवस का संदेश
दिग्विजय दिवस केवल एक ऐतिहासिक घटना की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपनी जड़ों और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद ने जो सपना देखा था, वह था – एक ऐसा भारत, जो आत्मनिर्भर हो, एकजुट हो और अपनी आध्यात्मिक शक्ति से पूरी दुनिया को मार्गदर्शन दे।
आज के दौर में, जब भौतिकवाद और तनाव से दुनिया जूझ रही है, तब विवेकानंद का संदेश हमें शांति, सहिष्णुता और मानवता की ओर ले जाता है।
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