पटाखों से नहीं, प्यार से मनाओ दिवाली — जानवर भी डरते हैं!
firecrackers impact on animals: दिवाली का त्योहार रोशनी, खुशी और प्रेम का प्रतीक है। यह वह समय होता है जब पूरा देश दीपों से जगमगा उठता है। लेकिन इन खुशियों के बीच एक सच्चाई ऐसी भी है, जिस पर हम अक्सर ध्यान नहीं देते — पटाखों का शोर और उसका असर उन मासूम जीवों पर जो बोल नहीं सकते।
जैसे ही दिवाली का समय आता है, शहरों और गाँवों में पटाखों की गूँज सुनाई देने लगती है। बच्चे, युवा और यहां तक कि बड़े भी इस उत्सव में शामिल होते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन पटाखों की आवाज़ और धुएँ का असर हमारे आसपास के जानवरों और पक्षियों पर कितना भयानक होता है?
firecrackers impact on animals: जानवरों की खामोश चीख
जानवरों की सुनने की शक्ति इंसानों से कई गुना अधिक होती है। पटाखों की तेज़ आवाज़ उन्हें अंदर तक डरा देती है। कई बार देखा गया है कि तेज धमाके सुनकर कुत्ते, बिल्लियाँ, गायें और अन्य जानवर डर के मारे भाग जाते हैं, छिप जाते हैं या घायल हो जाते हैं। कई पालतू जानवर तो इतनी दहशत में आ जाते हैं कि खाना-पीना छोड़ देते हैं या बीमार पड़ जाते हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि पटाखों की 90 डेसीबल से ज्यादा आवाज़ जानवरों के लिए बेहद खतरनाक होती है। छोटे पक्षी इतने शोर को सहन नहीं कर पाते और दिल का दौरा पड़ने से मर भी जाते हैं।
पक्षियों पर भयावह असर
दिवाली की रात जब चारों ओर धमाकों की गूंज होती है, तब आसमान में उड़ते पक्षी दिशा भूल जाते हैं। वे अपने घोंसले छोड़कर इधर-उधर भाग जाते हैं, कई दीवारों या तारों से टकरा कर घायल हो जाते हैं। छोटे पक्षियों को तो इतनी तेज आवाज़ और धुएं से सांस लेने में तकलीफ होती है, और कई दम तोड़ देते हैं।
प्रदूषण का असर भी पक्षियों पर कम नहीं होता। पटाखों के धुएं में मौजूद रसायन हवा, पानी और मिट्टी को जहरीला बनाते हैं, जिससे उनका श्वसन तंत्र कमजोर हो जाता है। हर साल अनुमान है कि दिवाली के बाद लगभग 25–30% पक्षियों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
दुधारू पशुओं और गर्भवती जानवरों पर प्रभाव
पटाखों से डर और तनाव के कारण गर्भवती पशुओं का गर्भपात तक हो जाता है। दुधारू जानवर जैसे गाय और भैंस, तनाव में आने के कारण दूध देना कम कर देते हैं।
पशु चिकित्सकों के अनुसार, यह प्रभाव केवल एक दिन का नहीं बल्कि कई दिनों तक उनके शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर रहता है।
पर्यावरण और प्रदूषण का दुष्चक्र
हर साल दिवाली के बाद हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। पटाखों से निकलने वाला धुआँ न केवल इंसानों बल्कि जानवरों के लिए भी घातक होता है। यह धुआँ श्वसन रोग, अस्थमा और त्वचा की बीमारियों का कारण बनता है। इतना ही नहीं, इस प्रदूषण के कारण छठ पूजा के समय सूर्योदय देखना मुश्किल हो जाता है क्योंकि हवा में धुंध भर जाती है।
मानवता का सवाल
हम इंसान खुद पटाखे फोड़ते हैं, प्रदूषण बढ़ाते हैं, और फिर उसी के परिणाम झेलते हैं —खांसी, सांस की परेशानी, आँखों में जलन।
लेकिन उन निर्दोष जानवरों और पक्षियों का क्या, जिनका इस सब में कोई दोष नहीं है?
कई बार देखा गया है कि कुछ लोग मजाक में जानवरों की पूंछ में पटाखे बांध देते हैं। यह न सिर्फ अमानवीय है बल्कि अपराध भी है। ऐसा करने से जानवरों को गंभीर चोट लग सकती है या उनकी जान जा सकती है।
दिवाली की असली रोशनी – संवेदनशीलता
दिवाली केवल दीप जलाने का त्योहार नहीं है, यह प्रेम, करुणा और प्रकाश फैलाने का पर्व है।
अगर हम इस रोशनी को सही मायने में फैलाना चाहते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी जीव को हमारी खुशी की कीमत पर तकलीफ न हो।
हम सभी मिलकर यह संकल्प लें —
- इस दिवाली कम से कम पटाखे फोड़ें
- अपने पालतू और आसपास के जानवरों की सुरक्षा का ध्यान रखें
- बच्चों को भी सिखाएँ कि असली खुशी दूसरों को डराने में नहीं, खुशियाँ बाँटने में है
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