महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से तूफान खड़ा हो गया है। समाजवादी पार्टी (एसपी) ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) से अलग होने की घोषणा की है, और इसने प्रदेश की राजनीति को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। यह विवाद शिवसेना (यूबीटी) के नेता मिलिंद नार्वेकर द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर दिए गए विवादास्पद बयान के बाद उभरा है। समाजवादी पार्टी ने साफ तौर पर इस बयान का विरोध किया और एमवीए से अपने रिश्ते को खत्म करने का फैसला लिया।
क्या है विवाद?
बाबरी मस्जिद विध्वंस की 32वीं बरसी के मौके पर शिवसेना (यूबीटी) के नेता मिलिंद नार्वेकर ने एक पोस्ट साझा की, जिसमें शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे का एक बयान था: “मैं उन लोगों पर गर्व करता हूं जिन्होंने यह किया।” इस पोस्ट में उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और मिलिंद नार्वेकर की तस्वीरें भी शामिल थीं। इस बयान ने प्रदेश में तूफान मचा दिया, खासकर समाजवादी पार्टी (एसपी) के नेताओं के बीच।
समाजवादी पार्टी के राज्य अध्यक्ष अबू आसिम आज़मी ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि समाजवादी पार्टी कभी भी सांप्रदायिक विचारधारा का समर्थन नहीं कर सकती। उन्होंने यह भी कहा, “इस तरह के बयान एमवीए के धर्मनिरपेक्ष और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं। इसलिए, हम महा विकास अघाड़ी से अलग हो रहे हैं।” उन्होंने यह जानकारी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी दी।
एमवीए से अलग होने का ऐलान
समाजवादी पार्टी के नेता रईस शेख ने आज़मी के बयान का समर्थन करते हुए कहा, “एमवीए संविधान की रक्षा और धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने के लिए गठित हुआ था। इस तरह के कट्टर बयान गठबंधन के उद्देश्य के खिलाफ हैं।” रईस शेख ने शिवसेना (यूबीटी) से सफाई देने की मांग की और पूछा कि आखिर क्यों ऐसे बयान दिए जा रहे हैं। इस स्थिति में समाजवादी पार्टी का एमवीए से अलग होना एक बड़ा राजनीतिक कदम था, जिसने महा विकास अघाड़ी के भीतर तनाव और असमंजस को जन्म दिया है।
शिवसेना की स्थिति
शिवसेना (यूबीटी) ने अब तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, यह सवाल उठ रहा है कि पार्टी अपने सहयोगी दलों की नाराजगी को कैसे शांत करेगी और एमवीए की स्थिरता बनाए रखेगी। शिवसेना (यूबीटी) को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वह अपने विचारधारा को सही तरीके से पेश करे और धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समानता की दिशा में अपने कदमों को स्पष्ट रूप से दर्शाए।
महाराष्ट्र की राजनीति में एक और बड़ा मोड़ तब आया जब विधानसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी को हार का सामना करना पड़ा था। इस हार ने राज्य की राजनीति को एक नया रूप दिया है, और अब शिवसेना (यूबीटी) को अपनी राजनीतिक दिशा और पार्टी की रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा।
महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति
महाराष्ट्र में हाल के विधानसभा चुनावों में महा विकास अघाड़ी को भारी नुकसान हुआ। कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी के गठबंधन ने 288 सीटों में से केवल 46 सीटें ही जीतीं, जबकि बीजेपी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट और अजीत पवार के एनसीपी गुट वाले महायुति गठबंधन ने 230 सीटें जीतीं। इसके बाद देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, जबकि एकनाथ शिंदे और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया।
यह हार महा विकास अघाड़ी के लिए एक बड़ा झटका था, और अब एसपी का अलग होना एक और राजनीतिक संकट को जन्म दे सकता है। एमवीए को एकजुट होकर विपक्षी पार्टी के तौर पर अपनी भूमिका मजबूत करनी होगी, लेकिन इस तरह के विवाद गठबंधन के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।
ईवीएम पर एमवीए का विरोध
चुनाव परिणामों को लेकर महा विकास अघाड़ी ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी का आरोप लगाया। आदित्य ठाकरे ने चुनाव परिणामों को “ईवीएम और चुनाव आयोग का जनादेश” कहा और इस पर सवाल उठाए। इसके अलावा कांग्रेस और एनसीपी नेताओं ने भी ईवीएम के खिलाफ आवाज उठाते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की। यह मुद्दा भी महा विकास अघाड़ी के भीतर असंतोष और असहमति का कारण बन चुका है, जो गठबंधन के लिए और चुनौतियां पैदा करता है।
एमवीए पर प्रभाव
समाजवादी पार्टी का महा विकास अघाड़ी से अलग होना निश्चित रूप से इस गठबंधन के लिए एक और बड़ा झटका है। विपक्षी दल अब न केवल चुनावी हार से उबरने की कोशिश करेंगे, बल्कि आपसी मतभेदों को सुलझाने का भी प्रयास करेंगे। शिवसेना (यूबीटी) को यह समझना होगा कि वह अपने विचारों को स्पष्ट और तटस्थ रूप से पेश करें, ताकि धर्मनिरपेक्षता की दिशा में पार्टी का विश्वास बना रहे।
यह विवाद महा विकास अघाड़ी में वैचारिक मतभेद और राजनीतिक रणनीतियों के बीच संतुलन की कठिनाइयों को उजागर करता है। शिवसेना (यूबीटी) के लिए यह आत्मनिरीक्षण का वक्त है कि वह अपने विचारधारा को कैसे पेश करती है। अगर पार्टी धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता के मुद्दे पर एकजुट नहीं रहती, तो इसे राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
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